________________ पार्श्वनाथ के सिद्धान्त : दिगम्बर और श्वेताम्बर दृष्टि [दिगम्बरों और श्वेताम्बरों के किन ग्रन्थों में भगवान् पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, इसका कथन करते हुए भगवान् महावीर और पार्श्वनाथ के सिद्धान्तों की एकरूपता बतलाई गई है। पार्श्वपत्यों का सिद्धान्त पार्श्वनाथ का सिद्धान्त नहीं है।] तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के जीवन तथा उनके सिद्धान्तों के सम्बन्ध में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में प्राचीन उल्लेख बहुत कम मिलते हैं। जैन आगमों एवं पुराणों के अनुसार जैनधर्म के तेईसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी के राजा अश्वसेन की रानी वर्मला (वामा) देवी की कुक्षि से हुआ था। इन्होंने तीस वर्ष की आयु में ही गृहत्याग करके सम्मेद शिखर पर तपस्या की और केवलज्ञान प्राप्त किया। केवलज्ञान प्राप्त करके सत्तर वर्ष तक श्रमण धर्म का उपदेश दिया। पश्चात् ई. पूर्व 777 (चौबीसवें तीर्थङ्कर महावीर-निर्वाण ई. पूर्व 527 से 250 वर्ष पूर्व) में निर्वाण प्राप्त किया। इनकी ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से स्वीकार की जाती है। इनके विवाह के सम्बन्ध में श्वेताम्बरों की मान्यता है कि इनका विवाह हुआ जबकि दिगम्बरों की स्पष्ट धारणा है कि तीर्थङ्कर वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ने कुमारावस्था (अविवाहितावस्था) में ही दीक्षा ली थी। इनके कुलादि के सम्बन्ध में दिगम्बर इन्हें उग्रवंशीय (उरग या नागवंशीय) तथा श्वेताम्बर इक्ष्वाकुवंशीय स्वीकार करते हैं। दिगम्बरों के तिलोयपण्णत्ति में तथा श्वेताम्बरों के आवश्यकनियुक्ति में इन्हें काश्यपगोत्रीय कहा गया है।' आधार-ग्रन्थ- पार्श्वनाथ की दार्शनिक एवं आचार-सम्बन्धी मान्यताओं का प्रतिपादक कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। प्राचीन श्वेताम्बर मान्य आगम-ग्रन्थों में उनके जीवन के सम्बन्ध में तथा उनके आचार एवं दार्शनिक सिद्धान्तों के जो उल्लेख मिलते हैं वे अल्प ही हैं, तथापि उनके आधार पर परवर्ती काल में विशेषकर ई. सन् 8वीं शताब्दी के बाद प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषा में रचे गये चरितकाव्य ग्रन्थों में पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दी गयी है। पार्श्वनाथ से सम्बन्धित ग्रन्थों का विभाजन निम्न दृष्टि से किया जा सकता है(क) दिगम्बर ग्रन्थ- इसके अन्तर्गत मूलाचार, तिलोयपण्णत्ति एवं भगवती-आराधना ये तीन प्राचीन प्रमुख ग्रन्थ हैं। परवर्ती गुणभद्र-रचित उत्तरपुराण भी पार्श्वनाथ-विषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। चरितकाव्यों में निम्न ग्यारह काव्यों का प्रमुख रूप से परिगणन किया जा सकता है - 1. पार्वाभ्युदयः (जिनसेनकृत, ई0 783), 2, पार्श्वनाथचरितम् (वादिराजसूरिकृत, ई0 1019), 3. पासनाहचरिउ (देवदत्तकृत, ई0 सन् 10वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध, अनुपलब्ध), 4, पासनाहचरिउ (पद्मकीर्तिकृत, ई0 1077), 5, पासनाहचरिउ (विबुधश्रीधरकृत, ई0 1132), 6. पासनाहचरिउ (देवचन्द्रकृत, ई0 12वीं शताब्दी),7. पार्श्वनाथपुराण (सकलकीर्तिकृत, ई0 14वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध), 8. पासनाहचरिउ (रइधूकृत, ई0 1400), 9. पासनाहचरिउ (असपालकृत, ई0 1482), 10, पार्श्वपुराण (वादिचन्द्रकृत, ई0 1683) और 11. पार्श्वपुराण (चन्द्रकीर्तिकृत, ई0 1597-1624) / (ख) श्वेताम्बर ग्रन्थ - इसके अन्तर्गत उत्तराध्ययनसूत्र, सूत्रकृताङ्ग, समवायाङ्ग, स्थानाङ्ग, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, कल्पसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, राजप्रश्नीय और ऋषिभाषित ये दस प्राचीन प्रमुख ग्रन्थ हैं। शीलाङ्क (लगभग नवीं शताब्दी) के चउपन्नमहापुरिसचरियं तथा हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में भी पार्श्वनाथ का जीवनवृत्त मिलता है। चरितकाव्यों में निम्न नव काव्यों का प्रमुख रूप से परिगणन किया जा सकता है- 1. सिरिपासनाहचरियं (देवभद्रकृत, ई0 1111), 2. पार्श्वनाथचरित्र (माणिकचन्द्रसूरिकृत, ई0 1219), 3. पार्श्वनाथचरित्र (विनयचन्द्रकृत, ई0 1229-1288), 4. पार्श्वनाथचरित्र (सर्वानन्दसूरिकृत, ई0 1234), 5. पार्श्वनाथचरित्र (भावदेवसृरिकृत, ई0 1355), 6. पासपुराण (तेजपालकृत, ई0 1458), 7. पासनाहकाव्य (पद्मसुन्दरगणिकृत, ई0 16वीं शताब्दी), 8. पार्श्वनाथचरित्र (हेमविजयकृत, ई0 1575), तथा 9. पार्श्वनाथचरित (उदयवीरगणिकृत, ई0 1597) / उभय परम्पराओं के प्राचीन ग्रन्थों में मात्र सूचनाएँ मिलती हैं। तिलोयपण्णत्ति तथा आवश्यकनियुक्ति में अपेक्षाकृत कुछ अधिक जानकारी प्राप्त होती है। 8वीं शताब्दी के बाद लिखे गये चरित काव्यग्रन्थों से ही हमें वस्तुतः 206