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महाराज श्री की जीवन झांको
आचार्यकल्प श्री ज्ञानभूषण जी
श्री परमपूज्य भारत-गौरव आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज की संक्षिप्त जीवन झांकी दर्शाने का मेरा भाव हआ है । आचार्य श्री का और हमारा संयोग भारत की महानगरी कलकत्ता से हुआ है। आप महागम्भीर, उपसर्गविजयी, धैर्यवान एवं साहसी हैं । आप धर्म की प्रभावना करने में कर्मठ हैं। आपके द्वारा अनेक भव्यजीवों को दीक्षा-शिक्षा व धर्मोपदेश से लाभान्वित किया गया है। आपने अपने जीवन में कन्नड़ भाषा के अनेक शास्त्रों को शुद्ध हिन्दी में अनुदित कर प्रकाशित किया है जिनमें से कुछ के नाम हैंशास्त्रसार समुच्चय, योगामृत, धर्मामृत, निर्वाणलक्ष्मीपति स्तुति, रत्नाकर शतक, अपराजितेश्वर शतक, भरतेश वैभव, रयण सार, यशोधर चरित्र, नियम सार इत्यादि । जब आपका चातुर्मास कलकत्ता महानगरी में हुआ था तब आप ने अपने ज्ञान-वैभव से जान लिया था कि अब कुछ उपसर्ग आने वाला है। जब कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन रथयात्रा निकली तब आप रथयात्रा में बड़े बाजार से ससंघ सम्मिलित हुए और डॉ. विधानचन्द राय तथा गवर्नर पद्मजा नायडू ने संघ के ऊपर पुष्पवृष्टि की। इस अवसर पर आपको द्वेषपर्ण चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा । वह दृश्य देखते ही बनता था। रथयात्रा जब पंचमी को लौटने वाली थी तब विरोधियों ने आप के संघ के ऊपर नग्नत्व का दोषारोपण कर शहर में भ्रमण करने के निषेध रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त की। तब आप धैर्यपूर्वक रथ के सामने चलने को शीघ्र ही उद्यत हो गये थे। पुलिस ने आप को आगे जाने से रोका तब आप बेलगछिया उपवन के दरवाजे पर ध्यान लगाकर बैठ गये। डॉ. विधानचन्द राय एवं अन्य अधिकारियों को सूचना मिली तब पुलिस कमिश्नर ने आकर प्रार्थना की कि आपके लिये कोई निषेध नहीं, आप कहीं भी संघ सहित भ्रमण कर सकते हैं । तब संघ रथ के सामने चला। श्यामबाजार चौराहे के पूर्व भाग से महाराज संघ सहित वापस बेलगछिया में आ गये क्योंकि समय थोड़ा रह गया था। उसके पश्चात् लोगों ने रथ पर सोडे की बोतल, ईंट इत्यादि का प्रहार किया ।
संघ का विहार सम्मेद शिखर की तरफ होना था कि वहां के कुछ व्यक्तियों ने महाराज के पीछे के दरवाजे से निकलने की व्यवस्था की किन्तु महाराज श्री प्रधान दरवाजे की तरफ से ही प्रभावना के साथ विहार कर शिखरजी पहुंचे।
महाराज श्री का बाल जीवन-आपका नाम बालगौड़ा था। आपका जन्मस्थान दत्तवाड़ है। आपके पिता के ग्राम का नाम कोथली है। यह जिला बेलगाम तहसील चिक्कौड़ी के निकट है। आपकी माता का नाम अक्कावती था। पिता का नाम सतगोड़ा था। बाल-वय में ही आपको पहले माता का वियोग और कुछ ही दिनों के पश्चात् पिता का भी वियोग हो गया। तब आपका लालनपालन आपकी नानी ने दत्तवाड़ में ही किया। दत्तवाड़ में नाना के घर पर रहकर आपने कन्नड़ भाषा में पांचवीं कक्षा तक शिक्षण प्राप्त किया। बिना माता-पिता के बच्चे का समय किस प्रकार व्यतीत होता है उसका दुःख वही जान सकता है।
आपके घर के निकटवर्ती क्षेत्र स्तवननिधि पर श्री १०८ जयकीर्ति महाराज पधारे थे। आप अपने काका की प्रेरणा से उनके दर्शन करने गये थे। आपको श्री महाराज ने बैंगन खाने का त्याग दिलवाया। उसके पश्चात् आपने पायसागर जी महाराज के दर्शन किये और संघों में आने-जाने लगे। जयकीर्ति महाराज ने आपको धार्मिक शिक्षण देना प्रारम्भ किया। आप कभी-कभी उनके पास जाकर पढ़ा करते थे। आप एक जैन पाटिल (ग्राम के मुखिया) के पुत्र हैं। जब आपकी वय करीब २४ या २५ वर्ष की थी तब श्री जयकीर्ति महाराज ने दक्षिण से विहार कर सम्मेदशिखर की यात्रा करने का निश्चय किया। तब आप उनकी व्यवस्था करने को साथ चल दिये। शिखर जी की यात्रा कर आप ने महाराज से दूसरी प्रतिमा के व्रत ले लिये और कहने लगे कि मुझको दिगम्बर मुनि दीक्षा दीजियेगा । लेकिन महाराज ने अस्वीकार कर दिया । संघ ने विहार कर दुर्ग में चातुर्मास किया और समापन कर छिदवाड़ा होते हुए रामटेक पहुंचे । जब आपने दीक्षा की पुन: प्रार्थना की तब श्री जयकोति महाराज ने आपको ऐल्लक दीक्षा देकर अनुगृहीत किया। तब आपकी वय अनुमानतः २६ वर्ष थी। जब संघ नागपुर से विहार कर कुंथलगिरि पर पहुंचा तब आपने पुनः प्रार्थना की कि महाराज मुझे भवसिंधुतारिणी भगवती दिगम्बरी दीक्षा दीजिये। आचार्य श्री ने आपकी दृढ़ता देखकर आपको श्री सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरि के प्रांगण में मुनि दीक्षा दी तथा दूसरे ब्रह्मचारी को ऐलक दीक्षा तथा संघ में दुर्ग से लाई हुई ब्रह्मचारिणी को आर्यिका दीक्षा दी। आपका नामकरण श्री देशभूषण किया, ऐलक का श्री कुलभूषण, माता जी का नाम धर्ममती रक्खा गया । आप
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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