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कालिदास पर्याय कोश
मन्दाकिन्याः पयः शेषं दिग्वारण मदाविलम्। मन्दाकिनी में आज कल केवल दिग्गजों के मद से गंदला जल भर दिखाई दिया करता है। क ईप्सितार्थस्थिरनिश्चयं मनः पयश्च निम्नाभिमुखं प्रतीपयेत्। 5/5 अपनी बात के धनी लोगों का मन और नीचे गिरते हुए पानी का वेग, भला कौन टाल सकता है। समीयतुर्दूरविसर्पिघोषौ भिन्नैकसेतू पयसामिवोधौ। 7/53 दोनों ही दलों का हल्ला दूर तक सुनाई पड़ रहा था, मानो बाँध टूट जाने पर जल
की दो धाराएँ आकर आपस में मिल गई हों। 8. वारि :-क्ली० [तारयतीति तृषामिति । वृ+णिच्+ 'वसिवपियजिराजिवजिस
दिहनिवा शिवादिरभ्य इम् इति इब] जल, नीर। तपात्यये वारिभिरुक्षिता नवैभुर्वा सहोष्माणममुचदूर्ध्वगम्। 5/23 वर्षा होने पर उधर तो गर्मी से तपी हुई पृथ्वी से भाप निकल उठी। अपि त्वदावर्जितवारि संभृतं प्रवालमासा मनुबन्धि वीरुथाम्। 5/34 आपके हाथ से सींची हुई इन लताओं में कोमल लाल-लाल पंत्तियों वाली वे कोपलें तो फूट आई होंगी। आविभातचरणाय गृह्णति वारि वारिरुह बद्धषट्पदम्। 8/33
ये हाथी उस ताल की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, जहाँ कमलों में भौरे बन्द पड़े हैं। 9. सलिल :-क्ली० [सलति गच्छतीति। सल्गतौ+सलिकल्पनीति' इलच्] जल,
नीर। इति चापि विधाय दीयतां सलिलस्याञ्जलिरेक एव नौ। 4/37 जब मैं जल जाऊँ, तब तुम हम दोनों के लिए एक साथ जल से तर्पण करना, यों तो सप्तर्षियों के हाथ से चढ़ाए हुए पूजा के फूल और आकाश से उतरी हुई गंगा की धाराएँ हिमालय पर गिरती हैं। प्रसन्न चेतः सलिलः शिवोऽभूत्संसृज्य मानः शरदेव लोकः। 7/74 जैसे शरद के आने पर लोग प्रसन्न हो जाते हैं, वैसे ही शंकर जी के नेत्र रूपी कुमुद खिल गए और उनका मन जल के समान निर्मल हो गया है।
अभिलाषा 1. अभिलाषा :-पुं० [अभि + लष् भाव+घञ्] लोभ, आकांक्षा, मनोरथ ।
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