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कुमारसंभव
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अथो पनिन्ये गिरिशाय गौरी तपस्विने ताम्ररुचाकरेण। 3/65 समाधि से जगे हुए शंकरजी के गले में पार्वती जी ने अपने लाल-लाल हाथों से......। प्रजासु पश्चात्प्रथितं तदाख्यया जगाम गौरी शिखरं शिखण्डिमित्। 5/7 अपने पूज्य पिता से आज्ञा पाकर वे हिमालय की उस चोटी पर तप करने पहुंची, जहाँ बहुत से मोर रहा करते थे और पीछे जिसका नाम उन्हीं के नाम पर गौरी शिखर पड़ गया। अथ विश्वात्मने गौरी संदिदेशमिथः सखीम्। 6/1 तब पार्वती जी ने घर-घर रमने वाले शंकर जी को अपनी सखी के मुँह से धीरे से कहलाया। कर्णार्पितो लोध्रकषायरुक्षे गोरोचनाक्षेपनितान्त गौरे। 7/17 उनके कानों पर लटकते हुए जौ के अंकुर और लोध से पुते तथा गोरोचन लगे
हुए गोरे गाल। 6. त्रिलोचन वधू :-पार्वती, उमा, गौरी।
इयं नमति वः सवास्त्रिलोचनवधूरिति। 6/89
यह महादेवजी की पत्नी आपको प्रणाम करती हैं। 7. दक्षकन्या :-पार्वती, सती।
अथावमानेन पितुः प्रयुक्ता दक्षस्य कन्या भवपूर्वपत्नी । 1/21 मैनाक के जन्म के कुछ ही दिनों पीछे ऐसा हुआ कि महादेवजी की पहली पत्नी
और दक्ष की कन्या परमसाध्वी सती। 8. नगेन्द्र कन्या :-पार्वती, सती।
गुरोर्नियोगाच्च नगेन्द्र कन्या स्थाणुं तपस्यन्तमधित्यकायाम्। 3/17 पार्वती जी अपने पिता की आज्ञा से हिमालय पहाड़ पर तप करते हुए महादेव जी की सेवा कर रही हैं। पर्वतराज पुत्री :-पार्वती। लज्जा तिरश्चां यदि चेतसि स्यादसंशय पर्वतराजपुत्र्याः। 1/48 यदि पशु-पक्षियों में भी मनुष्यों के समान लज्जा हुआ करती, तो पार्वती जी को देखकर।
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