________________ सिद्ध-सारस्वत अप्रैल 1966, पृष्ठ 20-26. 8. यज्ञ : एक अनुचिन्तन, श्रमण, सितम्बर-अक्टूबर, 1966, पृष्ठ 31-38, 15-27. 9. आ. हरिभद्रसूरि और धर्मसंग्रहणी, श्रमण, अगस्त-सितम्बर, 1969, वर्ष 20, अङ्क 10-11, पृष्ठ 21-29, 17-22,26. 10. उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन, जिनवाणी, अगस्त 1970, पृष्ठ 9-19. 11. प्रमाणस्वरूप विमर्श, श्रमण, दिसम्बर 1972, जनवरी 1973, वर्ष 24, अंक 2-3, पृष्ठ 3-15, 3-11.. 12. अनुक्रमणिकायें : (ग्रन्थकारानुक्रमणिका एवं ग्रन्थानुक्रमणिका) तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा, ई. 1974, पृष्ठ 449-496. 13. भगवान् महावीर का जीवन-सन्देश और वर्तमान युग, स्मारिका, कुण्डलपुर, फरवरी 1975, पृष्ठ 36-40 14. महावीर की दृष्टि में जाति, लिङ्ग, वेष, वय और संघ का कितना महत्त्व ?, अमरभारती, अप्रैल 1975, पृष्ठ 29-33. 15. किं जैनदर्शनं नास्तिकम् ? (परिवर्धित), श्रीमहावीर-परिनिर्वाण-स्मृति-ग्रन्थ, श्रीलालबहादुरशास्त्रीकेन्द्रीयसंस्कृतपीठम्, दिल्ली, 1975, भाग 111, पृष्ठ 29-32. 16. श्रवणबेलगोलायां गोम्मटेश्वरस्य मूर्तेः निर्माणेतिहासः, गाण्डीवम् (गोम्मटेश-महामस्तकाभिषेक-विशेषाङ्क) वाराणसी, 3-9 फरवरी 1981, पृ. 12. 17. जैनदर्शन में मोक्ष का स्वरूप : भारतीय दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में, श्रमण, नवम्बर 1983, वर्ष 35, अंक 1, पृष्ठ 18-24, तथा वन्दे वीरम्, अप्रैल 1991, पृष्ठ 26-33. 18. आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में निश्चय-व्यवहार का समन्वय, अनेकान्त, नई दिल्ली, जुलाई-सितम्बर 1988, वर्ष 41, कि. 3, पृष्ठ 3-8. 19. मिथ्यात्व अकिंचित्कर नहीं, अनेकान्त, जुलाई-सितम्बर 1988, वर्ष 41, कि. 33, पृष्ठ 21, 32. 20. उत्तराध्ययन में मोक्ष की अवधारणा डॉ. सुदर्शनलाल जैन की दृष्टि में, प्रस्तुतकर्ता डॉ. महेन्द्रनाथ सिंह, श्रमण, वर्ष 40. अंक 7, मई 1989, पृष्ठ 35-38. 21. वेदान्तदर्शन और जैनदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन, श्रमण, जून 1989, वर्ष 40, अङ्क 8, पृष्ठ 10-16. 22. सांख्यदर्शन और जैनदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन, श्रमण, जुलाई 1989, वर्ष 40, अङ्क 9, पृष्ठ 2-15. 23. पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी होती हैं : एक समीक्षा, पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ, 1989, पृष्ठ 90-92, खण्ड 11. 24. भारतीयदर्शनेषु भ्रमज्ञानविचारः (ख्यातिवादः), सागरिका, जुलाई 1989 वर्ष 17, अङ्क 11, पृष्ठ 1-8. 25. आहार-विहार में उत्सर्ग-अपवाद मार्ग का समन्वय (आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि में), श्रमण, जुलाई 1989, वर्ष 40, अङ्क 1, पृष्ठ 11-15. 26. स्वातन्त्र्योत्तर संस्कृत महाकाव्यों का समीक्षात्मक विवेचन (वाराणसी से प्रकाशित), सन्मार्ग, 1989, 31 जुलाई से 3 अगस्त 27. मीमांसादर्शन में निषेध-मीमांसा, म.म.चिन्नस्वामी-शास्त्री जन्म-शताब्दि-स्मारकग्रन्थः, 1990, पृष्ठ 105-110. 28. विरोधाभाषी गुरु को शत शत वन्दन, पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ 1990, पृष्ठ 21-22. 29. तीर्थङ्कर-चिह्न एक अनुचिन्तन, जैन सन्देश, मई 1991, पृ. 4, (तीन अङ्कों में) 30. अङ्ग आगमों के विषयवस्तु सम्बन्धी उल्लेखों का तुलनात्मक विवेचन, आस्पेक्ट्स ऑफ जैनोलाजी, वाल्यूम 3, ___पी.वी. रिसर्च इन्स्टिट्यूट, वाराणसी, 1991, पृष्ठ 50-85. 31. जैनदर्शन में शब्दार्थ-सम्बन्ध, श्रमण, अप्रैल-जून 1992, वर्ष 43, अङ्क 4-6, पृष्ठ 27-39. 32. सांख्य और जैनदर्शन में ईश्वर, अनेकान्त, दिल्ली, जुलाई-सितम्बर 1992, वर्ष 45, कि. 3, पृष्ठ 13-16; तथा दर्शन भारती, जयपुर, 1994, पृष्ठ 65-71. 33. सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन् की दृष्टि में जैनदर्शन, राधाकृष्णन् एण्ड रिलिजियस कान्सिअसनेस, राधाकृष्णन् मेमोरियल सीरीज नं. 1, बी.एच.यू., 1992, पृष्ठ 62-66. 34. श्रीमती शुभचन्द्रेण प्रणीतो ज्ञानार्णवः, सूर्योदयः, अक्टूबर 1992, वर्ष 69, अङ्क 10, पृ. 11-14. 35. भारतीयदर्शनेष्वीश्वरविचारः, सूर्योदयः, जुलाई-अगस्त, 1993, वर्ष 70, अङ्क 7-8, पृष्ठ 41-42. 162