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अष्टचत्वारिंशत्तम पर्व
मालिनी स जयति जयसेनो यो जितारातिसेनः
श्रुत इति महदादियों बलः प्रान्तकल्पे । सगरसकलचक्री योजितो यश्च यश्च
प्रहतचरमदेहो देहमात्रात्मदेहः ॥१४॥ इत्या भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसङ्गहे अजिततीर्थकरसगरचक्रधर
पुराणपरिसमातमित्यष्टचत्वारिंशत्तमं पर्व ॥४८॥ ऐसा ही मित्र बनाना चाहिये ।। १४२ ॥ जो पहले शत्रुओंकी सेनाको जीतनेवाले जयसेन हुए, फिर अच्युत स्वर्गमें महाबल देव हुए, वहाँसे आकर शत्रुओं द्वारा अजेय सगर चक्रवर्ती हुए और अन्तमें अपना चरम शरीर-अन्तिम देह नष्ट कर शरीर प्रमाण आत्माके धारक रह गये ऐसे महाराज सगर सदा जयवन्त रहें॥ १४३॥
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, भगवद् गुणभद्राचार्य द्वारा प्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहमें अजितनाथ तीर्थकर तथा सगर चक्रवर्तीका वर्णन
करनेवाला अड़तालीसवाँ पर्व समाप्त हुआ॥४८॥
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