________________ सिद्ध-सारस्वत पाण्डित्यपूर्ण व्यक्तित्व एवं शोधकर्ताओं के हृदय सम्राट विद्यावारिधि, सिद्धान्तमहोदधि, शोधमनीषी सर्वतोमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान्, मृदुभाषी, सौम्यमूर्ति तथा मिलनसार प्रकृति के स्नेही विद्वान् प्रो. डॉ. श्री सुदर्शन लाल जी अपने व्यवहार से प्रत्येक मिलने वाले को आकर्षित किए बिना नहीं रहते। प्रायः देश की ऐसी कोई साहित्यिक पत्रिका नहीं जिसमें इनका निबंध न छपा हो। सभी प्रकार के निबंधों का एकमात्र लेखन ज्ञान प्रोफेसर साहब में विद्यमान हैं। शोधार्थी छात्रों के लिये तो डॉक्टर साहब कल्पवृक्ष रहे हैं। आपकी अनेक साहित्यिक रचनाएँ एवं उनके साहित्यिक महत्त्वपूर्ण कार्य ऐसे हैं जिनसे उनका अक्षय पाण्डित्य प्रसिद्ध है। जैन संस्कृति के मौलिक तत्त्वों पर तो आपका असमान्य अधिकार है ही परन्तु हिन्दी-संस्कृत-प्राकृतअपभ्रंश-अंग्रेजी जैसी भारतीय भाषाओं के अनुशीलन में भी आपकी अनुपम अभिरुचि है। उसके कारण आपका ज्ञान क्षेत्र इतना विस्तीर्ण हो चुका है जिससे अनेकों स्नातकों ने अभूत पूर्व लाभ प्राप्त किया। आपके आलेखों में विशाल एवं निष्पक्ष हृदय की पूरी-पूरी झलक मिलती है। आपका व्यक्तित्व वस्तुतत्व का परिचयाक एवं धार्मिक मूल्याङ्कन का प्रशंसनीय प्रतीक है। जिस लगन के साथ आप अपना काम करते हैं वह सर्वथा प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। आपने जीवन भर निष्काम भाव से जो साहित्य सेवा की व कर रहे हैं वह सदैव स्मरणीय एवं प्रेरणादायी रहेगी। श्री प्रो. डॉ. सुदर्शन लाल जी का अभिनंदन केवल उन्हीं का अभिनंदन ही नहीं वह तो जैनसंस्कृति एवं जैन श्रावक समाज का एक अद्भुत प्रतिभाशाली विभूति का अभिनंदन है।। हमारी शुभकामना है कि आप दीर्घकाल तक साहित्य सेवा के साथ-समाज-धर्म एवं श्रमण संस्कृति की सेवा के साथ आत्म-साधना में संलग्न रहकर जीवन के क्षणों का सदुपयोग करते रहें। मेरी हार्दिक मंगल कामना है कि प्रो. डॉ. सुदर्शनलाल जी दीर्घायु होकर धर्म समाज साहित्य संस्कृति की सेवा कर यशस्वी बने। मेरी ओर से नम्रता पूर्वक अभिवादन। प्रतिष्ठाचार्य पं. विमल कुमार जैन सोरया प्रधान सम्पादक-वीतरागवाणी मासिक टीकमगढ़ (म.प्र.) जैनदर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् और बुंदेलखण्ड के रत्न मुझे यह जानकर प्रमोद हुआ कि जैनदर्शन के मर्मज्ञ विद्वान बुन्देलखण्ड के रत्न 'डॉ. सुदर्शनलाल जैन' का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। आप अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् के वरिष्ठ सदस्य रहते हुए अनेक पदों को सुशोभित कर चुके हैं। 'देव-शास्त्र-गुरु' आपकी मौलिक कृति का समाज में अच्छा समादर हुआ है। एकीकृत विद्वत्परिषद् में आपने महामंत्री तथा बाद में हमारे साथ उपाध्यक्ष व कार्याध्यक्ष जैसे पदों पर रहकर महान कार्य किया है। बुंदेलखण्ड की इस विभूति पर मुझे गर्व है। आप निरन्तर स्वाध्यायशील रहकर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करें, यही मङ्गल भावना है। डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल अध्यक्ष, अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद एवं महामन्त्री, प. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर 20