________________ संस्कृतभाषा प्रशिक्षुओं की राजपद्धति 'संस्कृत प्रवेशिका' महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा सम्मानित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के कला संकाय के पूर्व प्रमुख एवं संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष आचार्य प्रवर प्रो. सुदर्शन लाल जैन की संस्कृत व्याकरण, अनुवाद निबन्ध की पुस्तक 'संस्कृत प्रवेशिका' बहुधा प्रशंसित एवं प्रचलित है। आपने विश्वविद्यालयीय अध्यापन की दीर्घ अवधि में प्राप्त अनुभव एवं अपनी अन्तर्गत शास्त्रप्रज्ञा का यह समवेत उन्मेष है। अध्येताओं के संस्कृतभाषा शिक्षण हेतु प्रथम प्रवेश से लेकर उत्तरोत्तर उनके ज्ञान एवं प्रयोग में क्षमतावृद्धि को ध्यान में रखकर उक्त पुस्तक में तीन भाग दिये गये हैं। तथा एक विविध विषयक परिशिष्ट है। प्रथमभाग : व्याकरण - इस भाग में दश अध्याय हैं - (1) वर्णमाला (Alphabet), (2) सन्धि (Euphonce combination of letters), (3) कृत् प्रत्यय (Primary Suffixes), (4) तद्धित प्रत्यय (Secondary Suffixes), (5) स्त्री प्रत्यय (Formation of feminine bases), (6) अव्यय (Indelinable words), (7) कारक एवं विभक्ति (Case and case-ending), (8) समास (Compound) एवं (9) शब्दरूप (Declension) और (10) धातुरूप (Conjugation of verbs) द्वितीय भाग : अनुवाद - इसमें 26 पाठ हैं, जिनमें व्याकरण के विविध विषयों के आधार पर नियमों को दर्शाते हुए हिन्दी के वाक्य संस्कृत में अनुवाद करने हेतु पूछे गये हैं। इस प्रकार प्रत्येक पाठ में पहले व्याकरण से सम्बद्ध कोई नियम, उसके कतिपय हिन्दी से संस्कृत में अनूदित उदाहरण वाक्यों को दर्शाने के पश्चात् उन वाक्यों में प्रयुक्त व्याकरण का कोई नियम दर्शाया गया है। उसके बाद उस नियम से सम्बद्ध (अनुवाद करने हेतु कतिपय हिन्दी वाक्य दिये गये हैं जिससे सम्बद्ध व्याकरण नियमों के अनुसार अनुवाद किया जा सके। इस प्रकार छात्रों में अनुवाद के माध्यम से व्याकरण एवं संस्कृत भाषा के प्रयोगों की क्षमता में वृद्धि होती है। तृतीय भाग : संस्कृत निबन्ध - सरल एवं मानक संस्कृत भाषा में निबन्ध लेखन से भाषाज्ञान की समृद्धि का बोध त्वरित हो जाता है। इस उद्देश्य से इस भाग में 20 शीर्षकों में साक्षात् निबन्ध लिखे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - (1) काशीहिन्दूविश्वविद्यालयः, (2) गङ्गा, (3) वाराणसी, (4) भगवान् बुद्धः, (5) महामना-मदनमोहनमालवीयः, (6) महात्मा-गांधिः, (7) महाकविकालिदासः, (8)सत्सङ्गतिः, (9) सदाचारः, (10) परोपकारः, (11) संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्, (12) मातृभक्तिः देशभक्तिश्च, (13) अनुशासनम्, (14) विद्यार्थिकर्त्तव्यम्, (15) आधुनिक विज्ञानम्, (16) विद्या, (17) सत्यम्, (18) उद्योगः, (19) अहिंसा, (20) गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः। यथोचित विविध सम्बद्ध शोक एवं गद्य आदि के उद्धरणों के साथ लिखे गये ये सरल संस्कृतनिबद्ध निबन्ध छात्रों के लिए तो उपयोगी सिद्ध हुए हैं। शिक्षक एवं अभिभावकों के लिए भी मार्गदर्शक बने हैं। चतुर्थभाग : विविध विषयक परिशिष्ट - संस्कृत प्रवेशिका में दिये गये परिशिष्ट में गणीय कतिपय धातुओं के रूपों के कोष, वाग्व्यवहार शब्दकोष, णिच्, सन् आदि प्रत्ययान्त धातुएँ, कर्मवाच्य एवं भाववाच्य की क्रियायें, आत्मनेपद-परस्मैपद विधान, मूर्धन्यीकरण (णत्व विधि तथा षत्व-विधि), प्रकृति-प्रत्यय, अभ्यास-संग्रह, कतिपय अन्य संस्कृत निबन्ध इस पुस्तक की पूर्णता प्रामाणकिता एवं प्रयोगार्हता को ही साक्षात् संकेतित कर रहे हैं। संस्कृत विभाग के तत्कालीन प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् प्रो. डॉ. वीरेन्द्रकुमार वर्मा के निर्देशन में 1974 ई. में प्रथम वार सिद्ध-सरस्वती प्रकाशन, वाराणसी से यह संस्कृत-प्रवेशिका प्रकाशित हुई। इसकी प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि शीघ्र ही इसके चार संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण प्रकाशित हुए। बाद में इसका प्रकाशन तारा बुक एजेन्सी, वाराणसी 438