________________ सिद्ध-सारस्वत पुण्योदय में सब कुछ पाया, श्रुतोपासना-साधन है।।३।। शिक्षा पाई एम.ए.संस्कृत, शोधकार्यकर जैन न्याय तीर्थ। सिद्धान्त शास्त्री, साहित्य रत्न हो, जैन दर्शन प्राकृत-प्रवीण।। अध्ययन कीना दमोह-कटनी में, सागर नगरी मोराजी। वाराणसी-स्याद्वाद विद्यालय, बी.एच. यू. है वाराणसी।।4।। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, पार्श्वनाथ विद्या है पीठ। शिक्षापूर्ण कर कर्तव्य पालना, अर्थोपार्जन जतन है कीन।। शिक्षक बन शिक्षा भी दीनी, वर्धमान कालेज संस्कृत बिजनौर। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वर्ष अड़सठ बने शिर मौर।।। / / लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर बन, विभागाध्यक्ष-अनुशासन से। दो हजार छ तीस जून में सेवा मुक्ति शासन से।। शोध छात्रगण आप चौबालिस, पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त / देश-देशान्तर सेवारत हैं, पठन-पाठ शिक्षा संस्थान।।6।। पार्श्वनाथ विद्यापीठ निदेशक, विद्वत् परिषद् मन्त्री आप। उपाध्यक्ष भी आप रहें हैं, मन्त्री काशी नरिया जैन समाज।। गणेश वर्णी संस्थान निदेशक, प्रबन्ध तन्त्र अध्यक्ष थे आप। स्याद्वाद महाविद्यालय काशी, अन्य पदों की शोभा आप।।7।। महामहिम राष्ट्रपति पुरस्कार, सुमति सुधा श्रुत सम्वर्द्धन हैं। शिक्षा क्षेत्र के अन्य बहुत से, पुरस्कारों का अर्जन है।। श्रुतसेवा के विविध रूप हैं, अनुदित कृतियाँ मौलिक हैं। सम्पादित तो बहुतांहि कृतियाँ, सदुपयोग समय अलौकिक है।।8।। अन्तर्भावना - हम सबकी है यही कामना, होंय शतायु विद्वत् श्रीमान्। देवागमगुरु परमोपासक, लाल सुदर्शन बने महान / / अभिनन्दन की आनन्द बेला, समाधि मरण हो अन्त श्रमण। नरतन होगा सफल आपका, भावय यही 'दीवान पवन'।।9 / / प्रतिष्ठाचार्य पवन कुमार जैन 'दीवान' मुरैना हम सबके चहेते पं. जी बड़े ही हर्ष की बात है कि सेवानिवृत्ति के बाद हमारे जैन नगर भोपाल में रहने वाले पं. सुदर्शन लाल जैन जी के 75 वें जन्मदिवस पर वीतराग वाणी ट्रस्ट उनका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर रहा है। पं. जी हम सभी जैन नगरवासियों के चहेते हैं। ये बड़े विद्वान् होने के साथ सरल तथा मिलनसार हैं। इनके बारे में कुछ कहना सूरज के सामने दीपक दिखाना है। मास्टर श्री सिद्धेलाल जैन और श्रीमती सरस्वती देवी के सुपुत्र श्री सुदर्शन लाल जैन जी ने अपने गुणों के द्वारा अपने माता-पिता का नाम रोशन किया तथा स्वयं भी अपने पुरुषार्थ के बल से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में प्रोफेसर, अध्यक्ष और डीन जैसे पदों पर पहुँचे। देश-विदेश में अपनी विद्वत्ता का विगुल बजाया। भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणवमुखर्जी ने भी आपको सम्मानित किया। पूर्व जन्म के पुण्योदय से डॉ. मनोरमा जैन जैसी विदुषी आपकी अर्धाङ्गिनी बनी। जिन्होंने आपके जीवन में संस्कारों के कारण सभी मातृ-पितृ भक्त हैं। पं. जी स्वयं जिनेन्द्र भक्त, देश भक्त, गुरु भक्त तथा मातृ-पितृ भक्त हैं। मैं और मेरा परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है। आप स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों तथा धर्मक्षेत्र में निरन्तर अग्रसर हों। श्री मुल्तानचंद जैन (काका जी) जैन नगर, भोपाल 89