Book Title: Jain Shasan 1996 1997 Book 09 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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वर्ष :
४ ७-८ ता. १-१०-६१ ।
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मनाने की अपील की तो स्व. बाबुजी का उस आयोजन को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग रहा। तभी उन्होने कलकत्ते में वीर शासन संघ , की स्थापना की । स्व. बाबुजी को बहुत-सी शोध सामग्री इस संघ ने प्रकाशित की । स्व. बाबुजी वीर सेवा मन्दिर सरसावावाद, दिल्ली के प्रति तथा इसके संस्थापक स्व. पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार के प्रति पुर्णतया समर्पित थे, ये तीनों परस्पर पर्यायवाची थे । स्व. बाबुजी का स्व मुख्तार सा. के प्रति पितृतुल्य सम्मान
और स्नेह था, स्व. पं. कैलाशचन्द्रजी ने तो इन्हें भक्त और भगवान की संज्ञा दी थी । पर दरियागंज के कुछ ईर्ष्यालु एवं झगडालू दिग्गजों को पिता पुत्र के ये मधुर सम्बन्ध रास न आये और उन्होंने परस्पर दोनों के बीच शंका और अविश्वास के बीज वपन कर दिए और परिणाम वही हुआ जो पंचतन्त्र के करटक और दमनक के बीच हुआ था, दोनों ही पिता-पुत्र एक दूसरे के विरोधी हो गये और संस्था वी. से. मं. एवं अनेकान्त की प्रगति रुक गई।
यद्यपि स्व बा. छोटेलालजी ने एक सपना संजोया था कि बीर सेवा मंदिर जैनियो का एक उच्च कोटि का शोध संस्थान बने जिसो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुदान प्राप्त हो तथा यहां दस-पन्द्रह उच्चकोटि के विद्वान जैन विद्या की विभिन्न विद्याओ पर अनुसंधान करें । संस्था की किसी विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हो, इसीलिए वे वी. से. मं को सरसावा से उठाकर दिल्ली लाये थे, दिल्ली के दरियागंज-अन्सारी रोड नं० २१ पर किशान भवन के लिए जमीन खरीदी तथा भवन निर्माण के लिए मई-जुन की तपती दुपहरी में छतरी लगाकर अस्वस्थ दशा में भी निरन्तर निरीक्षण करते और ऐसा विशाल भवन तैयार करा गये, पर दरियागंज की सामाजिक राजनीति ने स्व. बाबुजी क सपना साकार न होने दिया ।
मै १९४६ में सरसावा कुछ महीनो के लिए रहा था । उन दिनो बी. से मं..अपने शोध कार्यो की ख्याति के लिए जैनियो में ही नहीं अपितु अजैन विद्वानो में प्रसिद्धि के चरम शिखर पर था । अनेकांत की नई किरण पढने के लिए लोग लालायित रहते थे। थोडासां भी विलम्ब होने पर शिकायती पत्रो की भरमार हो जाती थी पर १९५७ में जब मैं स्थायी रूप से