________________ सिद्ध-सारस्वत हालांकि कई बार आपकी राह में आर्थिक बाधाएँ भी आई मगर आपने धैर्य पूर्वक निर्वाह किया। प्रो. सुदर्शन लाल जैन अपने प्रखर व्यक्तित्व के कारण विद्वज्जनों में आदरणीय रहे हैं। जैन समाज काशी द्वारा आपको समय-समय पर जैन दर्शन पर व्याख्यान के लिए निमंत्रित किया जाता रहा है। अपनी लेखनी द्वारा आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की जो कि भविष्य में 'मील का पत्थर' के रूप में जानी जायेगी। आपकी संस्कृत-प्राकृत भाषा की सेवाओं के फलस्वरूप ही भारत सरकार द्वारा सन् 2012 में महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया गया। उत्तरप्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ द्वारा भी आपको स्वलिखित ग्रन्थों पर कई बार सम्मानित किया गया। जिस तरह से हर बड़े व्यक्ति के जीवन में उन्हें सफल बनाने के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है, उसी तरह से आपको अपनी धर्मपत्नी श्रीमती मनोरमा जैन का हाथ रहा है। आज डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन के पुत्र डॉ. सन्दीप जैन एवं बहू अर्चना जैन (अमेरिका), संजय कुमार जैन एवं बहू आरती जैन एम.डी. (अमेरिका) एवं पुत्र अभिषेक जैन एवं बहू नीलू जैन एम.बी.ए. (मुम्बई) में कार्यरत हैं। पुत्री डॉ. मनीषा जैन एम.डी एवं अजय जैन एम.सी-एच. भोपाल में डाक्टर के पद पर कार्यरत हैं। इस प्रकार डॉ. सुदर्शनलाल जी जैन ने अपने परिवार को बहुत ही साधारण परिवार से होते हुए भी एक अतिप्रतिष्ठित परिवार के रूप में सींचा और बड़ा बनाया। प्रो. डॉ. नरेन्द्र कुमार सामरिया सेवानिवृत्त प्रोफेसर, मेकेनिकल विभाग, आई. आई. टी. (बी.एच.यू), वाराणसी हमारे आदर्श तथा उच्चतर प्रतिमान स्पर्शकर्ता मैं सन् 1969 में श्री शान्ति निकेतन जैन संस्कृत विद्यालय कटनी से वाराणसी के श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु आया था। कटनी विद्यालय में गुरुजन समय-समय पर उन मेधावी छात्रों की चर्चा करते रहते थे, जो कटनी विद्यालय से प्रारम्भिक शिक्षा पूर्णकर अन्यत्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने चले गये थे अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर किसी स्थान विशेष में उच्च पदासीन हो गये थे। उस समय कटनी विद्यालय में स्वनामधन्य श्रद्धेय पं. जगन्मोहनलाल जी यशस्वी प्राचार्य पद पर आसीन थे। वे जब विद्यालय के मेधावी छात्रों की चर्चा करते थे तो प्राय: डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी (वैशाली), श्री नीरज जैन (सतना), डॉ. सुदर्शन लाल जैन (वाराणसी) और डॉ. प्रेम सुमन जैन (उदयपुर) आदि का नाम गौरव के साथ लेते थे और बतलाते थे कि ये सभी छात्र कटनी विद्यालय के हैं तथा उच्च पदों पर आसीन हैं। पूज्य पण्डित जी द्वारा जब इन विद्वानों के नाम सुनते थे तो हृदय में अत्यन्त हर्ष की अनुभूति होती थी और मन में ये विचार आते थे कि हम भी उन्हीं विद्वानों जैसी उच्च शिक्षा प्राप्तकर आगे बढ़ें, क्योंकि इन विद्वानों के प्रति मन में अपार आदरभाव तो था ही, साथ ही ये हमारे आदर्श भी थे। स्याद्वान महाविद्यालय के समीप में ही डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन सपरिवार निवास कर रहे हैं, ऐसा जानकर मुझे अत्यन्त सन्तोष हुआ और एक ही गुरु श्रद्धेय पं. जगन्मोहनलाल जी शास्त्री के शिष्य होने के कारण आदरणीय भाई साहब डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन से धीरे-धीरे निकटता बढ़ती गई और मैं आदरणीय भाईसाहब एवं भाभी जी श्रीमती मनोरमा जैन का स्नेहपात्र कब बन गया ? मुझे ज्ञात न हो सका। हाँ सुख-दुःख में हम लोग एक-दूसरे का सहयोग अवश्य करने लगे। यद्यपि डॉ. सुदर्शन लाल जी जैन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्राध्यापक और मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अदना सा छात्र, किन्तु एक ही गुरु के शिष्य होने के कारण प्राध्यापक और छात्र की दूरियाँ प्रायः कम होती गई और वे मुझे छोटे भाई की तरह स्नेह देने लगे और मैं उन्हें बड़ा भाई जैसा सम्मान देने लगा। मेरे भाग्य ने पलटा खाया और श्रद्धेय गुरुवर्य सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, श्रद्धेय प्रो. उदयचन्द्र जी जैन आदरणीय भाई साहब डॉ. कोमलचन्द्र जी जैन एवं आदरणीय भाईसाहब डॉ. सुदर्शनलाल जी जैन आदि के आशीर्वाद एवं मङ्गलकामनाएँ फलीभूत हुईं और मेरी नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान