________________ सिद्ध-सारस्वत एक चुम्बकीय व्यक्तित्व प्रोफेसर पं. सुदर्शन लाल जैन मेरे लिये कुछ समय पहले तक एक अजनवी थे। पर मैं नहीं जानता कि हम लोगों का परिचय कैसे हो गया। पर यह स्वयं सिद्ध है कि चुम्बक लोहे को खींचता है। पं. जी का व्यक्तित्व एक चुम्बक के समान ही है जो हम जैसे लोहे को खींच लिया। पं. जी वाराणसी में संस्कृत के प्रोफेसर रहे हैं। प्राकृत भाषा में भी इनका पाण्डित्य है। पं. जी एक विद्वान्, मृदुभाषी, सरल स्वभावी एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं। आचार्यश्री 108 विशुद्धसागर जी का जब 2014 में आगमन जैन नगर में हुआ था। पं. जी भी उसी समय भोपाल में आए थे। श्रीसिद्धचक्र विधान का अवसर था। उस समय आचार्य श्री के मुख से पं. जी का नाम सुना था। उसी समय पं. सोरया जी ने ही मुझे उनकी ओर आकर्षित किया था और कहा था कि पता लगाओ कि प्रोफेसर साहब रहते कहाँ हैं। यह संयोग ही था कि मैंने भी रुचि दिखाई और परिचय हो गया। परिचय के बाद ही पता चला कि वे मेरे मामाजी के सहपाठी रहे हैं। मेरा परिचय बढ़ता गया फिर मैंने पं. जी से कहा कि वे सुबह या रात्रि में स्वाध्याय शुरु करावें / उन्होंने हमारी विनय को स्वीकार करके सुबह स्वाध्याय कराना शुरु किया। काफी समय तक स्वाध्याय अनवरत चलता रहा और काफी लोगों ने इसका लाभ लिया। पयूषण पर्व आये, रात्रि को एवं सुबह प्रवचन के लिये पं. की आवश्यकता थी। पंडित जी को वगैर सूचित किये एवं बिना स्वीकृति के नाम हमने लिख दिया। जब पं. जी मन्दिर आये तो उनसे प्रवचन के लिये कहा। इतनी सरलता कि पंडित जी कुछ कह न सके और दस दिन मोक्षशास्त्र एवं दश धर्मों के प्रवचन का लाभ जैन नगर समाज को मिला। एक और घटना याद आ रही है आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी का चातुर्मास हबीबगंज भोपाल में चल रहा था। पं. जी ने एक दिन मुझसे कहा कि चलो आचार्य जी के दर्शन कर आयें, मैं उनके साथ गया। उस भारी भीड़ के बीच आचार्य श्री आहार के उपरान्त अपने कक्ष में जा रहे थे। मैं और पंडित जी भी भीड़ में उनके दर्शन करने के लिये घुटनों के बल जमीन में बैठकर आचार्य श्री का अभिवादन कर रहे थे। जैसे ही आचार्य श्री नजदीक आये हम लोगों ने नमोस्तु कहा। आचार्यश्री ने पंडित जी को देखा, क्षण भर रुके और कक्ष में आने का संकेत किया। पर आचार्यश्री के कक्ष में जाना सरल बात नहीं थी फिर भी बात बन गई और आचार्यश्री के कक्ष में पहुँच गये। काफी समय तक आचार्यश्री और पण्डित जी की चर्चा होती रही। आचार्य श्री कनखियों से कभी-कभी मुझे भी देख लेते थे। पंडित जी ने भांप लिया और और आचार्य श्री से मेरा परिचय भी कराया, जिस का फल मुझे आशीर्वाद के रूप में मिला। वे क्षण जो पंडित जी की वजह से मुझे प्राप्त हुये थे मैं कभी नहीं भूल सकता। उसी समय मैंने जाना कि पंडित जी का व्यक्तित्व कितना महान् है। मैं पंडित जी की दीर्घायु की कामना करता हूँ और इच्छा करता हूँ कि पंडित जी की विद्वत्ता का लाभ जैन नगर की समाज को तथा अन्य सभी को काफी समय तक मिलता रहे। श्री पदम चन्द जैन सेवावृित्त इंजीनियर, जैन नगर, भोपाल निष्पही दृढ़ सिद्धान्तवादी आदरणीय प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन, जैनदर्शन, प्राकृत, संस्कृत के तलस्पर्शी विद्वान् हैं। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग को सुशोभित किया। वे विभागाध्यक्ष एवं डीन के पद पर भी रहे। विश्वविद्यालय में विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी उन्होंने अपने पद की गरिमा का पूर्णरूप से निर्वाह किया। किसी भी प्रकार के भय, लालच, लोभ से वे अपने सिद्धान्तों से नहीं डिगे। जन्म से गरीबी का संसर्ग रहने पर भी लाभप्रद पद उन्हें विचलित नहीं कर पाया। अनेक छात्रों ने आपके मार्गदर्शन में शोधकार्य करके पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त की हैं।