________________ सिद्ध-सारस्वत 2006) हुआ। विश्वविद्यालय के नियमानुसार 30 जून 2006 तक एक्सटेंशन दिया गया। कुलपति पद हेतु नामांकन - इसके उपरान्त मध्यप्रदेश तथा राजस्थान से कुलपति पद हेतु फाईनल सर्च पैनल में नामांकन हुआ परन्तु अस्वस्थता (बाइपास सर्जरी और चिकनगुनिया) के कारण मैंने तदर्थ विचार त्याग दिया और राज्यपाल के आमंत्रण पर वहाँ उनसे मिलने नहीं जा सका। सेवानिवृत्ति के बाद - पार्श्वनाथ विद्यापीठ में डायरेक्टर, भोपाल आगमन और इस अभिनन्दन ग्रन्थ का सूत्रपात सेवानिवृत्ति के बाद स्वस्थ होने पर मार्च 2010 से अप्रैल 2012 तक पार्श्वनाथ विद्यापीठ में शोध निदेशक (डायरेक्टर) के रूप में कार्य किया तथा वहाँ से निकलने वाली श्रमण' पत्रिका का सम्पादन किया। इसके बाद अन्य आमंत्रण मिले परन्तु उन्हें स्वीकार नहीं किया। स्वास्थ्यगत समस्याओं के कारण मेरी डॉक्टर बेटी मनीषा जैन ने भोपाल (जून 2014) में बुला लिया, जिससे मेरी वृद्धावस्था के समय देखरेख हो सके। यहाँ लालघाटी के पास एक फ्लैट में हम रहने लगे। नदीश्वर जिनालय पास में होने से देवाराधना में मन रमा लिया परन्तु शैक्षणिक गतिविधियाँ मन्द हो गई। धीरेधीरे समाज से परिचय बढ़ा। संयोग से इसी जिनालय में आचार्य विशुद्धसागर जी का चैमासा स्थापित हुआ। वे मुझसे और मेरी विद्वता से परिचित थे क्योंकि मैंने इनके गुरु आचार्य श्री विरागसागर जी के सम्यग्दर्शन ग्रन्थ का सुसम्पादन किया था। उन्होंने मेरी विद्वता आदि की यहाँ प्रशंसा की जिससे यहाँ लोगों ने भी मुझे सम्मान देना शुरू कर दिया। दशलक्षण पर्व पर प्रवचन तथा तत्त्वार्थसूत्र का वाचन किया। यहीं मेरा परिचय नन्दीश्वर जैन मन्दिर के अध्यक्ष श्री प्रमोद चैधरी जी से हुआ। वे भी मुझे सम्मान देने लगे, आज भी बहुत आदर देते हैं। इसी बीच परमादरणीय प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री विमल कुमार सोरया जी भोपाल पधारे क्योंकि उनका एक पुत्र डॉ. सर्वज्ञ जैन यहीं पर रहता है। उनसे मेरा सामान्य परिचय था। धीरे-धीरे वे मेरे और मेरी पत्नी डॉ. मनोरमा जैन के वैदुष्य से परिचित हुए। उन्होंने समाज में हम दोनों की विद्वत्ता तथा सादगी की प्रशंसा की। उन्होंने जुलाई-अगस्त 2017 में वीतराग वाणी के अंक में मेरा परिचय छाप दिया और मेरे अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन की उसमें घोषणा भी कर दी। मार्चअप्रैल 2018 के अंक से मुझे वीतराग वाणी का विशिष्ट सम्पादक भी बना दिया। उनका मेरे प्रति असीम प्रेम, आग्रह तथा अनुकम्पा है जिसके फलस्वरूप यह अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। मैं उनका सदैव आभारी रहूँगा। पिता श्री स्व. सिद्धेलाल जैन की वंशावली पिताश्री सिद्धेलाल जैन बड़कुल के माता-पिता का नाम था श्रीमती प्यारीबाई जैन तथा श्री जगन्नाथप्रसाद जैन। श्री जगन्नाथ प्रसाद जी चार भाई थे जिनमें ये सबसे छोटे थे- श्री गुलजारी लाल, नत्थूलाल, नन्नूलाल और जगन्नाथ प्रसाद जी। गुलजारीलाल के तीन पुत्र थे- अच्छेलाल, मुलामचन्द और नेमचन्द्र। नत्थूलाल के दो पुत्र थे- नेमचन्द्र और उदयचन्द (उद्दी)। नन्नूलाल ने विवाह नहीं किया था। जगन्नाथप्रसाद के दो पुत्र और एक पुत्री थी- माधव प्रसाद (प्रभाचन्द्र), सिद्धेलाल और सुन्दरीबाई। नन्नूलाल के अविवाहित होने से उनकी वंश परम्परा आगे नहीं चली। गुलजारी लाल की आगे की परम्परा ज्ञात नहीं है। नत्थूलाल बांदकपुर आ गए और उनकी वंश परम्परा ज्ञात है। नत्थूलाल की 7 संतानें (2 पुत्र 5 पुत्रियाँ) हैं- नेमचन्द्र (पत्नी, कुसुम), उदयचन्द्र (पत्नी, प्रभा), शान्ति (पति लीलाधर, दमोह), कपूरी (पति गिरीश सगरा), गोदा (पति मुलाम, बांदकपुर), सुलोचना (पति इन्द्रकुमार नेताजी), और सोना (पति अशोक, जबलपुर) नेमचन्द्र की तीन कन्यायें हैं-सविता (पति चन्द्र कुमार, चिरमिरी), अनीता (पति दिनेश, नरसिंगपुरा) और बबली (पति लक्ष्मीचंद दमोह)। उदयचन्द के तीन पुत्र हैं- रजनीश (पत्नी सीमा), मनीष (पत्नी दीपा) और संदीप (पत्नी सपना)। जगन्नाथ प्रसाद की वंश-परम्परा में माधवप्रसाद उर्फ प्रभाचन्द पनागर चले गए। वे संस्कृत और जैनागम के अच्छे विद्वान् थे। आपने गया में रहकर अध्ययन किया था। उनके 3-4 ग्रन्थ आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं। इनका बहुत जल्दी (28-29 वर्ष में) स्वार्गवास हो गया। इनकी पत्नी का नाम था सुभद्रा और एकमात्र पुत्र का नाम था सुरेशचंद्र। इनका भी ई. 1981 में जल्दी स्वर्गवास हो गया। इनकी एक आंख में फुली हो गई थी। इनकी पत्नी का नाम है चमेली, जो आज 10 प्रतिमाधारी हैं। इनकी 8 (5 पुत्र और 3 पुत्रियाँ) संतानें हैं - रवि (पत्नी रश्मि), राकेश (पत्नी राजश्री), राजेन्द्र (पत्नी शोभा), रजनीश (मुनिदीक्षा आचार्य विद्यासागर के सङ्घस्थ सम्भवसागर), रूपेश (पत्नी मोना), सुषमा (पति प्रकाशचंद्र, बांदा), वन्दना (पति संदीप, जबलपुर) और नीलिमा (पति अभय, सागर)। श्री जगन्नाथ प्रसाद की पुत्री का नाम था सुन्दरीबाई (पति ब्रजलाल जैन बड़कुल, नोहटा)। सुन्दरीबाई का एक पुत्र, तीन पुत्रियाँ 4 सन्तानें हैं। गनेशी, केशर, प्रेमबाई और कलाबाई (कल्लो)। 129