________________ सिद्ध-सारस्वत संकाय के अन्तर्गत जैन-बौद्धदर्शन विभाग में प्राध्यापक के पद पर हो गई। 'समानशीलव्यसनेषु सख्यम्' के आधार पर हम दोनों में निकटता तो बढ़ी ही, पारिवारिक सम्बन्ध भी दृढ़ से दृढ़तर होते गये। दूसरी ओर डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन लेक्च रर से रीडर तथा रीडर से प्रोफेसर बन गये और वे संस्कृत विभाग के दो बार अध्यक्ष भी बने। इतना ही नहीं वरिष्ठता के आधार पर वे कलासङ्काय के सङ्काय प्रमुख भी बने और सङ्काय प्रमुख होने के कारण अनेक विभागों के अध्यक्ष भी बने। इस प्रकार उन्होंने उत्तरोत्तर अनेक पदों को सुशोभित तो किया ही, साथ ही उनके निर्देशन में करीब चार दर्जन पी-एच.डी. छात्र भी निकले, जो आज अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं तथा उनका निरन्तर यशोगान कर रहे हैं। सन् 2006 में आपने विश्वविद्यालय की सेवाओं से अवकाश प्राप्त कर लिया है और अब स्वान्तः सुखाय अपने घर भोपाल में लेखनादि कार्य सम्पन्न कर रहे हैं। आपने प्रारम्भ से ही अनेक मौलिक ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन एवं अनुवाद आदि करके माँ सरस्वती के भण्डार की श्रीवृद्धि की है। फलस्वरूप आप राष्ट्रपति सम्मान से पुरस्कृत हैं। मेरा सौभाग्य यह है कि मुझे भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में क्रमश: लेक्चरर से रीडर, रीडर से प्रोफेसर और जैन बौद्ध दर्शन विभाग का विभागाध्यक्ष बनने का अवसर मिला है तथा अल्पकाल के लिये संस्कृतविद्या धर्म विज्ञान सङ्काय का सङ्काय प्रमुख बनने का भी अवसर मिला। मेरी इन सब उपलब्धियों में आदरणीय भाईसाहब डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन की महती भूमिका रही है। उनका सतत स्नेह एवं आशीर्वाद अब भी मेरे साथ है। इन सबके लिये मैं आदरणीय भाईसाहब का हृदय से कृतज्ञ हूँ। एक बात और आ.भाई सा. की धर्मपत्नी श्रीमती मनोरमा जैन ने मेरे निर्देशन में राजमल्ल कृत पञ्चाध्यायी पर शोधकार्य करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है, इसमें उनका पुरुषार्थ फलीभूत हुआ है। मैं तो निर्देशक के रूप में एक निमित्त मात्र बना। इस शोध प्रबन्ध पर श्रीमती मनोरमा जैन को अनेक राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं ने पुरस्कृत भी किया है, जो निश्चय ही अध्ययन के प्रति उनकी लगन और रुचि का परिणाम है। अभिनन्दनीय का अभिनन्दन एक सुखद अनुभूति कराता है। अत: डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन के सम्मान में प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु मैं अन्त:करण से अपनी मङ्गलकामनाएँ प्रेषित करता हूँ और भावना भाता हूँ कि आदरणीय भाईसाहब एवं भाभी जी सपरिवार निरन्तर उच्च से उच्चतर प्रतिमानों का स्पर्श करते रहें तथा हमारे आदर्श के रूप में सदैव प्रतिष्ठित रहें। डॉ. कमलेश कुमार जैन पूर्वप्रोफेसर,जैनबौद्धदर्शन विभागाध्यक्ष, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान सङ्काय, बी.एच.यू., वाराणसी विद्वत्ता, धर्मवत्सलता और उदारता का संगम बुंदेलखंड की सस्यश्यामला वसुन्धरा ने अनेक रणबांकुरों को जन्म दिया है, वहीं अनेक बुंदेली कवियों, साहित्यकारों को भी आश्रय प्रदान किया है। इसी श्रृंखला में सर हरिसिंग गौर जैसे विधि वेत्ताओं, लेखकों को भी समलंकृत किया है। पूज्य श्री गणेश प्रसाद वर्णी जैसे समाज सुधारकों एवं शिक्षा जगत् के महनीय कार्य करने वाली महान् विभूतियों को भी संरक्षण प्रदान किया है। इसी उर्वरा वसुंधरा में ही सागर जिले के मंजुला ग्राम में मातुश्री स्व. सरस्वती देवी की कुक्षी से इस बालक का जन्म हुआ। पर कुछ समय बाद ही उन्हें अपनी मातु श्री का दुलार प्यार प्राप्त नहीं हुआ और वे इन्हें अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। पिता जी की छाया एवं लाड प्यार में इनका पालन पोषण हुआ। बढ़ते हुए समय के साथ-साथ आप भी बढ़े एवं ज्ञान-प्राप्ति हेतु आपके पूज्य पिता श्री सिद्धेलाल जी ने इन्हें श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय में पढ़ने भेज दिया। प्रतिभा सम्पन्न, लगनशील परिश्रमी आपने ज्ञानाराधना में अत्यन्त रुचि के साथ ज्ञानोपार्जन किया तथा हमेशा उच्च स्थान प्राप्त किया। यह क्रम निरन्तर बढ़ता ही चला गया। इसके पश्चात् श्री स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। अपने वैदुष्य के कारण आपने पी-एच.डी. की