________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कुमारसंभव
513
की माला पहने हुए हों या माथे पर चन्द्रमा सजाये हुए हों, पर उस पर यह विचार
नहीं किया जाता कि वह कैसा है, कैसा नहीं। 11. कृतिवासा :-पुं० [कृत्तिर्गजासुरस्य चर्म वासोऽस्य] शिव, शंकर, माहदेव।
सकृतिवासास्तपसे यतात्मा गंगा प्रवाहोक्षित देवदारु। 1/54 हिमालय की एक ऐसी सुंदर चोटी पर जाकर तप करने लगे, जहाँ के देवदारु के
वृक्षों को गंगाजी की धारा बराबर सींचती थीं। 12. गिरीश :-पुं० [गिरिश श्रयत्वेन वसतित्वेनास्त्यस्य इति]-शिव, शंकर, महादेव।
आरोपितं यद्गिरिशेन पश्चादनन्यनारी कमनीयमंकम्। 1/37 स्वयं शिवजी ने उन नितम्बों को अपनी उस गोद में रखा, जहाँ तक पहुँचने की कोई और स्त्री साध भी नहीं कर सकती। प्रत्यर्थि भूतामपि तां समाधेः शुश्रूषमाणां गिरिशोऽनुमेने। 1/59 यद्यपि पार्वती जी के वहाँ रहने से शिवजी के तप में बाधा पड़ सकती थी, फिर भी उन्होंने पार्वजी जी की सेवा ली। गिरिशमुपचचार प्रत्यहं सा सुकेशी नियमित परिखेदा तच्छिरश्चन्दपादैः।
... 1/60 बिना थकावट माने उनकी सेवा किया करतीं, क्योंकि महादेवी जी के माथे पर बैठे चन्द्रमा की ठण्डी किरणें पार्वती जी की थकान सदा मिटाती रहती थीं। अथोपनिन्ये गिरिशाय गौरी तपस्विने ताम्ररुचा करेण। 3/65 उधर पार्वती जी ने प्रणाम करके समाधि से जगे हुए शंकरजी के गले में अपने लाल-लाल हाथों से। निशम्य चैनां तपसे कृतोद्यमां सुतां गिरीश प्रतिसक्तमानसाम्। 5/3 जब उनकी माँ मैना ने सुना कि हमारी पुत्री शिवजी पर रीझकर उनके लिए तप
करने पर तुली हुई है। 13. चन्द्रमौलि :-महादेव, शिव, शंकर।
अद्यप्रभृत्यवनतांगि तवास्मि दास क्रीतस्तपोभिरिति वादिनि चन्द्रमौलौ।।
5/86
शिवजी बोले-हे कोमल शरीर वाली ! आज से तुम मुझे तप से मोल लिया
हुआ अपना दास समझो। 14. चन्द्रशेखर :-महादेव, शिव का विशेषण।
For Private And Personal Use Only