________________ और सायंकाल जल का स्पर्श करना, कुशयूपादि का स्पर्श करना आदि ये सभी बाह्यशुद्धि के साधन हैं, इन्हें आन्तरिक शुद्धि के साधन मानना मूढ़ता है। अब प्रश्न उठता है कि यदि ऐसी स्थिति है तो ब्राह्मणादि के आन्तरिक शुद्धि के लक्षण क्या हैं ? इसके उत्तर में मुनिराज ने कहा है - समयाए समणो होइ बम्भचेरेण बम्भणो। नाणेण उ मुणी होइ तवेण होइ तावसो॥ कम्मुणा बम्हुणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइसो कम्मणा होइ सुद्दो होई कम्मुणा।। एए पाउकरे बुद्धे जे हि होइ सिणायओ। सव्वकम्मविणिम्मुक्कं तं वयं वूम माहणं।। एवं गुण-समाउत्ता जे भवन्ति दिउत्तमा। ते समत्था उ उद्धत्तं परमप्पाणमेव च // अर्थ -समभाव से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, मनन (ज्ञान) से मुनि, तप (इच्छानिरोध) से तपस्वी होता है। कर्म से (आचार से) ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय, कर्म से वैश्य और कर्म से ही शूद्र होता है। इस प्रकार विस्तार से सब बातें भगवान ने बताई हैं। स्नातक भी उक्त गुणों वाला ही हो सकता है तथा जो समस्त कों से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील है वह ब्राह्मण है और वही उत्तम बाह्मण स्व और पर का कल्णाण करने में समर्थ है। क्योंकि शील-संयम से हो पूज्यता आती है। अतः सिद्ध है कि द्रव्ययज्ञ से भावयज्ञ, द्रव्यलिङ्गी मुनि से भावलिङ्गी मुनि, द्रव्यसंयम से भावसंयम, द्रव्यशुद्धि से भावशुद्धि श्रेष्ठ है। इस तरह पाँचवे प्रश्न का उत्तर दिया गया। भावयज्ञ करने का अधिकारी - इस यज्ञ को वही कर सकता है जो हिसादि पापों से संवृत, शरीर में ममत्त्व और कषायों में प्रवृत्ति से रहित होकर संयत है। इसमें वैदिक कर्मकाण्डी यज्ञ की तरह जाति को कोई महत्त्व नहीं है। इस यज्ञ को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की तरह शूद्र भी कर सकते हैं। जैसे चाण्डाल कुलोत्पन्न हरिकेशी मुनि जितेन्द्रिय और प्रधान गुणों से युक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।" चित और सम्भूत के जीव भी पूर्व जन्म में चाण्डाल कुलोत्पन्न होकर इस यज्ञ को करके क्रमश: मोक्ष और चक्रवर्तीपद को प्राप्त करते हैं। जिस तरह पुरुष इस यज्ञ को करने के अधिकारी हैं उसी प्रकार स्त्रियाँ भी इस यज्ञ को करके परमार्थ (मोक्ष) को प्राप्त कर सकती हैं। जैसे राजीमती ने प्राप्त किया। इस तरह इस यज्ञ को सभी जीव कर सकते हैं जो सदाचार पालन करने का प्रयत्न करे। यहाँ स्त्रियों की मुक्ति परम्परया समझना। भावयज्ञ के उपकरण एवं विधि - अब हमें यह देखना है कि इस भावयज्ञ को कैसे करना चाहिए। इसके उपकरण कौन-कौन हैं। इस विषय में उत्तराध्ययन में रूपकाश्रित बहुत सुन्दर वर्णन है। जैसे - वैदिक द्रव्ययज्ञ के उपकरण भावयज्ञ के उपकरण (1) अग्नि (1) तप ( ज्योतिरूप ) क्योंकि , तप में अग्नि की तरह कर्ममलभस्म करने की शक्ति है। (2) अग्निकुण्ड (जहाँ अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है) (2) जीवात्मा (तपरूप अग्नि का स्थान ) (3) युवा (जिससे घृत की आहुति दी जाती है) (3) मन, वचन, कायरूप योग स्रोत है क्योंकि शुभाशुभ कर्मेन्धनों का आगमन इन्हीं के द्वारा होता है। (4) करीषाङ्ग (जिससे अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। (4) शरीर क्योंकि तपरूपाग्नि इसी से प्रदीप्त होती है। जैसे मधु, घृत आदि) (5) समिधा (शमी, पलाशादि) (5) शुभाशुभकर्म - क्योंकि तप रूप अग्नि में लकड़ी की तरह भस्म हो जाते हैं। (6) शान्ति पाठ (कष्टों को दूर करने के लिए) (6) संयम व्यापार-क्योंकि इससे सब जीवों को शान्ति मिलती है। 202