________________ सिद्ध-सारस्वत 'पाषाण-कणिका से हीरा बने' प्रो. श्री सुदर्शन लाल जैन के 75वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है यह विशेष खुशी की बात है। साधन विहीन अवस्था में भी आपने अपने पुरुषार्थ एवं उपादान के बल पर अनुकूल निमित्तों को प्राप्त कर अपने जीवन को शिखर पर पहुँचाकर श्री देवशास्त्रगुरु के परम आराधक बनकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष व डीन के पद के साथ छात्रों का उत्कृष्ट अध्यापन कार्य करवाकर अपने पदों को गौरवान्वित किया। आपने अनेक शोधछात्रों को पी-एच.डी. प्राप्त कराई एवं शताधिक शोधलेखों का लेखन कार्य किया। आप अपनी विद्वत्ता से भारत के महामहिम राष्ट्रपति के सम्मान से अलंकृत हुए। आपका जीवन पूर्ण सतत् संस्कारित रहा तथा आपने अपने परिवार के बच्चों व बेटियों को अहिंसा, अनुशासन, नैतिक ज्ञान, आराधना व आध्यात्म का ज्ञान कराया जिससे वे भी सद् संस्कारित हुये। वे उच्च पदों को प्राप्तकर धार्मिक सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में प्रगति कर रहें हैं। प्रो. साहब धार्मिकता, सरलता, विनम्रता, दयालुता, सौजन्यता, कर्तव्यपरायणता, शालीनता, उदारवादिता, मैत्रीवत्सलता, परोपकारता, वात्सल्यता आदि सद्गुणों के कारण महामानव बने हैं। वस्तुतः आप पाषाण-कणिका से हीरा बने हैं। अन्त में आप दीर्घायु के साथ-साथ आत्मकल्याण करें, ऐसी मेरी विनयाञ्जलि है। प्रो. शीलचन्द जैन पूर्वप्राचार्य, वरुआसागर सीधी-सीधी बात करते हैं पं. सुदर्शन लाल जैन के प्रति अभिनन्दन ग्रन्थ के माध्यम से मैं अपने उद्गार व्यक्त कर रहा हूँ।श्रमण संस्कृति, जैन आध्यात्म एवं दर्शन की धर्मध्वजा प्राचीन काल से ही फहराती रही है। वर्तमान काल खण्ड में अर्थात् आजादी के बाद के समय में प्राकृत एवं संस्कृत के विद्वान् होकर आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माध्यम से जैन दर्शन की प्रभावना करते रहे हैं, जो अपने आप में अनूठा कार्य रहा। आपकी शिक्षण शैली सरल एवं जन सामान्य को समझ आने वाली है और आप सीधी-सीधी बात कहते हैं। विद्वानों की ऐतिहासकि संस्था अ.भा.दिग.जैन विद्वात्परिषद् के माध्यम से एवं अन्य संस्थाओं के उच्च पदों पर रहते हुए समाज एवं आगम की सेवा की है जो स्तुत्य एवं सराहनीय है। आपकी प्राकृत से हिन्दी में अनुवाद शैली अति उत्तम है। 44 शोधप्रबन्धों का निर्देशन करना महती उपलब्धि है। आपके 75 वें जन्मदिन पर मेरी शुभकामनाएँ हैं एवं आप जिनवाणी की सेवा करते रहें ऐसी भावना करता हूँ। वीतरागी वाणी ट्रस्ट टीकमगढ़ भी साधुवाद का पात्र है, जो आपके सम्मानार्थ इस अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कर रहा है। विद्वानों का अभिनन्दन करना एक अच्छी उचित प्रेरणादयक परम्परा है। आप स्वस्थ और शतायु हों। पं. केशरीमल जैन जैननगर, भोपाल