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कालिदास पर्याय कोश महादेव जी ने देखते-देखते कामदेव को भस्म कर डाला। यह देखकर पार्वती जी की सब आशाएँ धूल में मिल गईं। कदाचिदासन्न सखी मुखेन सा मनोरथज्ञं पितरं मनस्वनी। 5/6 हिमालय तो पार्वती जी के मन की बात जानते ही थे। इसी बीच एक दिन अपनी प्यारी सखी से कहलाकर, अपने पिताजी से पुछवाया। नच प्ररोहाभिमुखोऽपिदृश्यते मनोरथोऽस्याः शशि मौलि संश्रयः। 5/60 महादेवजी को पाने की इनकी जो साध थी, उसमें अभी अंकुवे भी नहीं फूट पाएँ। तपःकिलेदं तदवाप्ति साधनं मनोरथा नाम गतिर्न विद्यते। 5/64 यह तप मैं उन्हीं को पाने के लिए कर रही हूँ, क्योंकि साध कहाँ तक पहुँचती है, इसका कोई ठिकाना तो है ही नहीं। उमास्तनोद्भेदमनु प्रवृद्धो मनोरथो यः प्रथमं बभूव। 7/24 पार्वतीजी के मन में जो जवानी आने के समय से ही, शंकर जी को पाने की साध बराबर बढ़ रही थी, वह पूरी कर दी।
अभ्यर्थना 1. अभ्यर्थना :-प्रार्थना।
अभ्यर्थनाभङ्गभयेन साधुर्माध्यस्थ्यमिष्टेऽप्यवलम्बतेऽर्थे । 1/52 जहाँ सज्जन लोगों को निरादर का डर होता है, वहाँ वे अपने काम में किसी
मध्यस्थ को साथ ले लेते हैं। 2. प्रार्थना :-अभ्यर्थना, निवेदन।
द्वयं गतं संप्रति शोचनीयतां समागमप्रार्थनया पिनाकिनः।। 5/71 मैं तो समझता हूँ शिवजी को पाने के फेर में दो के भाग फूट गए।
अम्बुधर 17. अम्बुधर :-बादल, मेघ, जलद, वारिध, घन।
अशेनर मृतस्य चोभयोर्वशिनश्चाम्बु धराश्च योनयः। 4/32 जैसे बादल में बिजली और जल दोनों साथ-साथ रहते हैं, वैसे ही संयमी लोगों के मन में क्रोध और क्षमा दोनों इकट्ठे रहते हैं।
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