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कालिदास पर्याय कोश असंमतः कस्तव मुक्ति मार्ग पुनर्भव क्लेशभयात्प्रपन्नः।। 3/5 बताइए तो ऐसा कौन पुरुष है, जो आपका शत्रु बनकर संसार के कष्टों से घबराकर मोक्ष की ओर चल पड़ा है। कपालनेत्रान्तरलब्ध मार्गर्योतिः पुरोहैरुदितैः शिरस्तः।। 3/49 उस समय उनके सिर और नेत्र से जो तेज निकल रहा था। स्वबाणचिह्नादवतीर्य मार्गादासन्नभूपृष्ठमियाय देवः।। 7/51 उस आकाश से पृथ्वी पर उतरे, जिसमें उन्होंने त्रिपुरासुर को मारते समय बहुत से बाण चलाकर चिह्न बना दिए थे।
अध्वर 1. अध्वर :-पुं० [अध्वानं सन्मार्ग रातिददाति ।अध्वन् + रा+क् । उपपदसमासः]
यज्ञ। यज्वभिः संभृतं हव्यं वितेष्वध्वरेषु सः।। 2/46 वह ऐसा भारी छलिया है, कि जब यज्ञ में यजमान हम लोगों को आहुति देता है। विवाह यज्ञे विवतेऽत्र यूयमध्वर्यवः पूर्ववता मयेति। 7/47 इस बड़े भारी विवाह के काम में पुरोहित का काम मैंने पहले से ही आपके लिए
रख छोड़ा है। 2. यज्ञ :-पुं० [इज्यते हविर्दीयतेऽत्र । इज्यन्ते देवता अत्र वा । यज् +
यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्षो नङ इति नङ्] याग, सव, यज्ञ। यज्ञां गयोनित्वमवेक्षय यस्य सारं धरित्रीधरणं क्षमं च।। 1/17 यज्ञ में काम आने वाली सामग्रियों को उत्पन्न करने के कारण और पृथ्वी को संभाले रखने की शक्ति होने के कारण। कर्म यज्ञः फलं स्वर्गस्तासां त्वं प्रभवो गिराम्। 2/12 जिसके मंत्रों से यज्ञ करके लोग स्वर्ग प्राप्त करते हैं। यज्ञ भाग भुजां मध्ये पदमातस्थुषा त्वया। 6/72 यज्ञ का भाग पाने वाले देवताओं में स्थान पाकर।
अनंग
1. अनंग :-पुं० [नास्ति अङ्गं कायो यस्य सः] कामदेव।
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