________________ जैन और बौद्ध धर्म-दर्शनों में साम्य-वैषम्य भारतीय दर्शनों में जैन तथा बौद्ध दोनों की गणना नास्तिक दर्शनों में की जाती है, जो सर्वथा अनुचित है। इन दोनों को अवैदिक दर्शन या श्रमण दर्शन कहना युक्तियुक्त है। ये दोनों दर्शन स्वर्ग, नरक, मोक्ष, पुनर्जन्म आदि सभी कुछ मानते हैं। सृष्टिकर्ता ईश्वर को न मानने से इन्हें नास्तिक नहीं कहा जा सकता है, अन्यथा सांख्यदर्शन और मीमांसादर्शन को भी नास्तिक कहना होगा। ये दोनों धर्म परम्परा से सनातन हैं, परन्तु वर्तमान शासनकाल की अपेक्षा महावीर और बुद्ध द्वारा प्रचारित माने जाते हैं। कभी भ्रमवश कुछ विद्वान् इन दोनों को एक मानते थे, परन्तु दोनों पृथक्-पृथक् हैं। इन दोनों में पाये जाने वाले प्रमुख साम्य-वैषम्य के बिन्दु निम्न प्रकार हैं - 1. भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध दोनों समसामयिक हैं। महावीर का जन्म ई.पू. 599 में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था तथा निर्वाण ई.पू. 527 में कार्तिक कृष्णा अमावस्या को हुआ था। केवल ज्ञान ई.पू. 557 में वैशाख शुक्ला दशमी को हुआ था। जीवन काल लगभग 72 वर्ष था तथा धर्मोपदेश (तीर्थ-प्रवर्तन) काल 29 वर्ष 5 मास 20 दिन था। डॉ.नन्दकिशोर देवराज के अनुसार भगवान् बुद्ध का जन्म ई.पू. 623 में वैशाख पूर्णिमा को हुआ था। पैंतीस वर्ष की अवस्था में आषाढ़ पूर्णिमा को बोधिलाभ (केवलज्ञान) प्राप्त करके तथा 45 वर्षों तक धर्मचक्र प्रवर्तन करते हुए 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 543 में वैशाख पूर्णिमा को निर्वाण प्राप्त किया था। परन्तु यह समय निर्णय सही नहीं है। ये भगवान महावीर के समकालीन या कुछ परवर्ती है। डॉ. बी.एन. सिंह ने जन्म 563 ई.पू. माना है तदनुसार 483 ई. पू. निर्वाण सम्भव है। 2. महावीर (जन्म नाम वर्द्धमान) के पिता का नाम था राजा 'सिद्धार्थ' तथा प्रमुख गणधर का नाम था 'गौतम'। बुद्ध के जन्मकाल का नाम था सिद्धार्थ तथा मौसी द्वारा पालित होने से गौतम ऋषि के गोत्र में उत्पन्न होने से गौतम नाम पड़ा था। 3. दोनों के जन्म तथा विहार-क्षेत्र का सम्बन्ध प्रमुख रूप से बिहार तथा उत्तर प्रदेश के आस-पास रहा है। 4. जैन धर्म में तत्कालीन 363 मतवादों को तथा बौद्ध धर्म में 62 मतवादों का उल्लेख मिलता है, जिनमें पार्श्वनाथ का चतुर्याम भी सम्मिलित था। 5. जैन धर्म में 24 तीर्थकर हुए तथा बौद्ध धर्म में बुद्ध के 24 अवतार। 6. जैन धर्म में महावीर के उपदेशों को उनके गणधरों ने ग्रन्थ रूप में (अङ्ग और अङ्गबाह्य) गुम्फित किया, जिसे मौखिक परम्परा से अग्रसर होने के कारण 'श्रुत' कहा गया। इनकी भाषा अर्ध-मागधी थी। बौद्ध परम्परा में भी उनके अनुयायियों (आचार्यो) ने बुद्ध के उपदेशों को त्रिपिटक के रूप में निबद्ध किया जिनका सङ्कलन पालिभाषा (प्राकृत का एक प्रकार) में किया गया। 7. दोनों ने अपने उपदेश तत्कालीन जनभाषा में दिए। 8. दोनों संसार के प्राणियों के दुःखों से द्रवित हुए और वैराग्य का मार्ग स्वीकार किया। 9. दोनों धर्मों में अहिंसा, वीतरागता और करुणा का उपदेश प्रधानता से दिया गया। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को आवश्यक बतलाया। 10. संसार और मोक्ष के कारण-कार्य की व्याख्या जैन धर्म में सात तत्त्वों के रूप में और बौद्ध धर्म में चार आर्यसत्यों के रूप में की गई। चार आर्यसत्य हैं दुःख, दुःखसमुदय (दु:ख के कारण), दुःखनिरोध और दुःखनिरोध मार्ग। सात तत्त्वों में भी यही है जीव, अजीव (इन दोनों के संयोग से ही दुःख रूप संसार बनता है), आस्रव, बन्ध (ये दोनों दु:ख के कारण हैं), संवर, निर्जरा (ये दोनों दु:खनिरोध का मार्ग बनते हैं) और मोक्ष (दु:खनिरोध या निर्वाण)। 11. महावीर की परम्परा में चन्द्रगुप्त के शासनकाल तक (महावीर निर्वाण के 162 वर्षों तक) सङ्घ में विघटन का सूत्रपात नहीं हुआ। बौद्ध धर्म में भी 100 वर्षों तक सङ्घभेद नहीं हुआ। यहीं से सङ्घभेद को सूत्रपात हुआ और जो 242