Book Title: Siddha Saraswat
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 459
________________ को दे दिया गया। इस पुस्तक की विशिष्टता यह भी है कि इसकी शुभाशंसा लिखने वालों में प्रोफेसर डॉ. विद्यानिवास मिश्र, डॉ. सुरेश चन्द्र पाण्डेय, डॉ. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य, डॉ. रामजी उपाध्याय, डॉ. वाचस्पति उपाध्याय, डॉ. कपिलदेव पाण्डेय, डॉ. प्रभाकर शास्त्री, डॉ. विश्वनाथ भट्टाचार्य, जैसे स्वनाम धन्य विद्वान् हैं, डॉ. कपिलदेव पाण्डेय ने इस पुस्तक की शुभाशंसा में जो कहा है, वह सर्वथा अन्वर्थ है - उत्तरीतुं परीक्षाब्धिं संस्कृतं शिक्षितुं तथा। प्रकामं सेव्यतां छात्रैः संस्कृतैषा प्रवेशिका।। सुधिया सुहृदा सम्यग् ग्रन्थरत्नमकारि यत्। कण्ठे कृत्वा तु तत् प्रेम्णा सर्वे सन्तु सुदर्शनाः / / वस्तुतः संस्कृत भाषा को सरल एवं सहज भाव से सीखने एवं स्नातकादि परीक्षा में सहजता से संस्कतभाषा व्याकरण एवं अनुवाद को लिख पाने की क्षमता की जनक यह संस्कृत प्रवेशिका ऐसा विस्तृत एवं प्रशस्त राजमार्ग है जिसमें बिना बाधा एवं आयास के कोई भी छात्र प्रवेश करने में समर्थ है। विद्वानों के अभिमत - डॉ. विद्या निवास मिश्र, कुलपति, काशी विद्यापीठ, वाराणसी-संस्कृत-प्रवेशिका पाश्चात्य व्याकरण पद्धति से लिखी गयी उपयोगी पुस्तक है। संस्कृत वाक्य-विन्यास, पद-विन्यास और वर्ण-विन्यास को सुगम ढंग से समझाने का प्रयत्न किया गया है। मुझे विस्वास है कि यह संस्कृत-अध्येताओं के बड़े काम की पुस्तक होगी। डॉ. विश्वनाथ भट्टाचार्य, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-विद्वान् ग्रन्थकार ने अध्यापक के रूप में विद्यार्थियों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संस्कृत व्याकरण के दुरूह तत्त्वों का सुबोध प्रतिपादन किया है। संस्कृत-प्रवेशिका का यह चतुर्थ संस्करण इसकी व्यापक उपयोगिता को सप्रमाण करता है। डॉ. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी 'वागीश शास्त्री', निदेशक, अनुसन्धान संस्थान, संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी- डॉ. सुदर्शनलालजैनमहोदयविरचिता संस्कृत-प्रवेशिका तावदद्याधिप्रकाशितेषु व्याकरणानुवादनिबन्धग्रन्थेषु प्रवरा कृतिर्विभाति या खलु शैक्षाणां कोविदानां च नूनमुपकारिका सेत्स्यतीति वाढं प्रत्येति। प्रो. डॉ. सुरेशचन्द्र पाण्डेय, संस्कृत विभाग, इलाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद - मैंने डॉ. जैन की संस्कृतप्रवेशिका को पढ़ा है। पुस्तक छात्रों के लिए परम उपयोगी है, पठनीय है तथा संग्रहणीय है। प्रो. डॉ. हरिनारयण दीक्षित, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, कुमायूँ विश्वविद्यालय, नैनीताल- डॉ. जैन ने संस्कृत भाषा को सीखने और सिखाने के उद्देश्य से बहुत ही अच्छी पुस्तक लिखी है। इससे छात्रों और अध्यापकों को बड़ी सुविधा होगी। डॉ. कृष्णकान्त चतुर्वेदी, संस्कृत विभाग, जबलपुर विश्वविद्यालय, जबलपुर- डॉ. जैन अनुभवी विद्वान् हैं उनकी यह रचना निःसन्देह बहुत अच्छी है। स्नातक छात्रों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी प्रमाणित होगी। प्रो. डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़- मैंने संस्कृतप्रवेशिका का भली-भाँति अवलोकन किया है। इसमें संस्कृत व्याकरण सभी अङ्गों का सुबोध शैली में प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। पे. डॉ. रामजी उपाध्याय, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, सागर विश्वविद्यालय, सागर-संस्कृत व्याकरण सीखने की प्राचीन और नवीन पद्धतियों का समीकरण करने में डॉ. जैन को अद्भुत सफलता मिली है। इस पुस्तक से संस्कृत व्याकरण का अभ्यास करने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ेगी। Dr.S. Bhattacharya, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय - Although the book is an Introduction to sanskrit it contains copious notes and is authenticated with original references at the footnotes. I have therefore no doubt to recommend the book for use by University and Institutions. डॉ. कपिलदेव पाण्डेयः,अध्यक्ष संस्कृत विभाग, आर्य महिला डिग्री कालेज, वाराणसी उत्तरीतुं परीक्षाब्धिं संस्कृतं शिक्षुितं तथा। 439

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