________________ सिद्ध-सारस्वत आपके वैदुष्य एवं सरलता को नमन बड़ी ही प्रसन्नता हो रही है कि इस देश के जैन समाज के विद्वान् ख्यातिलब्ध पं. सुदर्शन लाल जी पर अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन वीतराग वाणी ट्रस्ट टीकमगढ़ की देख रेख में हो रहा है। इस शुभ कार्य के लिए मैं जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् और देश के प्रख्यात प्रतिष्ठाचार्य वाणीभूषण पं. विमल कुमार जी सौंरया शास्त्री को आत्मीय साधुवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने एक सुयोग्य, सरल, सहज एवं साहित्य तथा संस्कृति एवं समाज के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले साहित्य के प्रकाण्ड मर्मज्ञ व्यक्ति पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का सोचा। श्री पं. सुदर्शन लाल जी से मेरी मुलाकात जैन नगर भोपाल में हुई। उनके ज्ञान, ध्यान के बारे में चर्या शिरोमणि आचार्य 108 विशुद्ध सागर जी महाराज का उनको विशेष आशीर्वाद प्राप्त है। जैन धर्म में आपकी गहरी रुचि है तथा निस्वार्थ समाज सेवा में आपने पूरा जीवन समर्पित किया है। आपकी बहुआयामी प्रतिभा से समाज को बहुत लाभ हुआ है। संस्कृत एवं शिक्षा के क्षेत्र में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मान मिलना अपने आप में अमूल्य योगदान समाज को जाता है क्योंकि आपके उत्कृष्ट कार्य से समाज का नाम रोशन हुआ है। आपने अपने पूरे परिवार को उच्च शिक्षा दिलवाई। आपकी महान धार्मिकता, सौम्यता, कर्मठता से परिपूर्ण व्यक्तित्व वा कृतित्व का प्रकाश सदैव समाज का मागदर्शन कर रहा है तथा भविष्य में भी करता रहेगा। समाज सदैव ही आपका ऋणी रहेगा। अन्त में भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि आपका जीवन सुखी तथा निरोगी रहे। आप निस्वार्थ परमार्थ सेवा करते रहें। आप यशस्वी हों। इसी मङ्गलकामना के साथ हम जैन नगरवासियों एवं भोपाल जैन समाज का परम सौभाग्य है कि आप जैसे महान् मङ्गलकारी विद्वान् का स्नेह सानिध्य हम सभी को मिल रहा है। आपको में पूरी समाज की तरफ से नमन करता हूँ। जय जिनेन्द्र। शुभकामानाओं सहित। श्री प्रमोद चौधरी, एडवोकेट अध्यक्ष - श्रीनन्दीश्वरदीप जिनालय ट्रस्ट जैननगर, भोपाल आपका अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रेरणा स्तम्भ बने यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि जैनदर्शन प्राकृत एवं संस्कृत भाषा-साहित्य के वरिष्ठ विद्वान् प्रो. सारस्वत साधक सुदर्शनलाल जी जैन के 75 वें जन्मदिवस के माङ्गलिक शुभावसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होगा। सन् 1965 से अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् की सदस्यता के समय से ही मैं विद्वत्वरेण्य डॉ. सुदर्शनलाल जी से भलीभाँति परिचित रहा हूँ। प्रो. सुदर्शनलाल जैन जी प्रारम्भ से ही सरस्वती के साधक रहें हैं। नाना सङ्घर्षमयी परिस्थितियों के मध्य भी आपकी साहित्य-साधना अनवरत चलती रही। पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया, पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, डॉ. हरीन्द्र भूषण जी, डॉ. कस्तूरचन्द्र जी कासलीवाल आदि वरिष्ठ विद्वानों के सानिध्य में अपनी साहित्य-साधना करते रहे। विद्वत्परिषद् के मन्त्री के रूप में आपने अनेक स्थलों पर जैन विधा विषयक साहित्य सङ्गोष्ठियों का सफल सञ्चालन किया है। लगभग 20 वर्ष तक अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् की कार्यकारिणी के सक्रिय सदस्य रहने से मुझे आपके साहित्य-साधना के कार्यवृत्त से सानिध्य प्राप्त हुआ है। भारतीय संस्कृति के विकास में जैनधर्म का योगदान और देवशास्त्र-गुरु ये आपकी दो रचित एवं सम्पादित कृतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। प्रारम्भिक जीवन के सङ्घर्षों के मध्य अपनी धार्मिक आस्था, साहित्य-साधना और सम्यक् पुरुषार्थों से अपनी उच्चतम उपलब्धियों से जैन विद्वत्समुदाय के शिरोमणि बने हैं। सम्प्रति आप विद्वानों के शिरोमणि स्वरूप हैं। आपकी सहधर्मचारिणी श्रीमती डॉ. मनोरमा जी आपके साथ साहित्य-साधना में रत रहती हैं। आपकी अनवरत साहित्य-साधना का प्रतिफल राष्ट्रपति सम्मान है। आपके 75 वें जन्मदिवस के शुभावसर पर आपके उत्तम स्वास्थ्य और निरन्तर अभ्युदय की मङ्गलकामना में आपका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रेरणा स्तम्भ बने। डॉ. प्रेमचन्द रांवका पूर्व प्रोफेसर, भाषाविज्ञान, जयपुर