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कालिदास पर्याय कोश
रचितं रतिपण्डित त्वया स्वयमङ्गेषु यमेद मार्तवम्। 4/18 हे कामक्रीड़ाओं में चतुर ! तुमने अपने हाथों से मेरा जो वासन्ती सिंगार किया
था, वह तो अभी ज्यों का त्यों बना हुआ है। 13. स्मर :-पुं० [स्मारयति उत्कण्ठयतीति । स्मृ+णिच्+अच्] कामदेव।
नमस्विनी मानविघात दक्षं तदेव जातं वचनं स्मरस्य । 3/32 तब उसे सुन-सुन कर रूठी हुई स्त्रियाँ अपना रूठना भी भूल जाती थीं। स्मरस्तथा भूतम युग्म नेत्रम पश्यन्न दूरान्मन साप्यधृष्यम्।। 3/51 तीन नेत्र वाले शंकर जी का जो रूप बुद्धि और मन से भी परे था, उसी रूप को इतने पास से देखकर कामदेव के हाथ ढीले पड़ गए। स्मरसि स्मर मेखला गुणैरुत गोत्रस्खलितेषु बन्धनम्।। 4/8 हे कामदेव ! पहले जब भूल से तुमने अपनी किसी दूसरी प्यारी का नाम ले डाला। उस पर मैंने जो तुम्हें अपनी तगड़ी से बाँध दिया था। अयि संप्रति देहि दर्शनं स्मर पर्युत्सुक एष माधवः। 4/28 हे कामदेव ! तुम्हारा मित्र वसन्त तुम्हें देखने के लिए बड़ा उतावला है, आकर इसे दर्शन तो दो। उपलब्ध सुख स्तदा स्मरं वपुष स्वेन नियोजयिष्यति।। 4/42 इति चाह स धर्मयाचितः स्मर शापाबधिदां सरस्वतीम्। 4/43 जब धर्म ने ब्रह्माजी से सष्टि की रक्षा के लिए कामदेव को जिलाने की प्रार्थना की, तब ब्रह्मा जी ने कहा.....कामदेव को अपना सहायक समझकर महादेव उसे पहले जैसा शरीर दे देंगे और तभी हमारा शाप भी दूर हो जायेगा।
अनंग शासन
1. अनंगशासन .- शिव, महादेव, शंकर।
अप्यवस्तुनिकथाप्रवृत्तये प्रश्नतत्परमनङ्गशासनम्। 8/6
जब कभी बात-बात में शिवजी उट-पटांग बातें छेड़कर इनसे उत्तर माँगते। 2. अयुग्मनेत्र :- शिव, महादेव, शंकर।
स्मरस्तथाभूतमयुग्मनेत्रम् पश्यन्नदूरान्मनसाप्य धृष्यम्। 3/51 तीन नेत्र वाले शंकरजी का जो रूप बुद्धि और मन से भी परे था, उसी रूप को देखकर।
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