________________ सम्बन्धित हैं तथा (3) अष्टम वर्ग राजा श्रेणिक की काली आदि 10 भार्याओं की कथा से सम्बन्धित हैं। (घ) तुलनात्मक विवरण स्थानाङ्ग, तत्त्वार्थवार्तिक, धवला, जयधवला और अङ्गप्रज्ञप्ति में नमि आदि भगवान महावीर कालीन 10 अन्तकृतों के नाम प्रायः एक समान मिलते हैं जिससे ज्ञात होता है कि मूल में इनका वर्णन रहा है। समवायाङ्ग, नन्दी और विधिमार्गप्रपा में इन नामों का उल्लेख नहीं मिलता है। दिगम्बर ग्रन्थों में एक स्वर से कहा गया है कि इसमें न केवल भगवान महावीर-कालीन 10 अन्तकृतों का वर्णन रहा है अपितु चौबीसों तीर्थङ्करों के काल के 10-10 अन्तकृतों का वर्णन रहा है। वर्तमान ग्रन्थ में न तो 10 अध्ययन हैं और न नमि आदि अन्तकृतों का वर्णन है। यह परवर्ती रचना है जिसमें नमि और महावीर-कालीन कुछ अन्तकृतों का वर्णन है परन्तु पूर्वोक्त नमि आदि नामों से भिन्नता है। स्थानाङ्ग से इसके केवल 10 अध्ययनों का बोध होता है जबकि समवायाङ्ग से 10 अध्ययनों के अतिरिक्त 7 वर्गों का भी बोध होता है। नन्दी में केवल 8 वर्गों का उल्लेख है, अध्ययनों का नहीं / विधिमार्गप्रपा में 8 वर्गों और उसके अवान्तर अध्ययनों का कथन है जो वर्तमान आगम के अनुरूप है सिर्फ द्वितीय वर्ग की अध्ययनसंख्या में अन्तर है। 9-अनुत्तरौपपातिकदशा (क) श्वेताम्बर ग्रन्थों में1. स्थानाङ्ग में1 - अनुत्तरौपपातिकदशा में 10 अध्ययन हैं-ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। 2. समवायाङ्ग में2 - अनुत्तरौपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धियाँ, भोग-परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतपरिग्रह, तपोपधान, पर्याय, प्रतिमा, सल्लेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अनुत्तर विमानों में उत्पाद, सुकुलोत्पत्ति, पुनः बोधिलाभ और अन्तक्रिया का वर्णन है। परम मङ्गलकारी, जगत् हितकारी तीर्थङ्करों के समवसरण आदि का वर्णन है। उत्तम ध्यान योग से युक्त होते हुए जीव जिस प्रकार अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं, वहाँ जैसे विषयसुख का भोग करते हैं उन सबका वर्णन इसमें किया गया है। पश्चात् वहाँ से च्युत होकर वे जिस प्रकार संयम धारणकर अन्तक्रिया करेंगे उस सबका वर्णन है। इस नवम अङ्ग में एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, तीन वर्ग, दश उद्देशनकाल, दश समुद्देशनकाल और संख्यात लाख पद हैं। शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है। 3. नन्दीसूत्र में 3- इसमें अनुत्तरौपपातिकों के नगरादि का वर्णन है। 1 श्रुतस्कन्ध, 3 वर्ग, 3 उद्देशनकाल, 3 समुद्देशनकाल तथा संख्यात सहस्र पद हैं। शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है। 4. विधिमार्गप्रपा में4- इसमें 1 श्रुतस्कन्ध ओर 3 वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में क्रमश: 10, 13 और 10 अध्ययन हैं / जालि आदि अध्ययनों के नाम हैं। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में1. तत्त्वार्थवार्तिक में5 - देवों का उपपाद जन्म होता है। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पाँच अनुत्तर देवों के विमान हैं। प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में अनेक प्रकार के दारुण उपसगों को सहनकर पूर्वोक्त अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले 10-10 मुनियों का इसमें वर्णन होने से इसे अनुत्तरौपपादिक कहते हैं। महावीर के तीर्थ के 10 अनुत्तरौपपातिक हैं-ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र। अथवा अनुत्तरौपपादिकों की दशा, आयु, विक्रिया आदि का इसमें वर्णन है। 2. धवला में - इसमें 9244000 पद हैं, जिनमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में उत्पन्न होने वाले 10-10 अनुत्तरौपपादिकों का वर्णन है। महावीर के तीर्थ में उत्पन्न होने वाले 10 अनुत्तरौपपादिकों के नाम 'उक्तं च तत्त्वार्थभाष्ये' कहकर तत्त्वार्थभाष्यानुसार दिए हैं। 3. जयधवला में7 - इसमें चौबीस तीर्थङ्करों के तीर्थ में चार प्रकार के दारुण उपसर्ग सहनकर अनुत्तर विमान को प्राप्त हुए 10-10 मुनिवरों का वर्णन है। 4. अङ्गप्रज्ञप्ति में88 - इसमें 9244000 पदों के द्वारा प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में उत्पन्न 10-10 अनुत्तरौपपादिकों का वर्णन है / वर्धमान तीर्थङ्कर के तीर्थ के 10 अनुत्तरौपपादिक मुनि हैं ऋजुदास, शालिभद्र, सुनक्षत्र, अभय, धन्य, वारिषेण, 318