Book Title: Jain Shasan 1996 1997 Book 09 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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: - शासन [84 ] दिल्ली प्रशासन की सेवा में आया तो देखा कि संस्था की हालत डगमगा चुकी थी । सन् १९६२ में स्व. बाबुजी ने वर्षों से वन्द पडे 'अनेकान्त' . को पुनः जीवित करने का प्रयास किया । लेख मांगने, प्रुफ रीडिंग करने, प्रेस में छपाने आदि के कार्य में दिन-रात परिश्रम किया करते थे । मैं उन दिनो स्व. बा. जी के सम्पर्क में आया और उनका सहायक बना तथा उनसे बहुत कुछ सीखा ।
उन्हीं दिनों मैंने दिल्ली के भण्डारों में स्थित पाण्डुलिपियो के केटलोगींग का काम प्रारम्भ कर दिया था । कठिनाई और परेशानी के समय उनसे, धीरज, साहस और प्रेरणा मिलती । काश ! वे कुछ दिन और जीवित रह जाते तो मेरी "दिल्ली जिन ग्रंथ रत्नावली' के सभी भाग प्रकाशित हो जाते जिसके आठ-नो भाग अभी भी प्रकाशन की बाट जोह रहे है।
_ 'अनेकांत' के प्रकाशन में अत्यधिक श्रम के कारण उनका स्वास्थ्य दिनप्रतिदिन गिरने लगा, फलस्वरूप वे अपने सपने की हत्या होते देख कलकत्ते लौट गये और ७० वर्ष की आयु पा सन् १९६६ के फरवरी में चिर निद्रा में विलीन हो गये ।
स्व. बाबुजी के इस महान् ग्रन्थ के अतिरिक्त मूर्ति, यन्त्र संग्रह तथा .. खण्डगिरि उदयगिरि नामक दो शोध ग्रंथ शौर प्रकाशित है, इनके अतिरिक्त
उनके शोध निबन्ध 'अनेकांत' जैसी अनेको शोध पत्रिकाओ में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते थे । वे कलकत्ते के व्यापारिक, साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र के ख्याति प्राप्त प्राप्त प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । उनका कलकत्ते की विभिन्न संस्थाओ से पदाधिकारी के रूप में अथवा सामान्य सदस्य के रूप में सदैव सहयोग बना रहता था। कुछ संस्थाओ का उल्लेख इसी महाग्रंथ में प्रस्तुत चित्र के नीचे किया गया है।
स्व. बाबुजी का देश के कई ख्यातिप्राप्त मूर्धन्य विद्वानो से स्नेहपूर्ण मैत्री सम्बन्ध थे जिनमें से कुछ के नाम तो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी विख्यात है जैसे श्री बहादुरचन्द्र छावडा; श्री शिवराम मूर्ति, डा. कालिदास नाग, डा. ए. एन. उपाध्ये, डा. विन्टरनित्ज, डा. ग्लासिनव, पं. महेन्द्रकुमारजी न्या. वा., पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार, पं. नाथुरामजी प्रेमी, डा. आर. डी. बनर्जी, डा.