________________ सिद्ध-सारस्वत अनेक प्रज्ञाओं के संगम राष्ट्रपति सम्मान से अलंकृत, विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शनलाल जी जैन विद्वज्जगत् के एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं। आप अनेक प्रज्ञाओं के संगम हैं। आप संस्कृत-प्राकृत भाषाओं तथा उनमें रचित साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् एवं सुदक्ष विश्वविद्यालयीन प्राध्यापक हैं। आप एक मँजे हुए लेखक, शोधकर्ता, शोधनिर्देशक एवं प्रभावोत्पादक वक्ता हैं। आपकी विद्वत्ता, धर्मानुरागता एवं श्रुतज्ञता के फलस्वरूप देश के सभी विद्वान्, साहित्यकार, निर्ग्रन्थ आचार्य, मुनिराज एवं आर्यिका माताएँ आपसे सुपरिचित हैं। आपने भारत के सुप्रसिद्ध एवं प्राचीन विद्यापीठ 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी' में 38 वर्षों तक लेक्चरर, रीडर एवं प्रोफेसर के रूप में संस्कृत का अध्यापन किया है। साथ ही विभागाध्यक्ष एवं कला सङ्काय प्रमुख (डीन) के उत्तरदायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह किया है। आपके विद्वत्तापूर्ण कुशलनिर्देशन में 44 शोधार्थी पी-एच.डी. उपाधि से विभूषित हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी में भी आप निदेशक पद पर आसीन रहे हैं। आपका ज्ञानक्षितिज बहुत विस्तृत है। उसका परिचय आपकी विविध उपाधियाँ ही दे देती हैं। एम. ए. (संस्कृत), पी-एच.डी., जैनन्यायतीर्थ, सिद्धान्तशास्त्री एवं जैनबौद्धदर्शनशास्त्री, उपाधियों की यह कतार प्रो. सुदर्शनलाल जी के बहुमुखी ज्ञान और अध्ययन का उद्घोष करती हैं। अनेक मौलिक कृतियों के कर्तृत्व, सम्पादन, शताधिक शोधलेखों के आलेखन एवं प्रभावोत्पादक व्याख्यानों के द्वारा आपने अपने अगाध वैदुष्य का परिचय दिया है। आपने अपने व्याख्यानों के द्वारा न केवल भारत में, अपितु अमेरिका, सिंगापुर आदि विदेशों में भी जैन सिद्धान्तों की महती प्रभावना की है। आपके इस विशिष्ट साहित्यिक अवदान एवं संस्कृत-प्राकृत भाषाओं के संरक्षण संवर्द्धन के लिए किये गये महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए आपको भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति-सम्मान से सम्मानित किया गया है। आपकी नैतृत्व-क्षमता भी श्राघनीय है। आपने अखिल भारतवर्षीय दि.जैन विद्वत्परिषद् के महामन्त्री तथा उपाध्यक्ष पद के उत्तरदायित्वों को अतिदक्षतापूर्वक निभाते हुए विद्वानों की गरिमावृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। जैन सिद्धान्तों एवं जैन जीवनपद्धति के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु आपके द्वारा अनेक राष्ट्रीय और अन्ताराष्ट्रीय विद्वत्सङ्गोष्ठियों का प्रभावी संयोजन किया गया है। इस बौद्धिक व्यक्तित्व की श्रेष्ठता के साथ भावात्मक व्यक्तित्व की श्रेष्ठता भी आपके यश की वृद्धि करती है। आप अत्यन्त निरभिमानी एवं मृदुहृदय पुरुष हैं। आप सदा दूसरों का उपकार करने में तत्पर रहते हैं। आप सच्चे अर्थों में अभिनन्दनीय हैं। आपका अभिनन्दन प्रत्येक विद्वान् का अभिनन्दन है। आपके अभिनन्दनार्थ वीतरागवाणी ट्रस्ट टीकमगढ़ अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने जा रहा है। अत: वह भी अभिनन्दनीय है। मेरी अनेकानेक शुभकामनाएँ। प्रो. रतन चन्द्र जैन पूर्व आचार्य- बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल (म.प्र.) आत्मीय सुहृद् आप बहुत याद आते हो मुझे कुछ दिनों पहले संकेत मिला था कि डॉ. सुदर्शन लाल जैन के सम्मान में एक भव्य समारोह के बीच अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जाना है। मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। कारण ? प्रातः स्मरणीय पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा स्थापित स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनी घाट, वाराणसी में अध्ययन करने वाले छात्रों के साथ हम दोनों सहपाठी और साथी थे। अतएव समस्त 'भूत' मानस-पटल पर छा गया। मुझे लगा कि अब पीछे मुड़कर यात्रा किये बिना कुछ भी संभव नहीं है। यात्रा के लिए साधन चाहिए और कुछ नहीं तो, स्वस्थ शरीर तो होना ही चाहिए। कहा भी गया है - 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्'। क्या कहें ? शरीर तो जर्जर हो गया है। सोचने में ही सही देखने में भी सफर लम्बा तो है ही। एक ओर महान् विद्वान् सहपाठी ही नहीं डॉ. जैन मेरे लिये आत्मीय सुहृद भी हैं। जिन्हें ऐसे शुभावसर पर मैं 76