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कुमारसंभव
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अथेन्द्रिय क्षोभमयुग्मनेत्रः पुनर्वशित्वाद्वलवन्निगृह्य। 3/69 पर महादेव जी तत्काल संभल गए, संयमी होने के कारण उन्होंने तत्काल
इन्द्रियों की चंचलता को बलपूर्वक रोक लिया। 3. अष्टमूर्ति :- शिव, महादेव, ईश्वर। .
तत्राग्निमाधाय समित्समिद्धं स्वमेव मूर्त्यन्तरमष्टमूर्तिः। 1/57 उसी चोटी पर शिवजी ने अपनी ही दूसरी मूर्ति अग्नि को समिधा से जगाकर। ननु मूर्ति भिरष्टाभिरित्थं भूतोऽस्मि सूचितः। 6/26 हमारी आठों मूर्तियाँ, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आकाश, सूर्य, चन्द्र और होता, इस बात के साक्षी हैं। तस्याः करं शैल गुरुपनीतं जग्राह ताम्राङ्गुलिमष्टमूर्तिः। 7/76 तब हिमालय के पुरोहित ने पार्वती जी का हाथ आगे बढ़ाकर शंकर जी के हाथ पर रख दिया। वाचस्पति सन्नपि सोऽष्टमूर्तो त्वाशास्य चिन्तास्तिमितो बभूव । 7/87 वाणी के स्वामी होते हुए भी उनकी यह समझ में न आया, कि सब इच्छाओं से
परे रहने वाले शंकर को हम क्या आशीर्वाद दें। 4. आत्मभू :-पुं० [आत्मन्+भू+क्विप्] विष्णु, कामदेव, ब्रह्मा, शिव।
सोऽनुमन्य हिमवन्तमात्मभूरात्मजा विरहदुःखखेदितम्। 8/21 तब उन्होंने [शंकर जी ने] हिमालय से जाने की आज्ञा माँगी। कन्या को अपने
से अलग करने में हिमालय को दुःख तो बहुत हुआ, पर उसने विदा दे दी। 5. इन्दुमौलि :-शिव।
तावत्पताकाकुलमिन्दुमौलिरुत्तोरणं राजपथं प्रपेदे। 7/63 महादेवजी ने ध्वजाओं और पताकाओं से सजे हुए राजमार्ग में प्रवेश किया। अथ विबुधगणांस्तानिन्दुमौलिर्विसृज्य। 7/94
तब शंकरजी ने इन्द्र आदि सब देवताओं को विदा किया। 6. इन्दुशेखर :-शिव।
कपालि वा स्यादथवेन्दु शेखरं न विश्वमूर्तेरवधार्यते वपुः।। 5/78 संसार में जितने रूप दिखाई देते हैं, सब उन्हीं के चाहे होते हैं। चाहे गले में खोपड़ियों की माला पहने हुए हों या माथे पर चन्द्रमा सजाये हुए हों, पर उस पर यह विचार नहीं किया जाता कि वह कैसा है, कैसा नहीं।
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