________________ सिद्ध-सारस्वत वैदुष्य और सदाशयता की मूर्ति मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला इतिहास विभाग में था और प्रो. सुदर्शन लाल जैन जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ही संस्कृत विभाग में थे और मुझसे वरिष्ठ थे। प्रो. जैन ने कला सङ्काय के सङ्काय प्रमुख के रूप में अपनी प्रशासनिक क्षमता से सभी को अपना बना लिया था और अध्यापक उनके निर्देश एवं परामर्श को गम्भीरता से लेते और अमल करते थे। शैक्षणिक दृष्टि से भी सङ्काय प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल में विभिन्न विभागों में कई कार्य एवं सङ्गोष्ठियाँ हुई। उनके कार्यकाल में स्वयं मैंने भी विभागाध्यक्ष के रूप में भारतीय कला के मनीषी विद्वान् प्रो. वासुदेव शरण अग्रवाल पर एक सङ्गोष्ठी का आयोजन किया था जिसमें प्रत्येक स्तर पर उनका परामर्श और सहयोग मिला, जो अविस्मरणीय है।। प्रो. जैन संस्कृत के साथ ही जैनविद्या के भी अप्रतिम विद्वान् हैं, इसी कारण वाराणसी जैन शोध संस्थान पार्श्वनाथ विद्यापीठ में अवकाश प्राप्ति के बाद प्रो. जैन को निदेशक के रूप में कार्य करने के लिए आमन्त्रित किया गया। संस्थान के निदेशक के रूप में भी शोध, प्रकाशन और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों को प्रो. जैन ने गति प्रदान की। वास्तव में व्यक्ति जब तक कार्यक्षेत्र में प्रशासनिक और अन्य पदों पर कार्यरत रहता है उसका आकलन हम अपनी-अपनी स्वार्थपूर्ति की दृष्टि से करते हैं। वास्तविक आकलन तो अवकाश प्राप्ति के बाद ही हो पाता है। इस दृष्टि से मैं यह कह सकता हूँ कि एक विद्वान् एवं सहृदय व्यक्ति के रूप में आज सभी प्रो. जैन का सम्मान करते हैं और उसी रूप में याद करते हैं। यह प्रो. जैन की उपलब्धि मानी जायेगी, नहीं तो अवकाश प्राप्ति के बाद कौन याद करता है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे अग्रज प्रो. सुदर्शनलाल जैन दीर्घायु हों और विद्याध्ययन के क्षेत्र में सर्वदा हमें अपने अध्ययन एवं शोध का लाभ देते रहें। प्रो. मारुतिनन्दन तिवारी प्रोफेसर एमिरेटस, कला इतिहास, विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी नारिकेल-सम स्वभावी प्रो. सुदर्शन लाल जैन का हमारे घर प्रायः तत्त्वचर्चा हेतु आवागमन होता रहता था। इनका सरल व्यक्तित्व और निर्भीक पाण्डित्य बड़ा प्रभावक होता था। वे स्वभावतः सरल प्रकृति के हैं परन्तु अनुशासन-प्रिय हैं। 'नारिकेलसम' आपका स्वभाव ऊपर से कठोर और अन्तरङ्ग से मधुर है। ये संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, अंग्रेजी, हिन्दी आदि भाषाओं के अच्छे ज्ञाता हैं। बी.एच.यू के 23 विभाग वाले कला सङ्काय के डीन के रूप में आप संस्कृत के साथ मराठी, उर्दू, म्यूजोलॉजी, भारतकला भवन, जर्मन आदि विभागों के भी अध्यक्ष रहे हैं। कला सङ्काय को एक नया रूप प्रदान किया है। कई नये पाठ्यक्रम प्रारम्भ कराये। सामाजिक विज्ञान सङ्काय और विज्ञान सङ्काय के विषयों को पढ़ने की सुविधा भी आपने अपने कला सङ्काय के छात्रों को दिलाई। आपकी प्रशासन क्षमता सबसे बड़ी विशेषता थी अध्यापकसङ्घ और छात्रों से तालमेल बनाए रखते थे। आपकी यह कर्मठता सदा बनी रहे और स्वस्थ रहकर देश की सेवा करते रहें। प्रो. श्रीमती अन्नपूर्णा शुक्ला पूर्व प्राचार्य, महिला महाविद्यालय, बी.एच.यू., वाराणसी