________________ शेते 3. अन्त्य व्यञ्जन का लोप प्राकृत में सर्वत्र (लोप न होनेपर स्वरभक्ति या अनुस्वार), वेदों में क्वचित् / जैसे - वै० पश्चात् पश्चा, उच्चात् > उच्चा, नीचात् > नीचा / प्राकृत में-तावत् > ताव, यावत् > जाव, दिश् > दिशा, शरद् > सरओ, भगवान् > भगवं। 4. धातुओं में गणभेद का अभाव। जैसे - लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत प्राकृत हन्ति हनति हणति, हणइ म्रियते मरते मरते, गरए भिनत्ति भेदति भेदति, भेदई शयते सयते, सेयए 5- आत्मनेपद-परस्मैपद का भेद नहीं है। जैसे - लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत प्राकृत इच्छति इच्छति, इच्छते इच्छति, इच्छते युध्यते युध्यति, युध्यते जुज्झति जुज्झते 6. वर्तमानकाल और भूतकाल के क्रियापदों में प्रयोगों की अनियमितता। वै0 संस्कृत - म्रियते के स्थान पर 'ममार' (वर्तमान के स्थान पर परोक्षभूत)। प्राकृत-प्रेक्षांचक्रे के स्थान पर पेच्छइ (परोक्ष के स्थान पर वर्तमान), शृणोति के स्थान पर सोहीअ (वर्तमान के स्थान पर भूतकाल)। 7. नामरूपों में विभक्ति व्यत्यय, चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी, तृतीया के स्थान पर षष्ठी या सप्तमी। जैसे - लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत प्राकृत राज्ञः तस्मात् 8. अन्य समानता के बीज (देखें, प्राकृत मार्गोपदेशिका, वेचरदास जीवराज दोशी)। जैसे - (1) स्वरमध्यवर्ती क, च का लोप - वै. याचामि > यामि / प्रा. शची > सई। (2) संयुक्त व्यञ्जनों के मध्य में स्वरागम - वै. तन्वम् > तनुवम्, स्वर्ग: > सुवर्गः, रात्र्या > रात्रिया। प्रा. - लघ्वी > लघुवी, क्रिया ) किरिया। (3) ह्रस्व स्वर का दीर्घ होना और दीर्घस्वर का ह्रस्व होना। लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत प्राकृत रायो रायो हरिः हरी हरी वायू वायू / / / वायु: युवाम् युवम् अमात्र अमत्र दुर्लभ दूळभ विश्वासः विश्वासः वीसासो (4) हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय में समानता - वै0 कर्तुम् > कर्तवे। प्रा0 कातवे। (5) संज्ञा शब्द रूपों के प्रत्ययों की समानता - वै0 देवेभिः, पतिना। प्रा0 देवेभि, देवेहि, पतिना। (6) ऋ > र, उ, होना - वै0 वृन्द > वुन्द, ऋषिष्टम् > रजिष्टम् / प्रा० वृन्द > वृन्द, ऋषभ > उसभ, ऋद्धि) रिद्धी, (7) अन्य परिवर्तन - द ड, क्ष > छ, स्प, फ, ह) ध, द्य > ज, इ> ल, आदि। (8) क्रियाओं में सीमित लकारों का प्रयोग। (6) विभक्ति रूपों में वैकल्पिक रूपों का प्रयोग, आदि। संस्कृत और प्राकृत में समानता और विषमता प्राकृत व्याकरण ग्रन्थों में संस्कृत को प्राकृत की प्रकृति मानकर कुछ विषमताओं को बतलाया गया है जिससे स्पष्ट है कि उन विषमताओं को छोड़कर शेष समानतायें हैं। समानतायें अधिक होने से उन्हें छोड़कर यहां कुछ प्रमुख विषमतायें द्रष्टव्य हैं 393