________________ सिद्ध-सारस्वत पिता की छवि देखी मेरे वाइवा में मुझे इतना स्नेह दिया कि मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि मैं अपने परीक्षक के साथ बैठी हूँ आपके साथ बिताये गए समय में मैंने अपने पिता की छवि देखी, आपसे मुझे पितृवत् स्नेह मिला। इस शुभ अवसर पर आपको, आण्टी जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ। आपकी शिष्या डॉ. कु. प्रियङ्का इलहाबाद जैन आगमों के गूढ़ रहस्यों के उद्घाटक प्रखर वक्ता, कुशल प्रशासक, धर्मनिष्ठ, उदभट मनीषी तथा सरलप्रकृति प्रो. सुदर्शन लाल जैन ने जैन शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया है तथा तदनुसार जीवन जीते हैं। समाज को भी जैन आगम-ग्रन्थों के गूढ़ रहस्यों को बतलाकर तदनुसार चलने की प्रेरणा देते हैं। आपका विषय को समझाने का तरीका बहुत सरल होता है। आप सचमुच में सिद्ध-सारस्वत हैं। आपकी धर्मपत्नी भी विदुषी, कर्मठ और धर्मनिष्ठ हैं। आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। आपका यह अभिनन्दन ग्रन्थ आगामी पीढ़ी के मार्गदर्शक बने। विनोद कुमार जैन जैन नगर, भोपाल जिनवाणी के गहन अध्येता मेरा सौभाग्य है कि मुझे आदरणीय प्रो. सुदर्शन लाल जैन जी से संस्कृत और प्राकृत व्याकरण पढ़ने का सुयोग मिला। आपके द्वारा लिखित 'संस्कृत-प्रवेशिका' और 'प्राकृत-दीपिका' दोनों संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के व्याकरण जानने के लिए ये बहुत सुगम और सर्वजनोपयोगी हैं। आप विद्वानों में अग्रणी हैं परन्तु आपको अहंकार नहीं है। आप ज्ञानी के साथ सरल और निर्लोभवृत्ति वाले भी हैं। आपका व्यक्तित्व सुलझा हुआ है तथा आप विवादों से दूर रहते हैं। आपकी जैन सिद्धान्तों पर दृढ़ आस्था है। सन्तों के प्रति सम्मान भाव है। व्यवहार-कुशलता है। इस संदर्भ में एक पद्य है जिनवाणी का गहन मनन है, कर्मबन्ध से मुक्त कथन है। हैं आभारी हे सुखदर्शन। ज्ञान आपने दिया सुदर्शन।। सपना जैन एम.ए. अंग्रेजी वात्सल्य-प्रतिमूर्ति मनीषी हाहा अत्यन्त गौरव एवं प्रसन्नता के क्षण है कि साहित्य सृजन के क्षेत्र में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सुदर्शन लाल जैन के 75वें जन्मदिवस के सुअवसर पर उनके सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ 'सिद्ध-सारस्वत' का प्रकाशन किया जा रहा है। आ. सुदर्शन लाल जी का अवतरण दिनांक 01.04.1944 को ग्राम-मंजला, जिला-सागर में मास्टर सिद्धेलाल एवं श्रीमती सरस्वती देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। अल्प अवस्था में ही माता जी की छाया से वंचित होने एवं पारिवारिक विपन्नता के उपान्त भी अपनी अध्ययन शीलता एवं पुरुषार्थ के बल पर आपने अनेक उपलब्धियों और उपाधियों को प्राप्त किया। आपने काशी विश्वविद्यालय के लेक्चर, रीडर, प्रोफेसर पदों के सोपान पर कार्य के उपरान्त वही विभागाध्यक्ष एवं कला संकाय प्रमुख (डीन) जैसे अति प्रतिष्ठित पद को सुशोभित किया। साथ ही आपने अपने 109