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कालिदास पर्याय कोश 7. ईश्वर :-पुं० [ईष्टे इति, ईश+वरच् । यद्वा अहनुते व्याप्नोतीति । अश्धातोर्वरः
उपाधायाईत्वं च] ईश्वर, शिव। न हीश्वर व्याहृतयः कदाचित्पुष्णन्ति लोके विपरीतमर्थम्। 3/63 ठीक ही था, ऐसे ऐश्वर्य शालियों की वाणी कभी झूठी थोड़े ही होती है। तामगौरवभेदेन मुनी श्चापस्यदीश्वरः। 6/12 शंकर जी ने अरुन्धतीजी को और ऋषियों को बिना स्त्री-पुरुष के भेद किए समान आदर से देखा। शब्दमीश्वर इत्युच्चैः सार्ध चन्द्रं बिभर्ति यः। 6/75 जिन्हें छोड़कर दूसरा कोई ईश्वर कहला नहीं सकता, जिसके माथे पर आधा चन्द्रमा बसा हुआ है। तद्गौरवान्मंगल मंडनश्रीः सा पस्पृशे केवलमीश्वरेण। 7/31 शंकरजी ने माताओं का आदर करने के लिए वे सब मंगल शृंगार की सामग्री छू भर दी, पहनी नहीं। तत्रेश्वरो विष्टर भाग्यथावत्स रत्नमयं मधुमच्च गव्यम्। 7/7 वहाँ आसन पर महादेव जी को बैठाकर हिमालय ने रत्न, अर्ध्य, मधु, दही दिए। ईश्वरोऽपि दिवसात्य योचितं मंत्र पूर्वमनुतस्थिवान्वधिम्। 8/50 मंत्रों के साथ अपनी संध्या पूरी करके महादेव जी। ईश :-त्रि० [ईष्टे इति, ईश+क] ईश्वर, शिव, महादेव। विवक्षता दोषमपि च्युतात्मना त्वयैक मीशं प्रतिसाधु भाषितम्। 5/81
आपने अपने दुष्ट स्वभाव से कहते-कहते कम से कम एक बात तो, उनके लिए ठीक कह दी। मातरं कल्पयन्त्वेनामीशो हि जगतः पिता। 6/80
महादेव जी संसार के पिता हैं, इसलिए पार्वती जी सबकी माता बन जायेंगी। 9. ईशान् :-पुं० [ईष्टे, ईश्+'ताच्छील्यवयोवंचन शक्तिषुचान शू] महादेव।
तस्मिन्मुहूर्ते पुर सुन्दरीणामी शानसंदर्शन लालसा नाम्। 7/56
उसी समय महादेवजी के दर्शन के लिए चाव से भरी हुई नगर की सब सुंदरियाँ । 10. कपालि :-महादेव।
कपालि वा स्यादथवेन्दुशेखरं न विश्वमूर्तेरवधार्यते वपुः। 5/78 संसार में जितने रूप दिखाई देते हैं, सब उन्हीं के होते हैं, चाहे गले में खोपड़ियों
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