________________ बतलाई गई है। कहीं-कहीं क्रम और नाम में यत्किचित् परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। यहाँ पृष्टश्रेणिका आदि परिकों के भेद गिनाए हैं जबकि समवायाङ्ग में नहीं हैं। दृष्टिवाद की पदसंख्या यहाँ संख्यात सहस्र बतलाई है। 4. विधिमार्गप्रपा में13 - दृष्टिवाद को उच्छिन्न बतलाकर यहाँ कुछ भी कथन नहीं किया है। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में1. तत्त्वार्थवार्त्तिक में14 - दृष्टिवाद में 363 जैनेतर दृष्टियों (कुवादियों) का निरूपण करके जैनदृष्टि से उनका खण्डन किया गया है / कौत्कल, काणेविद्धि, कौशिक, हरिस्मश्रु, मांछपिक, रोमश, हारीत, मुण्ड, आश्वलायन आदि क्रियावादियों के 180 भेद हैं। मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गलायन आदि अक्रियावादियों के 84 भेद हैं। साकल्य, वाल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्र, नारायण, कठ, माध्यन्दिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, अम्बष्ठि, कृदौविकायन, वसु, जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के 67 भेद हैं। वशिष्ठ, पराशर, जतुकर्णि, वाल्मीकि, रौमहर्षिणि, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, इन्द्रदत्त, अयस्थुण आदि वैनयिकों के 32 भेद हैं। कुल मिलाकर 363 मतवाद हैं। दृष्टिवाद के 5 भेद हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका / इन 5 भेदों में से केवल पूर्वगत के उत्पादपूर्व आदि 14 भेदों का तत्त्वार्थवातिक में विवेचन है, शेष का नहीं, जो संक्षेप से निम्न प्रकार है - (1) उत्पादपर्व-काल, पुद्गल, जीव आदि द्रव्यों का जब जहाँ और जिस पर्याय से उत्पाद होता है, उसका वर्णन है। (2) अग्रायणी पूर्व- क्रियावादियों की प्रक्रिया और अङ्गादि के स्व-समयविषय का वर्णन है। (3) वीर्यप्रवाद पूर्व - छद्मस्थ और केवली की शक्ति, सुरेन्द्र और दैत्येन्द्र की ऋद्धियाँ, नरेन्द्र, चक्रवर्ती और बलदेव की सामर्थ्य तथा द्रव्यों के लक्षण हैं। (4) अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व - पाँच अस्तिकायों का अर्थ तथा नयों का अनेक पर्यायों के द्वारा 'अस्ति-नास्ति' का विचार। अथवा छहों द्रव्यों का भावाभाव-विधि से, स्व-पर पर्याय से, अर्पित-अनर्पितविधि से विवेचन है। (5) ज्ञानप्रवाद पूर्व- पाँचों ज्ञानों तथा इन्द्रियों का विवेचन है। (6) सत्यप्रवाद पूर्व-वचनगुप्ति, वचनसंस्कार के कारण, वचनप्रयोग, बारह प्रकार की भाषायें, दस प्रकार के सत्य तथा वक्ता के प्रकारों का वर्णन है। (7) आत्मप्रवाद पूर्व- आत्मा के अस्तित्त्व, नास्तित्त्व, नित्यत्व, अनित्यत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि धर्मों का तथा छ: प्रकार के जीवों के भेदों का सयुक्तिक विवेचन है। (8) कर्मप्रवाद पूर्व- कर्मों की बन्ध, उदय, उपशम आदि दशाओं का तथा उनकी स्थिति आदि का वर्णन है। (9) प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व- व्रत, नियम, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, तप, कल्पोपसर्ग, आचार, प्रतिमा आदि का तथा मुनित्व में कारण, द्रव्यों के त्याग, आदि का वर्णन है। (10) विद्यानुवाद पूर्व-समस्त विद्याएँ (अङ्गष्ठप्रसेना आदि 700 अल्पविद्याएँ और महारोहिणी आदि 500 महाविद्याएँ), अन्तरिक्ष आदि आठ महा निमित्त, उनका विषय, लोक (रज्जुराशि विधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोकप्रतिष्ठा), समुद्धात आदि का विवेचन है। (11) कल्याणनामधेय पूर्व - रवि, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों का गमन, शकुन व्यवहार, अर्हत्, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती आदि के गर्भावतरण आदि महाकल्याणकों का वर्णन है। (12) प्राणवाय पूर्व - कायचिकित्सा, अष्टाङ्ग आयुर्वेद, भूतिकर्म, जाङ्गुलिप्रक्रम (इन्द्रजाल), प्राणापान-विभाग का वर्णन है। (13) क्रियाविशाल पूर्व - लेख, 72 कलायें, 64 स्त्रियों के गुण, शिल्प, काव्य गुण, दोष, क्रिया, छन्दोविचितिक्रिया और क्रियाफलभोक्ता का विवेचन है। (14) लोकबिन्दुसार पूर्व-आठ व्यवहार, चार बीज, परिकर्म, राशि (गणित) तथा समस्त श्रुतसम्पत्ति का वर्णन हैं। 2. धवला में15 - अनेक दृष्टियों का वर्णन होने से 'दृष्टिवाद' यह गुण नाम है। अक्षर, पद-सङ्घात, प्रतिपत्ति और अनुयोगद्वार की अपेक्षा यह संख्यात संख्या प्रमाण है और अर्थ की अपेक्षा अनन्त संख्या प्रमाण है। इसमें तदुभयवक्तव्यता है। पूर्वोक्त 363 मतों का वर्णन तथा उनका निराकरण है। दृष्टिवाद के 5 अधिकार हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका।। (क) परिकर्म-परिकर्म के 5 भेद हैं-चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति / (1) 323