________________ सिद्ध-सारस्वत जिनवाणी के सिद्धान्तों से समझौता अस्वीकार डॉ. सुदर्शन लाल जी बहुत ही शान्त स्वभाव के सरल परिणामी जीव हैं जिनेक आस पास क्रोध तो आता ही नहीं है। आपके द्वारा धार्मिक और सामाजिक सङ्गोष्ठियों में अनेक महत्त्वपूर्ण आलेख प्रस्तुत किये गये हैं। पंडित जी के द्वारा वर्ष 2014 में आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के चातुर्मास के दौरान विद्वत्सङ्गोष्ठी में एक आलेख प्रस्तुत किया गया था जो बहुत ही मार्मिक एवं गम्भीर था। विद्वज्जनों के द्वारा बहुत ही तारीफ की गई थी। आचार्य श्री ने भी आलेख की तारीफ की थी। पं. जी स्वयं सरस्वती पुत्र हैं, मातृपक्ष से तथा विद्वत्ता के पक्ष से। मंजला (जिला सागर) आपकी जन्मभूमि है। बचपन में ही मातृवियोग हो जाने से पिताश्री स्व. सिद्धेलाल जी ने तथा उनकी बहिनों ने पं. जी का पालन पोषण किया। धार्मिक जैन संस्थानों में पढ़कर अपनी लगन से ऊँचाईयों को प्राप्त किया। 15 अगस्त 2012 में आपको विद्या के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के कारण महामहिम राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार की घोषणा की गई जिसकी राशि पं. जी को जीवन भर मिलती रहेगी। जब से पं. जी वाराणसी से जैन नगर भोपाल पधारे हमारा सौभाग्य है। आपकी अपने धर्म पर दृढ आस्था है। दो बार आपको विपरीत धर्म मानने वाले लोगों ने उनके साथ जुड़ने का आग्रह किया और प्रलोभन भी दिया, यह भी कहा कि आपको बहुत ऊँचाइयों पर पहुँचा देंगे। हाथी पर बैठाकर जुलूस निकालेंगे परन्तु उन्होंने अपने सिद्धान्त से समझौता नहीं किया। आपके पास अखण्ड ज्ञान का भण्डार है, हीरे मोती सब हैं उन्हें समेटने वाला होना चाहिए। आपके प्रवचनों में एक सम्मोहन है। इस सबका श्रेय पं. जी अर्धाङ्गनी डॉ. मनोरमा जैन को देते हैं। वस्तुत: सुयोग्य धर्मपत्नी न हो तो ऊँचाईयों तक नहीं पहुँचा जा सकता है। मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि वे शतायु हों तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में लगे रहें। मैं उनके चरणों में प्रणाम करता हूँ। ज्योतिषी श्री अजय जैन जैन नगर भोपाल प्रतिष्ठा, उपासना और विद्यानुराग प्रेमी मध्यप्रदेश के दमोह जिले से काशी आकर आदरणीय प्रो० सुदर्शनलाल जैन ने काशी को अपना कर्मक्षेत्र बनाया और लगभग 5 दशकों तक यहाँ निवास कर संस्कृत भाषा तथा जैनशास्त्रों के संरक्षण व संवर्धन के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया। आपकी आस्था यहाँ के प्रति गहरी बनी रही, विशेषकर इन जैन तीर्थों के प्रति। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप स्थित जैन मन्दिर तथा पार्श्वनाथ विद्यापीठ से आप निरन्तर सम्बद्ध रहे। विद्यापीठ के आप निदेशक रहे और उस दौरान आपने जैन कुमारसम्भव का सम्पादन तथा हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन किया। मुझे इस काव्य को पढ़ने का अवसर आपके सौजन्य से प्राप्त हुआ था। विश्वविद्यालय के समीप स्थित जैन मन्दिर में दर्शन करने का आपका नित्यक्रम बना रहा। इन जैन तीर्थों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में आपकी निरन्तर उपस्थिति और काशी के जैन समाज में आपकी प्रतिष्ठा, उपासना और विद्यानुराग के कारण निरन्तर बनी रही। काशी में 1906 में स्थापित श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के अतिरिक्त सुप्रसिद्ध पार्श्वनाथ विद्यापीठ, श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, भारतीय ज्ञानपीठ, वीरसेवा मन्दिर ट्रस्ट, प्राकृत जैन सोसाइटी, जैन संस्कृति संशोधक मण्डल, श्री जिनेन्द्र वर्णी शोध संस्थान, महावीर प्रेस आदि अनेक संस्थाओं से आपका सम्पर्क रहा। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्राकृत तथा जैन दर्शन की विशेषज्ञता के अध्ययन अध्यापन में समर्पित रहते हुए भी आप विश्वविद्यालय के ही संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान सङ्काय में स्थित जैन बौद्ध दर्शन विभाग तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थित श्रमण विद्या सङ्काय से भी जुड़े रहे और जैन दर्शन, जैनागम, प्राकृतभाषा और सम्पूर्ण जैन वाड्मय को अपनी अभूतपूर्व सेवा प्रदान करते रहें। में उनके प्रति नतमस्तक हूँ। डॉ. श्रीमती शोभ मिश्रा 106