________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और बिम्ब की ऊँचाई का वर्णन है। (2) सूर्य प्रज्ञप्ति में सूर्य की आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति, बिम्ब की ऊँचाई, दिन, किरण और प्रकाश का वर्णन है। (3) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में जम्बूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि के मनुष्यों, तिर्यञ्चों, पर्वत, द्रह, नदी, बेदिका, वर्ष, आवास और अकृत्रिम जिनालयों का वर्णन है। (4) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में उद्धारपल्य से द्वीप और सागर के प्रमाण का द्वीप-सागरान्तर्गत अन्य पदार्थों का वर्णन है। (5) व्याख्याप्रज्ञप्ति में रूपी अजीवद्रव्य (पुगल), अरूपी अजीवद्रव्य (धर्म, अधर्म, आकाश और काल), भव्यसिद्ध और अभव्यसिद्ध जीवों का वर्णन है। इनके पदों का पृथक्-पृथक् पदप्रमाण भी बताया गया है। (ख) सूत्र-इसमें 88 लाख पदों के द्वारा जीव अबन्धक ही है, अलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, निर्गुण ही है, सर्वगत ही है, अणुप्रमाण ही है, नास्तिस्वरूप ही है, अस्तिस्वरूप ही है, पृथिवी आदि पाँच भूतों के समुदायरूप से उत्पन्न होता है, चेतना-रहित है, ज्ञान के बिना भी सचेतन है, नित्य ही है, अनित्य ही है, इत्यादि रूप से आत्मा का [पूर्वपक्ष के रूप में] वर्णन है। त्रैराशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद और पुरुषवाद का भी वर्णन है। 'सूत्र के 88 अधिकारों में से केवल चार अधिकारों का अर्थनिर्देश मिलता है-अबन्धक, त्रैराशिकवाद, नियतिवाद और स्वसमय।16 (ग) प्रथमानुयोग-इसमें 5 हजार पदों के द्वारा पुराणों का वर्णन किया गया है। जिनवंश और राजवंश से सम्बन्धित 12 पुराणों का वर्णन है / जैसे-अर्हन्तों (तीर्थङ्करों), चक्रवर्तियों, विद्याधरों, वासुदेवों (नारायण-प्रतिनारायणों), चारणों, प्रज्ञाश्रमणों, कुरुवंश, हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, काश्यपवंश, वादियवंश और नाथवंश। (घ) पूर्वगत-95 करोड़ 50 लाख और 5 पदों में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य आदि का वर्णन है। उत्पाद पूर्व आदि 14 पूर्वो की विषयवस्तु का वर्णन प्रायः तत्त्वार्थवार्तिक से मिलता है परन्तु यहाँ विस्तार से कथन है तथा पदादि की संख्या का भी उल्लेख है।। (ङ) चूलिका-जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता के भेद से चूलिका के 5 भेद हैं। (1) जलगता में जलगमन और जलस्तम्भन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या आदि का वर्णन है। (2) स्थलगता में भूमिगमन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या आदि का वर्णन है। वास्तुविद्या और भूमिसम्बन्धी शुभाशुभ कारणों का भी वर्णन है। (3) मायागता में इन्द्रजाल आदि का वर्णन है। (4) रूपगता में सिंह, घोड़ा, हरिण आदि के आकाररूप से परिणमन करने के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या का वर्णन है। चित्रकर्म, काष्ठ, लेप्यकर्म आदि के लक्षणों का भी वर्णन है। (5) आकाशगता में आकाशगमन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चरण का वर्णन है। सभी चूलिकाओं का पद-प्रमाण 20989200x5 = 104946000 है। 3. जयधवला में17 - दृष्टिवाद नाम के 12वें अङ्गप्रविष्ट में 5 अर्थाधिकार हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका। परिकर्म के 5 अर्थाधिकार हैं-चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति / सूत्र में 88 अर्थाधिकार हैं परन्तु उनके नाम ज्ञात नहीं हैं क्योंकि वर्तमान में उनके विशिष्ट उपदेश का अभाव है। 18 प्रथमानुयोग में 24 अर्थाधिकार हैं क्योंकि 24 तीर्थङ्करों के पुराणों में सभी पुराणों का अन्तर्भाव हो जाता है। चूलिका में 5 अर्थाधिकार हैं-जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता20 / पूर्वगत के 14 अर्थाधिकार हैंउत्पादपूर्व आदि धवलावत्। प्रत्येक पूर्व के क्रमश: 10, 14, 8, 18, 12, 12, 16, 20, 30, 15, 10, 10, 10, 10 वस्तुएँ (महाधिकार) हैं। प्रत्येक वस्तु में 20-20 प्राभूत (अवान्तर अधिकार) हैं और प्रत्येक प्राभृत में 24-24 अनुयोगद्वार हैं। यह भी लिखा है कि 14 विद्यास्थानों (14 पूर्वो) के विषय का प्ररूपण जानकर कर लेना चाहिए।21 पृष्ठ 128-136 पर इनके विषय का प्ररूपण किया गया है जो प्रायः धवला से मिलता है। 4. अप्रज्ञप्ति में122 - इसमें 363 मिथ्यावादियों की दृष्टियों का निराकरण होने से इसे दृष्टिवाद कहा गया है। पदों की संख्या 1086856005 है। दृष्टिवाद के 5 प्रकार हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्व, प्रथमानुयोग और चूलिका। यद्यपि यहाँ पर पूर्व को प्रथमानुयोग के पहले लिखा है परन्तु विषय-विवेचन करते समय पूर्वो के विषय का विवेचन प्रथमानुयोग के बाद किया है। इसमें सूत्र के 88 लाख पद कहे हैं तथा इसे मिथ्यादृष्टियों के मतों का विवेचक कहा है। कालवाद, ईश्वरवाद, नियतिवाद आदि को नयवाद कहा है। इसका आधार धवला और जयधवला है। (ग) वर्तमान रूप वर्तमान में यह आगम अनुपलब्ध है। दिगम्बरों के अनुसार द्वितीय अग्रायणीपूर्व के चयनलब्धि नामक 324