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कुमारसंभव
कुर्यां हरस्यापि पिनाकपाणे धैर्यच्युतिं के मम धन्विनोऽन्ये । 3/10 पिनाकधारण करने वाले स्वयं महादेव जी के छक्के छुड़ा दूँ, फिर और दूसरे
धनुषधारियों की गिनती ही क्या। 34. पिनाकिन :-पुं० [पिनाकोऽस्त्यस्येति । इति ] शिव, महादेव, शंकर।
न खलूग्ररुषा पिनाकिना गमितः सोऽपि सुहृदगतां गतिम्। 4/24 कहीं वह भी महादेव जी के तीखे क्रोध की आग में अपने मित्र के साथ-साथ भस्म तो नहीं हो गया। तथा समक्षं दहता मनोभवं पिनाकिना भग्न मनोरथा सती। 5/1 महादेव ने देखते-देखते कामदेव को भस्म कर डाला, यह देखकर पार्वती जी की सब आशाएँ धूल में मिल गईं। उपात्तवर्णे चरिते पिनाकिनः सबाष्पकंठ स्खलितैः पदैरियम्। 5/56 जब ये महादेवजी के गीत गाने लगती थीं, तब इनके रूंधे हुए गले से निकले हुए शब्दों को सुन-सुनकर। द्वयं गतं संप्रति शोचनीयतां समागम प्रार्थनया पिनाकिनः। 5/71 मैं तो समझता हूँ कि शिवजी को पाने के फेर में दो के भाग फूट गए। स भीमरूपः शिव इत्युदीर्यते न सन्ति यथार्थ्य विदः पिनाकिनः। 5/77 डरावने दिखाई देने पर भी वे सबका कल्याण करने वाले कहे जाते हैं, इसलिए
उनका सच्चा रूप संसार में कोई ठीक-ठीक समझ नहीं पाता है। 35. पशुपति :-पुं० [पशूनां स्थावर जङ्गमानां प्राणिमात्रस्य वा पतिः स्वामी प्रभुः]
शिव। तदा प्रभृत्येव विमुक्त सङ्गः पतिः पशूनाम परिग्रहोऽभूत्। 1/53 तभी से महादेव जी ने सब भोग विलास छोड़ दिये थे और दूसरा विवाह नहीं
किया था। 36. महेश्वर :-महादेव, शिव, शंकर।
अथाह वर्णी विदितो महेश्वरस्तदर्थिनी त्वं पुनरेव वर्तसे। 5/65 ब्रह्मचारी बोला कि जिसने [शंकर ने] पहले ही आपके प्यार को ठुकरा दिया,
उसको पाने के लिए क्या आपके मन में अभी तक साध बनी हुई है। 37. रुद्र :- पुं० [रोदयतीति, रुद्+णिच्+ रोदेर्णिलुक् च' इति रक्णेश्च लुक्]
महादेव, शिव।
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