Book Title: Siddha Saraswat
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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________________ 10. समवायाङ्ग 25.168 35. तत्त्वार्थ0 1.20, पृ0 73 11. नन्दीसूत्र, सूत्र 46 36. धवला 1.1.2, पृ0 101 12. विधिमार्गप्रपा पृ. 50-51 37. जयधवला गाथा 1, पृ0 113. 13. तत्त्वार्थवार्तिक 1.20, पृ072-73 38. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 23-28, पृ. 261-262. 14. धवला 1.1.2 पृ0 110 39. समवायाङ्गसूत्र 522-525. 15. जयधवला गाथा, 1, पृ0 111 40. नन्दीसूत्र 49. 16. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 15, 19 पृ0 260 41. विधिमार्गप्रपा, पृ0 52. 17. नवण्हं बंभचेराणं एकावन्नं उद्देसणकाला पण्णत्ता। समवायाङ्ग 42. तत्त्वार्थ. 1.20, पृ0 73, 51.280 43. धवला0 1.1.2, पृ0 102. 18. सीलङ्कापरियमारण पुण एवं अट्ठमं विमुक्खज्झयणं सत्तयं 44. जयधवला गाथा 1, पृ0 113. उवहाणसुयं नवमं ति। विधिमार्गप्रपा, पृ0 51 45. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 29-35, पृ0 263-264. 19. आचाराङ्ग नियुक्ति गाथा 290 46. समवा० सूत्र 526-5293; 84-395 20. समवायाङ्गसूत्र 515-518 47. समवा0 सूत्र 84-395 21. वही, 23.155; 57.300 48. नन्दीसूत्र 50 22. नन्दीसूत्र 47 49. विधिमार्गप्रपा, पृ0 53-54 23. विधिमार्गप्रपा पृ0 51-52 50. एकतालीस शतकों का 138 शतकों में विभाजन-33 से 39 तक 24. तत्त्वार्थ0 1.20, पृ0 73 के शतक 12-12 शतकों के समवाय होने से (7x12 = 84) 25. धवला 1.1.2, पृ073 84 शतक, 40वां शतक 21 शतकों की समवाय है, शेष 1 से 32 26. जयधवला गाथा 1, पृ0 112 तक तथा 41वाँ प्रत्येक 1-1 शतक होने से 33 शतक हैं। ( कुल 27. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 20-22, पृ0 261 84+21+ 33 =138) 28. प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी टीका, पृ0 56-58 51. तत्त्वार्थ0 1.20, पृ0 73 29. 1. समय (त्रिकाल स्वरूप), 2. वेदालिंग-(त्रिवेदों का स्वरूप), 52. धवला 1.1.2, पृ0 102. 3. उपसर्ग (4 प्रकार के उपसर्ग ), 4. स्त्रीपरिणाम (स्त्रियों का 53. जयधवला गाथा 1, पृ0 114. स्वभाव), 5. नरकान्तर (नरकादि चतुर्गति), 6. वीरस्तुति (2454. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 36-38, पृ0 264. तीर्थङ्करों का गुण-कीर्तन), 7. कुशीलपरिभाषा (कुशीलादि 5 55. तत्त्वार्थ0 4.26. पार्श्वस्थों का स्वरूप वर्णन), 8. वीर्य-(जीवों के वीर्य के तारतम्य 56. जैन साहित्य इ0 पूर्वपीठिका, पृ0 657 का वर्णन), 9. धर्म (धर्माधर्म का स्वरूप), 10. अग्र (श्रुताग्रपद 57. गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 356. वर्णन), 11. मार्ग (मोक्ष तथा स्वर्ग का स्वरूप एवं कारण), 12. 58. समवा0 सूत्र 530-534 समवसरण (24 तीर्थङ्करों के समवसरण), 13. त्रिकालग्रन्थ 59. नन्दीसूत्र 51 (त्रिकालगोचर अशेषपरिग्रह का अशुभत्व), 14. आत्मा- 60. विधिमार्गप्रपा पृ0 55 (जीवस्वरूप), 15. तदित्थगाथा (वादमार्ग प्ररूपण), 16. 61. तत्त्वार्थ0 1.20 पृ0 73 पुण्डरीक-(स्त्रियों के स्वर्गादि स्थानों के स्वरूप का वर्णन), 17. 62. धवला 1.1.2 पृ0 102-103 क्रियास्थान-(13 क्रियास्थानों का वर्णन), 18. आहारकपरिणाम- 63. जयघवला गाथा 1 पृ0 114-115 (सभी धान्यों के रस, वीर्य विपाक तथा शरीरगत सप्तधातुस्वरूप 64. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 39-44 पृ0 265-266 वर्णन), 19. प्रत्याख्यान-(सर्वद्रव्य विषयों से निवृत्ति), 20, 65. स्थानाङ्गसूत्र 10.112 अनगारगुणकीर्तन-(मुनियों के गुण वर्णन), 21. श्रुत- 66. समवायाङ्गसूत्र 535-538 (श्रुतमाहात्म्य), 22. अर्थ-( श्रुतफल वर्णन ) और 23. नालंदा- 67. नन्दीसूत्र 52 (ज्योतिष्कदेवों के पटलों का वर्णन)। प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी टीका, 68. विधिमार्गप्रपा पृ0 56 पृ0 56-581 69. तत्त्वार्थ01.201073 30. जैनसाहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ0 644 70. धवला 1.1.1 पृ0 103 31. जयधवला पृ0 120 71. जयधवला गाथा 1 पृ0 118 32. समवायाङ्गसूत्र 519-521 72. अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा 45-47 पृ0 266 33. नन्दीसूत्र 48 73. स्थानाङ्गसूत्र 10.113 34. विधिमार्गप्रपा, पृ0 52 327

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