________________ (चिल्लक), पाल और अम्बडपुत्र। 2. समवायाङ्ग में4 - इसमें कर्मों का अन्त करने वाले अन्तकृतों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धिविशेष, भोग-परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतपरिग्रह, तप-उपधान, बहुत प्रकार की प्रतिमायें, क्षमा, आर्जव, मार्दव, सत्य, शौच, सत्रह प्रकार का संयम, ब्रह्मचर्य, आकिञ्चन्य, तप, त्याग समितियों तथा गुप्तियों का वर्णन है। अप्रमादयोग, स्वाध्याय और ध्यान का स्वरूप, उत्तम संयम को प्राप्त करके परीषहों को सहन करने वालों को चार घातियाँ कर्मों के क्षय से प्राप्त केवल ज्ञान, कितने काल तक श्रमण पर्याय और केवलि पर्याय का पालन किया, किन मुनियों ने पादोपगमसंन्यास लिया और कितने भक्तों का छेदनकर अन्तकृत मुनिवर अज्ञानान्धकार से विप्रमुक्त हो अनुत्तर मोक्षसुख को प्राप्त हुए, उन सबका विस्तार से वर्णन है। अङ्गों के क्रम में यह आठवाँ अङ्ग है। इसमें 1 श्रुतस्कन्ध, 10 अध्ययन, 7 वर्ग, 10 उद्देशनकाल, 10 समुद्देशनकाल और संख्यात हजार पद हैं। शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है। 3. नन्दीसूत्र में/5- इसमें अन्तकृतों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक-परलोक ऋद्धिविशेष, भोग-परित्याग, प्रव्रज्या, पर्याय (दीक्षा पर्याय), श्रुतपरिग्रह, तपोपधान, सल्लेखना, भक्त प्रत्याख्यान, पादपोपगमन और अन्तक्रिया (शैलेशीअवस्था) का वर्णन है। इस आठवें अङ्ग में एक श्रुतस्कन्ध, 8 वर्ग, 8 उद्देशनकाल और 8 समुद्देशनकाल हैं। शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है / / 4. विधिमार्गप्रपा में - इस आठवें अङ्ग में 1 श्रुतस्कन्ध तथा 8 वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में क्रमश: 10,8,13,10,10,16,13 और 10 अध्ययन हैं। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में 1. तत्त्वार्थवार्त्तिक में" -जिन्होंने संसार का अन्त कर दिया है उन्हें अन्तकृत कहते हैं। चौबीसों तीर्थङ्करों के समय में होने वाले 10-10 अन्तकृत अनगारों का वर्णन है जिन्होंने दारुण उपसर्गों को सहनकर मुक्ति प्राप्त की। भगवान महावीर के समय के 10 अन्तकृत हैं-नमि, मतङ्ग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, किष्कम्बल, पाल और अम्बष्ठपुत्र / अन्तकृतों की दशा अन्तकृद्दशा है, अत: इसमें अर्हत्, आचार्य और सिद्ध होने वालों की विधि का वर्णन है। 2. धवला में8 - 2328000 पदों के द्वारा इसमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में नाना प्रकार के दारुण उपसर्गों को सहनकर, प्रातिहायों ( अतिशय-विशेषों ) को प्राप्तकर निर्वाण को प्राप्त हुए 10-10 अन्तकृतों का वर्णन है। तत्त्वार्थभाष्य में कहा है-"संसारस्यान्तःकृतो येस्तेऽन्तकृतः" (जिन्होंने संसार का अन्त कर दिया है, वे अन्तकृत हैं)। वर्धमान तीर्थङ्कर के तीर्थ में होने वाले 10 अन्तकृत हैं-नमि, मतङ्ग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलोक, वलीक, किष्कम्बिल, पालम्ब और अम्बष्टपुत्र / इसी प्रकार ऋषभदेव आदि तीर्थङ्करों के तीर्थ में दूसरे 10-10 अन्तकृत हुए हैं। इन सबकी दशा का इसमें वर्णन हैं। 3. जयधवला में - इसमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में चार प्रकार के दारुण उपसगों को सहन कर और प्रातिहार्यों को प्राप्तकर निर्वाण को प्राप्त हुए सुदर्शन आदि 10-10 साधुओं का वर्णन है। 4. अङ्गप्रज्ञप्ति में - अन्तकृत में 2328000 पद हैं, जिनमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ के 10-10 अन्तकृतों का वर्णन है / वर्धमान तीर्थङ्कर के तीर्थ के 10 अन्तकृतों के नाम धवलावत् है। (ग) वर्तमान रूप अन्तकृत शब्द का अर्थ है-संसार का अन्त करने वाले। इसका उपोद्धात ज्ञाताधर्मकथावत् है। इसमें 8 वर्ग हैं प्रथम वर्ग- इसमें गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, थिमिअ, अयल, कम्पिल्ल, अक्षोभ, पसेणई और विष्णु इन अन्धकवृष्णि के 10 पुत्रों से सम्बन्धित 10 अध्ययन हैं। द्वितीय वर्ग- इसमें 10 मुनियों के 10 अध्ययन हैं। तृतीय वर्ग- इसमें 13 मुनियों के 13 अध्ययन हैं। चतुर्थ वर्ग- इसमें जालि आदि 10 मुनियों के 10 अध्ययन हैं। पञ्चम वर्ग- इसमें पद्मावती आदि 10 अन्तकृत स्त्रियों के नामवाले 10 अध्ययन हैं। षष्ठ वर्ग- इसमें 16 अध्ययन हैं। सप्तम वर्ग- इसमें 13 अध्ययन हैं, जिनमें अन्तकृत स्त्रियों (साध्वियों) की कथायें हैं। अष्टम वर्ग-इसमें राजा श्रेणिक की काली आदि 10 अन्तकृत स्त्रियों (साध्वियों) से सम्बन्धित 10 अध्ययन हैं। इन आठ वर्गों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। जैसे (1) प्रथम पाँच वर्ग कृष्ण और वासुदेव से सम्बन्धित व्यक्तियों की कथा से सम्बन्धित हैं, (2) षष्ठ और सप्तम वर्ग भगवान् महावीर के शिष्यों (स्त्री) की कथा से 317