________________ सिद्ध-सारस्वत आपको राष्ट्रपति सम्मान से विभूषित किया गया है। इस आयु में भी आप अपना शैक्षणिक अवदान समाज को प्रदान कर रहे हैं। जैन संस्कृति के इतिहास में आपकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी आपका मार्गदर्शन हमें प्राप्त होता रहे। आप अपने शोध-छात्रों के सदैव हितैषी और उच्च कोटि के मार्गदर्शक रहे हैं, आपने अपनी साहित्य साधना से जो कुछ भी प्राप्त किया उसे मुक्त हस्त से अपनी शिष्य परम्परा को बाँटा है। आपकी सरलता, आत्मीयता, स्नेह और शैक्षणिक जागरूकता से विद्यार्थी और शोधार्थी सदैव ही लाभान्वित हुए हैं। आप संस्कृत-सौदागिनी, स्यादवाद् एवं श्रमण पत्रिका आदि शोध पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन में भी लगे रहे। इसके अतिरिक्त आपने शताधिक शोध पत्र एवं समसामयिक चिन्तनपरक लेख भी प्रस्तुत किये है, साथ ही आपकी आकाशवाणी से संस्कृत में वार्तायें भी प्रसारित होती रही हैं। आपके 75 वें जन्मदिवस पर हम तीर्थकर भगवान् से यही मङ्गल कामना करते हैं कि आप दीर्घायुष्य रहकर आरोग्य को प्राप्त हों और जैनदर्शन एवं प्राकृत के क्षेत्र में सदैव जयवन्त बने रहें। प्राकृतविद्या एवं जैन दर्शन के क्षेत्र में हमें आपका मार्गदर्शन सदैव प्राप्त होता रहे। डॉ. विकास चौधरी एवं श्रीमती वन्दना चौधरी एल - 188, बप्पा रावल नगर, हिरण मगरी, उदयपुर-313002 अथाह वैदुष्य के धनी तथा शिक्षार्थियों के प्रति उदारवृत्ति विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शन लाल जैन जी संस्कृत वाङ्मय, दर्शनशास्त्र एवं प्राकृत आदि भाषाओं के तलस्पर्शी ज्ञाता हैं। आपकी कृतियाँ (मौलिक+सम्पादित), शताधिक शोध पत्र इस बात के परिचायक हैं कि आप अथाह वैदुष्य के धनी हैं। मात्र दस मास की अवस्था में आपको मातृवियोग का दंश झेलना पड़ा। अनेक विपरीत परिस्थितियों में भी आप श्रुत-आराधना से विमुख न हुए। आर्थिक-विपन्नता, शारीरिक-पीड़ाओं के रहते हुए भी आपने साहित्य-सर्जन एवं शोध के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। आपकी शोधात्मक क्षमता का ही सुफल है कि आपकी कृतियों में धर्म एवं विज्ञान का समन्वय सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। आपने अनेक विश्वविद्यालयों में शिक्षा देने के साथ-साथ कला सङ्काय अध्यक्ष, (डीन) जैसे पदों को भी अलंकृत किया। आपकी साहित्य सपर्या को अविरल बनाये रखने में धर्मपत्नी डॉ. मनोरमा जी का समर्पण अद्भुत है। विदुषी होने के साथ-साथ डॉ. मनोरमा जी आदर्श गृहिणी भी हैं। मुनिपुंगव 108 श्री सुधासागर पुरस्कार की राशि श्रमण संस्कृति संस्थान को तुरन्त भेंट दे देना आपके दान बहुल गुण को दर्शाता है। शारीरिक पीड़ा के बावजूद शिष्य डॉ. जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर के अभिनन्दन ग्रन्थ लोकार्पण समारोह में जाना आपके शिष्य वात्सल्य का परिचायक है। समाज, राष्ट्र के उत्थान के लिए विद्वत्ता का सम्मान अनिवार्य है। राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत आदरणीय प्रो. साहब के 75 वें जन्मवर्ष पर आपके अभिनन्दन ग्रन्थ 'सिद्ध-सारस्वत' के प्रकाशन का समाचार पाकर मन-मयूर आनन्दित है। आशा है भविष्य में आपके अनुभवों एवं शोधवृत्ति का लाभ प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ से नवोदित विद्वानों को अवश्य मिलेगा। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक, प्रबन्ध सम्पादक, संयोजक, सम्पादक मण्डल को इस महनीय, श्रमसाध्य, अनुकरणीय कार्य के लिए बधाई, आभार। प्रो. सुदर्शन लाल जी शतायु हों, हमारा मार्गदर्शन करते रहें। इसी भावना के साथ। पं. संजीव कुमार जैनाचार्य, महरौनी, ललितपुर, उ.प्र.