________________ सिद्ध-सारस्वत सकुशल हुई। मैंने उसी दिन प्रण कर लिया कि भविष्य में भक्तामर का पाठ किए बिना अब अन्न नहीं खाऊँगा। वह नियम आज भी चालू है। (3) विपरीत दिशा की ट्रेन में बैठा- एक बार 12.10.1984 को मैं संस्कृत सङ्गोष्ठी स्वातन्त्र्योत्तर संस्कृत महाकाव्य में अहमदाबाद गया था। वहाँ एक सत्र की अध्यक्षता भी की थी। मेरा विषय था वाराणसी से प्रकाशित स्वतन्त्र्योत्तर संस्कृत महाकाव्य"। जब सङ्गोष्ठी के बाद रेलवे प्लेटफार्म पर आया तो आमने सामने दो ट्रेनें खड़ी थीं, जिनमें से मैं एक ट्रेन में बैठ गया। आगे जाकर पता लगा कि यह तो विपरीत दिशा में जा रही है। हम घबरा गए और एक स्टेशन पर उतरकर अहमदाबाद वाली ट्रेन पकड़ ली, वह छूटने ही वाली थी, डर था कि कहीं टी.टी. आ गया तो फाइन कर देगा परन्तु कोई नहीं आया। मैं तो भक्तामर पाठ पढ़ रहा था। अहमदाबाद आने पर शान्ति मिली, फिर वहाँ से दूसरी ट्रेन पकड़कर वाराणसी आया परन्तु एक दिन लेट पहुंचा। उस दिन से प्रतिज्ञा कर ली कि ट्रेन आदि में बैठते समय एक बार उसमें बैठे यात्रियों से पूछ लेना चाहिए। रिजर्वेशन नहीं था जिससे वही टिकिट काम आ गई। (4) देवदूत आया - दिनाँक 28.08.2018 को मैंने कामायनी में वाराणसी से भोपाल का रिजर्वेशन कराया था परन्तु वह रद्द हो गई जिस कारण मैंने उसी तारीख का रिजर्वेशन मडुआडी-जबलपुर ट्रेन में कराया। मैं समय पर स्टेशन पहुंचा तो पता चला पांच घंटे लेट है। स्टेशन पर बैठे रहे क्योंकि सामान भी अधिक था। सपत्नीक था। ट्रेन गोरखपुर से आई जो छ: घंटे लेट वहाँ से छूटी। बड़ी चिन्ता थी अगर ज्यादा लेट हुई तो कटनी से आगे का रिजर्वेशन व्यर्थ हो जायेगा और परेशानी होगी। इलाहाबाद में एक युवक मिलेट्री वाला हमारे पास बैठ गया उसे भी भोपाल जाना था, पर जल्दी में टिकिट नहीं ले पाया था। ट्रेन सतना पहुंचते-पहुंचते बहुत लेट हो गई, पानी भी गिरने लगा। उसने कहा यहीं गाड़ी चेंज कर लेते हैं क्योंकि आपकी दूसरी ट्रेन सतना आ चुकी है, हो सकता हैं आपको यह ट्रेन कटनी में न मिले। उसने मेरा सामान उठाया और मेरी रिजर्वसीट पर पहुंचा दिया। भीग गए थे, सब लोग। कुली था नहीं। उसकी वजह से वह ट्रेन पकड़ ली अन्यथा पता नहीं क्या होता। सतना तक तो मैं भक्तामर पढ़ता रहा। एक-एक मिनट भारी पड़ रहा था। भोपाल में भी उसने सामान बाहर लाकर टेक्सी में रखवाया। वह तो देवदूत निकला। उसे हम अपने साथ लालघाटी तक ले आये। (5) ट्रेन यात्री के पैसे टी.टी. से वापस दिलवाए - एक बार मैं वाराणसी से जबलपुर जा रहा था। मेरे पास होम-टाउन (दमोह) तक का छात्र कंशेसन टिकिट था। कटनी से रास्ता बदलने के कारण मैं कटनी में गार्ड से मिला और जबलपुर का टिकिट बनाने को कहा। गार्ड ने कहा बैठ जाओ, बन जायेगा। रास्ते में टी.टी. आया और वह मुझे गार्ड के पास ले गया। गार्ड के कहने पर उसनं मेरी कटनी से जबलपुर की टिकिट बना दी। मैं पुनः अपनी बोगी में सामान लेने गया। वहाँ उसी टी.टी. ने एक गरीब व्यक्ति के बच्चे से पांच वर्ष से अधिक बताकर पैसे तो ले लिए थे परन्तु टिकिट नहीं बनाई थी। मैंने उससे कहा आगे क्या करोगे। टी.टी. से टिकिट मांगो। मैं गया और टी.टी. को जो स्टेशन से बाहर निकल रहा था पकड़कर ले आया। उससे कहा इसे टिकिट क्यों नहीं दी। इसे या तो पैसे वापस करो या टिकिट दो। इस पर वह पैसा देकर चला गया। चूंकि मेरी टिकिट बन चुकी थी। जिससे मैं निश्चित था अन्यथा वह मुझे भी परेशान करता। मैंने उस यात्री से कहा भाई मैं तो यहाँ उतर रहा हूँ आगे व्यवस्था कर लेना। उसने मुझे बहुत धन्यवाद दिया। (6) टी.टी. से पत्नी को पैसे वापस दिलवाए - एक बार हम सपरिवार कामायनी एक्सप्रेस से वाराणसी से दमोह जा रहे थे। कामायनी उस समय चलना प्रारम्भ ही हुई थी और खाली रहती थी। सतना के पास पत्नी से टी.टी. ने रिजर्वेशन का पैसा ले लिया परन्तु रसीद नहीं दी। जब मैंने पत्नी से कहा रसीद क्यों नहीं ली। मैं टी.टी. के पास गया और उससे रसीद मांगी तो उसने पैसे वापस कर दिए, रसीद नहीं दी क्योंकि वह रिजर्वेशन की बोगी नहीं थी। इस तरह रेलयात्रा सम्बन्धी कई घटनाएं हैं। कभी रात्रि में स्टेशन का पता न चलने पर आगे चले गए, कभी एक्सीडेन्ट से बच गए, कभी कुछ व्यक्तियों से बहुत आत्मीय सम्बन्ध बन गए। (7) परीक्षा के दौरान गुंडे की धमकी - मैं बी.एच.यू. की वार्षिक परीक्षा में कक्ष-निरीक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। उस समय एक छात्र टेबिल पर पुस्तक रखकर नकल कर रहा था। मैंने उससे सीट बदलने को कहा तो उसने मना कर दिया। मैंने सुपरिन्टेंडेन्ट से कहा कि या तो उसकी सीट बदल दो या मेरी ड्यूटी दूसरे कक्ष में लगा दो। उस तथाकथित परीक्षार्थी ने उनकी भी बात नहीं मानी और धमकी देते हुए उत्तरपुस्तिका जमा करके चला गया। मैं बड़ा भयभीत था कि कहीं परीक्षा के बाद परेशान न 138