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कुमारसंभव
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पूस की जिन रातों में वहाँ का सरसराता हुआ पवन चारों ओर हिम ही हिम
बिखेरता चलता था, उन दिनों वे रात-रात भर जल में बैठे बिता देती थीं। 5. जल :-क्ली० [जलति जीवयति लोकान्] जलति आच्छादयति भूम्यदीनीति
वा। जल + पचाद्य च] जल, नीर, पय, वारि। सा वा शंभोस्तदीया वा मूर्तिजलमयी मम्।। 2/60 शिवजी के वीर्य को वही धारण कर सकती हैं और हमारे वीर्य को जल का रूप धारण करने वाली शिवजी की मूर्ति ही धारण कर सकती है। नलिनी क्षत सेतुबंधनो जल संघात इवासिविदुतः। 4/6 जैसे पानी का बहाव बाँध को तोड़कर जल में बहने वाली कमलिनी को वहीं छोड़कर झट से निकल जाता है। अपि क्रियार्थं सुलभं समित्कुशं जलान्यपि स्नानविधिक्षमाणिते। 5/33 इस तपोवन में हवन के लिए समिधा, कुशा और स्नान करने योग्य जल तो मिल जाता है न! निवृत्त पर्जन्य जलाभिषेका प्रफुल्लकाशा वसुधेवरेजे। 7/11 उस समय वे ऐसी लगने लगीं, मानो गरजते हुए बादलों के जल से धुली हुई कांस के फूल से भरी हुई धरती शोभा दे रही हो। खं हृतातपजलं विवस्वता भाति किंचिदिव शेषवत्सरः। 8/37 पश्चिम में कुछ उजाला रहने से ऐसा लग रहा है, कि उधर अभी थोड़ा-थोड़ा पानी बच रह गया है। न तु सुरत सुखेभ्यश्छिन्न तृष्णो बभूव ज्वलन इव समुद्रान्तर्गतस्तज्जलौधैः।
8/91 पर भगवान् शंकर जी का जी इतने संभोग से भी उसी प्रकार नहीं भरा, जैसे
समुद्र के जल में रहने पर भी बड़वानल की प्यास नहीं बुझ पाती। 6. तोय :-क्ली० [तौति वर्द्धते वर्षासु। तव तेर्वृद्धिकर्मणः 'अघ्न्यादयश्च' इति
यत्प्रय॑यो निपतिवतो द्रष्टव्यः] जल, वारि। तोयान्तभस्किरालीव रजे मुनिपरम्परा। 6/49 मुनि ऐसे शोभा देते थे, जैसे चलते हुए जल में पड़ी हुई सूर्य की बहुत सी
परछाईयाँ हों। 7. पय :-क्ली० [पय्यते पीयते वा । पयु गतौ पी पाने वा + 'सर्वधातुभ्योऽसुन्
इत्यसुन्] जल, वारि।
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