________________ सिद्ध-सारस्वत विद्वज्जगत् में सर्वोपरि प्रतिष्ठा बड़े ही सौभाग्य का विषय है कि हमारी जन्मस्थली बंडा के पास ही एवं मेरे कर्मस्थल पटौवा (जहाँ मैं मेडिकल आफिसर रहा) के पास मंजला ग्राम में जन्मे विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शन लाल जैन साहब विद्वद्वरेण्य सिद्धसारस्वत एवं राष्ट्रपति जी से सम्मानित व्यक्तित्व है। आपके 75वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर सम्मानार्थ प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ में मुझे कुछ विचार प्रेषित करने का अवसर मिला यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय है। सागर मेडिकल कालेज में न्याय चिकित्सा विभाग में पदस्थ रहते हुए मुझे अहमदाबाद से किसी सज्जन ने फोन कर पंडित प्रवर प्रो. एस.एल. जैन के बारे में, एवं उनका फोन नम्बर चाहा, मैंने पूछा क्यों, तो वह बोले मेरी धार्मिक शंका जो आज तक कोई भी विद्वान् दूर नहीं कर पाया उसका निराकरण करना चाहता हूँ। कहने का तात्पर्य यह है कि समस्त भारतवर्ष में आप संस्कृत, प्राकृत, साहित्य, न्याय एवं जैनदर्शन के मूर्धन्य विद्वान् माने जाते हैं। पंडित जी साहब शतायु हों एवं हम जैसे लोगों को आशीर्वाद मिलता रहे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ। डॉ. संजय जैन, एम. डी. न्याय चिकित्सा विभाग, गांधी मेडिकल कालेज, भोपाल निष्काम-निर्लोभवृत्ति आपके कार्यकाल में कई नियुक्तियाँ हुई जिसमें आपने योग्यता एवं विषय विशेषज्ञता का विशेष ध्यान रखा। इसके लिए संस्कृत विभाग आपका चिरऋणी रहेगा। आपने दबाव में और प्रलोभनों में आकर कोई काम नहीं किया। आपका छात्रों के साथ वात्सल्य भाव रहता है जिससे छात्र-छात्राओं के अन्तर्मन में आपकी अमिट छाप पड़ जाती है। आपकी विद्वत्ता, विनम्रता, गंभीरता, सहजता एवं सौम्यता ही आपके व्यक्तित्व के परिचायक हैं। आपके शोधनिर्देशन में अनुसंधान करने वाले लगभग सभी छात्र आज उच्च शिक्षा से जुड़कर शिक्षण एवं शोध में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। आप निरन्तर संस्कृत के कार्य में नित्य नवीन उपलब्धियाँ एवं पुरस्कार प्राप्त करते रहें। सर्वदा स्वस्थ, सुखी एवं साहित्य सर्जना में गतिशील रहें यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है। आपका आशीर्वाद हम शिष्यों को अनवरत प्राप्त होता रहे इन्हीं कामनाओं के साथ आपका चरणावनत शिष्य डॉ. नीरजाकान्त पाण्डेय प्रवक्ता संस्कृत, राजकीय इण्टर कालेज, मीरजापुर हमारे सहपाठी आज भी सरल प्रकृति हैं श्रीमान् पं. प्रवर प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन के विद्यार्थी जीनव की कुछ बातें वर्तमान में भी स्मरणीय हैं, कटनी शांति निकतन विद्यालय में 1956 से 5 वर्ष तक हम दोनों ने एक साथ रहकर अध्ययन किया। पं.जी कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करते थे क्योंकि जीवनशैली सात्विक थी एवं स्मरण शक्ति भी तीव्र थी। पं. जी सरल स्वभावी, हंसमुख उनकी मधुरभाषी, निस्पृही एवं सहज शान्ति के प्रतीक रहे / मेरा तो पं. जी से विद्यार्थी जीवन में घनिष्ठ प्रेम रहा उनके सम्बन्ध में जितना लिखू कम ही पड़ेगा। आज भी उनमें वही सरलता एवं सहजता है। इतनी उन्नत पदवी पाकर भी हम जैसों को आत्मीय मित्र मानते हैं। हम उनके उज्ज्वल भविष्य की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। पं. नेमीचन्द जैन भोपाल 104