________________ (ख) आ. देवनन्दि ने जैनेन्द्रव्याकरण में 'रात्रे: कृति प्रभाचन्द्रस्य' द्वारा जिन प्रभाचन्द्र का उल्लेख किया है वे सम्भवत: वि. की छठी शताब्दी के पूर्व के हैं। (ग) चालुक्यनरेश कीर्तिवर्मा प्रथम (शक सं. 489) ने जिन प्रभाचन्द्र को दान दिया था वे विनयनन्दि आचार्य के शिष्य तथा परलुरु के निवासी थे। इनका समय छठी-सातवीं शताब्दी माना जाता है। (घ) तत्त्वार्थसूत्रकार बृहत्प्रभाचन्द्र के समय आदि के सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इन्होंने गृद्धपिच्छाचार्य उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र का संक्षेपीकरण और सरलीकरण किया है। कहीं-कहीं परिवर्द्धन और परिवर्तन भी है। इनके तत्त्वार्थसूत्र पर अकलङ्क और पूज्यपाद का प्रभाव परिलक्षित होता है। अत: इनका समय अकलङ्क के बाद होना चाहिए। इनके नाम के साथ बृहद् विशेषण तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक अध्याय की पुष्पिका में मिलता है - 'इति बृहत्प्रभाचन्द्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे'। (ङ) अर्हत्प्रवचनसूत्रव्याख्याकार प्रभाचन्द्र बृहत्प्रभाचन्द्र के परवर्ती हैं क्योंकि इन्होंने बृहत्प्रभाचन्द्र के तत्त्वार्थसूत्र का अवलोकन किया है। ऐसा इन दोनों ग्रन्थों की तुलना से ज्ञात होता है। आचार्य अकलङ्क देव ने तत्त्वार्थवार्तिक (5.38) में 'उक्तं च अर्हत्प्रवचनेन' लिखकर अर्हत्प्रवचन का उल्लेख किया है परन्तु अर्हत्प्रवचन के साथ जिन प्रभाचन्द्र का नाम है उन्होंने वस्तुत: प्राचीन अर्हत्प्रवचन का व्याख्यान किया है। अत: लिखा है - अथाऽतोऽर्हत्प्रवचनं सूत्रं व्याख्यास्यामः। (च) चन्द्रोदय के लेखक कवि प्रभाचन्द्र का उल्लेख आदिपुराण में है। देखें पृष्ठ 2, टी.7 2. गुरुः श्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसज्जनः / नन्दताहुरतैकान्तरजाजैनमतार्णवः / / श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेकगुणालयः। प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयाद्रत्ननन्दिपदे रतः।। - प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रशस्तिपद्य 3,4 तथा न्यायकुमुदचन्द्र-प्रशस्ति / 3. वही तथा मङ्गलाचरण 1,2 4. श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताश्मरश्मिच्छटा च्छायाकुङ्कुमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजात लक्ष्मीधवः। न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दाब्ज-रोदोमणिस्थेयात्पण्डित-पुण्डरीकतरणिश्रीमत्प्रभाचन्द्रमाः।। श्रीचतुर्मुखदेवानां शिष्योऽधृष्यः प्रवादिभिः / पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादिगजाङ्कुशः।।- आदिपुराण 1.47 5. आराधना गद्यकोश कथा 89 तथा प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र प्रशस्तियाँ। 6. श्रीभोजदेवराज्ये ... श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योत-परीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति। प्रमेय०, अन्तिम प्रशस्ति / 7. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री) भाग 3, पृ. 48 8. वही तथा भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ. 89,91 9. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 3, पृ. 50-51 10. प्रमेयकमलमार्तण्ड - प्रमेयकमलों को उद्घाटित करने में यह ग्रन्थ सूर्य (मार्तण्ड) के समान है। अत: इसका नाम प्रमेयकमलमार्तण्ड रखा गया है। इसमें प्रमाण, प्रमाणाभास आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख में 6 समुद्देश हैं जिनमें 208 सूत्र हैं। उनकी व्याख्यारूप यह ग्रन्थ 1200 श्लोक प्रमाण बतलाया गया है। 11. न्यायकुमुदचन्द्र - न्यायरूपी कुमुदों को विकसित करने में चन्द्रमा के समान है। इसमें अकलङ्कदेव के लघीयस्त्रय की व्याख्या करते हुए प्रमेयकमलमार्तण्ड की तरह प्रमाण, प्रमाणाभास और प्रमेय का विशेष विचार किया गया है। 12. रत्नकरण्डश्रावकाचार, प्रस्तावना (जुगलकिशोर मुख्तार कृत) 13. जैनन्याय (पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री), पृ. 40. 353