________________ सिद्ध-सारस्वत संस्कारवान् पत्नी के सहभागी पं. सुदर्शनलाल जी का अभिनन्दन किया जा रहा है यह जानकर बहुत प्रसन्ता होती है। साथ ही डॉ. मनोरमा जैन जो पं.जी की धर्म पत्नी हैं, उनका भी सम्मान होना चाहिए। वे एक कुशल गृहिणी, संस्कारवान् धार्मिक महिला हैं। अपने परिवार को बनाना एवं सभी को प्रोत्साहन देना आपका स्वभाव है। आपने साहसिक बाधा-निवारण का कार्य किया है। पं. जी एवं आप सपरिवार दीर्घायु एवं स्वस्थ हों, यही भगवान से कामना है। श्रीमती मिली जैन भोपाल मेरे दादागुरु -डॉ. सुदर्शनलाल जी अभी अधिक समय नहीं बीता मुझे रिसर्च के कार्य से जयपुर जाना पड़ा। वहां टोडरमल स्मारक में डा. बी.एल.सेठी व अखिल बंसल जी से मिलना हुआ।अखिल जी की अलमारी में एक पुस्तक थी जिसका नाम था 'देव, शास्त्र और गुरु' पुस्तक के लेखक थे डा. सुदर्शन लाल जैन। देव-शास्त्र -गुरु के वास्तविक स्वरूप का दिग्दर्शन कराने वाली यह अद्भुत कृति है। अभी 24 से 26 अक्टूबर 2018 तक अ.भा.जैन पत्र सम्पादक सङ्घ के तत्तवावधान में गोवा में त्रय दिवसीय सङ्गोष्ठी का आयोजन मुनि श्री प्रमुखसागर जी ससङ्घ के सान्निध्य में किया गया,मेरा भी इस सङ्गोष्ठी में जाना हुआ। उद्घाटन सत्र में मेरे समीप ही धवल वस्त्रों में जो महानुभाव सपत्नीक विराजमान थे वह सुदर्शनलाल जी ही थे। उनसे इतनी जल्दी मिलना हो जाएगा इसकी उम्मीद ही नहीं थी। हमारा उनका यह साथ एक सप्ताह से अधिक रहा। मुझे पहली बार इतने बडे विद्वान को निकट से जानने का अवसर मिला। बातों ही बातों में यह भी पता चला कि वह मेरे गुरु ज्योति बाबू जी के भी गुरु हैं इस नाते वे मेरे गुरूणाम् गुरु हुए। उनका अभिनन्दन ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है, मेरा भी कुछ लिखने का भाव बना जो मेरी विनम्र भावाञ्जली के रूप में प्रस्तुत है। सहज, सरल व विराट व्यक्तित्व के धनी डॉ.सुदर्शनलाल जी का जन्म म.प्र. में सागर जिले के मञ्जला ग्राम में ननिहाल में हुआ था। आपकी सहधर्मिणी डॉ. मनोरमा जैन कुशल ग्रहिणी के साथ जैनागम की निष्णात विद्वान् हैं। आपने पंचाध्यायी पर रिसर्च कार्य किया। आपके शोधग्रन्थ पर विद्वत्परिषद् ने आपको पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। आपने अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् में कार्याध्यक्ष,उपाध्यक्ष व मंत्री पद पर रहकर जिनागम की सेवा की। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में संस्कृत विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर के पद को सुशोभित किया। 44 से अधिक छात्रों ने आपके अधीनस्थ शोधकार्य कर गुरु का मान बढाया। सन् 2012 में आपको राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपके स्वरचित ग्रन्थों पर आपको चार बार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है जो हम सभी को गौरव का विषय है।आपकी अनेक मौलिक कृतियाँ समाज में समादर पा चुकी हैं। आपकी सम्पादित कृतियाँ भी अनेक हैं। आपकी लेखनी से प्रसूत शताधिक आलेख गोष्ठियों के विषय तो बने ही विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर जन सामान्य के लिए भी उपयोगी रहे। आपका यह अभिनन्दन ग्रन्थ समाज के लिए पथ प्रेरक बनेगा, ऐसा विश्वास है। मैं आपके दीर्घायु की कामना करती हूँ। आप निरामय रहकर समाज को मार्गदर्शन देते रहें, यही भावना है। श्रीमती मीना जैन सम्पादिका,अहिंसा संवाद, रिसर्च स्कालर,उदयपुर 102