________________ नेमिनाथ 23. पार्श्वनाथ जो शुभ्रता और दिव्यता का प्रतीक है। शङ्ख एक जलचर शुभ्र धवल जीव है। इसे कान पर रखने से आवाज सुनाई देती है। यह ज्ञान का प्रतीक है। सर्प (अहि या साँप) सर्प सर्प घर से बाहर टेढ़ा तथा घर में घुसते ही सीधा हो जाता है। अत: इसे मुक्ति की ऋजुता और संसार की वक्रता का प्रतीक माना गया है। पार्श्वनाथ के शिरोभाग पर 7, 9,11,1000 फणों वाली फणावलि भी देखी जाती है जो कमठ के उपसर्ग और रक्षा की सूचक है। सिंह (सेर) सिंह महावीर का पूर्व भव है। यह पराक्रम का प्रतीक है। महावीर के वर्धमान, वीर, अतिवीर और सम्मति भी नाम हैं। तीर्थङ्कर चिह्न (क्रमशः) 24. महावीर (वर्धमान) सिंह तीर्थङ्कर चिह्नों की इस तालिका को देखने से ज्ञात होता है। कि छ: तीर्थङ्कर चिह्नों (5, 7, 8, 10, 14 और 18 वे तीर्थक्कर चिह्नों) में श्वेताम्बर, दिगम्बर में मतभेद है। इनमें तीन नए चिह्न (क्रौंच, श्रीवत्स और बाज) हैं और दो चिह्न स्वस्तिक और नन्द्यावर्त तीन स्थानों पर (एक जगह एक साथ और दो जगह पृथक्-पृथक्) हैं। इस तरह कुल तीर्थङ्कर चिह्नों की संख्या 24+3==27 हो जाती है। चन्द्र और अर्धचन्द्र को एक ही माना है। तगर (वृक्ष विशेष) का अर्थ यदि विकल्प से मीन (मछली) भी करेंगे तो एक चिह्न और बढ़ने से कुल चिह्न संख्या 27+1=28 हो जायेगी। इन चिह्नों का जब पृथक्-पृथक् वर्गीकरण किया जाता है तो उभय परम्परानुसार निम्न तालिका बनती है - _जलचर थलचर नभचर जल-थलचर वृक्ष या पुष्प ग्रह नक्षत्र रेखाकृति शस्त्र पात्र योग शाकाहारी मांसाहारी अन्य कुलपशु श्वे. 3 10 2 1 2 1 31 1 249 5 2 16 दिग. 4 11 1 1 2 1 2 1 1 24 10 5 2 17 इस विवेचन से स्पष्ट है कि जैनों के यहाँ दो प्रकार की आराध्य अर्हन्त मूर्तियाँ पाई जाती हैं तीर्थङ्करों की तथा सामान्य केवलियों की। सभी मूतियाँ वीतरागता एवं ध्यान की खड्गासन या पद्मासन मुद्रा में पाई जाती हैं। चिह्नों की परम्परा केवल तीर्थङ्कर मूर्तियों में ही पाई जाती है। हिन्दू देवी-देवताओं की तरह इनके शस्त्र, वाहन आदि न होने के कारण इनकी पहचान के लिए स्थापना निक्षेप का आश्रय लेकर पृथक्-पृथक् चिह्नों की परम्परा को विकास हुआ। इस सन्दर्भ में पौराणिक हेतु के अलावा अन्य हेतुओं का भी समावेश संभव है। श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध अवधूतोपाख्यान में अवधूत ऋषि ने पृथिवी, वायु, आकाश, जल, आग, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतङ्गा, मधुमक्खी, हाथी आदि 24 गुरु जैसों से विवेक बुद्धि प्राप्त की थी। वैसे ही इन चिह्नों से हमें जो शिक्षा मिलती है उसका भी चिन्तन करना चाहिए क्योंकि चिह्नों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सन्दर्भ - 1. जटामुकुट या कन्धों पर लहराते केश-गुच्छ से आदिनाथ की, पञ्चफण सर्प से सुपार्श्वनाथ की तथा सप्तफण सर्प छत्र से पार्श्वनाथ की सामान्यतः पहचान होती है। 2. कुछ विलक्षण प्रतिमायें-कुण्डलपुर की सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा जिस पर उल्टा स्वस्तिक का चिह्न है जिसे नन्द्यावर्त मान लिया गया है। 230