________________ आओ खोजे : संसार की वस्तुएं किस से बनी हैं व कर्मसिद्धान्त (जैन सिद्धान्तों का बालनाट्य विद्या से कथन) [संदीप के घर का अध्ययन कक्ष चिन्तन की मुद्रा में संदीप। पिता जी का प्रवेश] पापा- बेटे संदीप! क्या कर रहे हो ? संदीप- पापा, मैं सोच रहा हूँ कि इस संसार में अनेक प्रकार की वस्तुएँ हैं। इनके मूल में क्या है? ये किन तत्त्वों से बनी है? इन्हें किसने बनाया है ? पापा- बेटे ! सुनार सोने के कई आभूषण बनाता है। वे किस वस्तु से बनते हैं। उन्हें यदि गला दिया जाए तो क्या बचेगा? लुहार लोहे के बहुत से औजार बनाता है। कुम्हार मिट्टी से कई तरह की चीजें बनाता है। इन्हें तोड़ दिया जाए। तो क्या बचेगा? सोचा तुमने। संदीप - हाँ पापा ! सोने के आभूषणों को गलाने पर सोना बचेगा। लोहे के औजार गलाने पर लोहा बचेगा और मिट्टी के बर्तनों को गलाने पर मिट्टी बचेगी। क्योंकि इनके मूल में क्रमश: सोना, लोहा और मिट्टी है। पापा- बेटे ! इसी तरह आगे सोचो। सोने, चाँदी, लोहे, पीतल आदि की वस्तुयें किससे बनती हैं? संदीप-धातुओं (Metals) से। पापा- बेटे, इसी तरह आगे विश्लेषण करते-करते हम देखते हैं कि संसार में दिखलाई पड़ने वाली या स्पर्श से अनुभव में आनेवाली सभी वस्तुएँ पृथिवी, जल, अग्नि और वायु से बनी है। संदीप- हाँ पापा ! तभी किसी व्यक्ति के मरने पर लोग उसे जलाने के बाद कहते हैं कि अमुक का शरीर पृथिवी, जल, अग्नि और वायु में विलीन हो गया। पापा- क्या इससे भी आगे सोचा है? संदीप- नहीं पापा ! बतलाओ न पापा। पापा - बेटे ! पृथिवी, जल, अग्नि और वायु एक ही तत्त्व से बने हैं जिन्हें जैनदर्शन में 'पुद्गल' कहा जाता है। पृथिवी, जल, अग्नि और वायु अलग-अलग तत्त्वों से नहीं बने हैं, जैसा तुम्हारे दोस्त नैयायिक कुमार कहते हैं। पुद्गल के सभी परमाणु रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुण वाले हैं। किसी में रूप है, किसी में रस है, किसी में गन्ध है और किसी में स्पर्श है; ऐसा नहीं है। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चारों में रूपादि चारों हैं, भले ही हमें अप्रकट होने से अनुभव में न आयें। यह पुद्गल तत्त्व जड़ (अचेतन) है। पाँचों इन्द्रियों से हम इनका अथवा इनके रूपादि गुणों का ही अनुभव कर सकते हैं, अन्य द्रव्यों का नहीं। अर्थात् हम इन इन्द्रियों से जो जानते हैं वे सब पुद्गल हैं और अचेतन तथा रूप-रसादि गुण वाले हैं। संदीप-क्या चेतन भी कोई द्रव्य है? पापा - हाँ ! चेतन द्रव्य को आत्मा कहा जाता है। यह रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से सर्वथा रहित है। यह अजर-अमर है। आत्मा संसारावस्था में जब शरीर से युक्त होता है तो उसे 'जीव' कहते हैं। ज्ञान और दर्शन इसकी विशेष पहचान (गुण) है। शरीर पुद्गल की पर्याय (अवस्था विशेष) है। आत्मा उससे पृथक् है। शरीर तभी तक काम करता है जब तक उसका आत्मा से सम्बन्ध रहता है। आत्मा के निकल जाने पर 'अमुक मर गया' ऐसा व्यवहार देखा जाता है। संदीप- जड़ (पुद्गल) और चेतन (आत्मा) ये दो ही मूल द्रव्य हैं अथवा अन्य भी द्रव्य हैं। पापा - हाँ ! इनके अलावा चार द्रव्य और मानने पड़ेंगे। जैसे-गमन में सहायक गतिद्रव्य (धर्मद्रव्य), ठहरने में सहायक स्थिति द्रव्य (अधर्मद्रव्य), द्रव्यों में प्रतिक्षण होने वाले परिवर्तन में निमित्त कारण कालद्रव्य और सभी द्रव्यों का आधारभूत (स्थान देने वाला) आकाश (space) / ये चारों जड़ हैं परन्तु पुद्गल से भिन्न है। इनमें रूप, रस आदि नहीं हैं। संदीप - इन्हें मानने की आवश्यकता क्या है? 248