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कुमारसंभव
तां वीक्ष्य लीला चतुरामनंगः स्वचाप सौन्दर्य मदं मुमोच। 1/47 वे भौहें इतनी सुन्दर थीं कि कामदेव भी अपने धनुष की सुन्दरता का जो घमण्ड लिए फिरते थे, वह इन भौंहों के आगे चूर-चूर हो गया। उपचारपदं न चेदिदं त्वमनंगः कथमक्षता रतिः। 4/9 यदि वह बात केवल मेरा मन रखने भर को न होती, तो तुम्हारे राख हो जाने पर तुम्हारी यह रति भला कैसे जीती बची रह जाती। मान्यभक्तिरथवा सखीजन: सेव्यतामिदमनंग दीपनम्। 8/77 सखियों का आग्रह टालना भी नहीं चाहिए, इसलिए लो, यह काम को उकसाने
वाली मदिरा पी ही डालो। 2. कन्दर्प :-पुं० [कमित्यव्ययं कुत्यायां; कं कुत्सितो दर्पः यस्मात् । यद्वा, कं सुखं
तेन तत्र वा दृप्यति । कम्+दृप्+अच्। कं ब्रह्माणं प्रतिदर्पितवान् वा] कामदेव। तत्र निश्चित्य कंदर्पमगमत्पाकशासनः। 2/63 इन्द्र ने स्वर्गलोक में पहुँचकर भली भाँति सोच-विचार कर अपने काम के लिए
कामदेव को स्मरण किया। 3. काम :-पुं० [काम्यते असौ; कर्मणि घञ्] कामदेव। .
कामस्य पुष्प व्यतिरिक्तमस्त्रं बाल्यात्परं साथ वयः प्रपेदे। 1/31 धीरे-धीरे उनका बचपन बीत गया और उनके शरीर में वह यौवन फूट पड़ा जो कामदेव का बिना फूलों वाला बाण है। संकल्पितार्थे विवृतात्मशक्तिमाखण्डल: काममिदं बभाषे। 3/11 जिस कामदेव ने उनके सोचे हुए काम में अपने आप इतना उत्साह दिखाया था, उससे बोले। कामस्तु बाणावसरं प्रतीक्ष्य पतंरावद्वन्हि मुखं विविक्षुः। 3/74 जैसे कोई पतंगा आग में कूदने को उतावला हो वैसे ही कामदेव ने सोचा कि बस बाण छोड़ने का यही ठीक अवसर है। व्रीडामुं देवमुदीक्ष्य मन्ये संन्यस्तदेहः स्वयमेव कामः। 7/67
कामदेव ही इनकी सुंदरता को देखकर टीस के मारे स्वयं जल मरा। 4. कुसुमायुध :-पुं० [कुसुमानि आयुधानि अस्त्राणि अस्थ] कामदेव।
न नून मारुढरूषा शरीरमनेन दग्धं कुसुमायुधस्य।7/67 अब हमारी समझ में आ रहा है कि इन्होंने कामदेव को क्रोध करके भस्म नहीं किया।
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