________________ सिद्ध-सारस्वत उत्तर - जैसाकि मैंने वर्तमान पीढ़ी की मानसिकता पर आपके सातवें प्रश्नोत्तर में कहा है, वही कारण मुख्य है। समाज में विद्वानों के प्रति आदर घट रहा है मुनियों के प्रति श्रद्धा के साथ अंधश्रद्धा भी है जिससे शिथिलाचार भी कहीं कहीं पनपने लगा है। गृहस्थाश्रम को घोराश्रम कहा गया है। विद्वान् ही श्रमण-श्रावक के मध्य सेतु का कार्य कर सकता है परन्तु विद्वानों में भी अब शिथिलाचार आने लगा है। 9. देव शास्त्र गुरु पर आपकी अटूट श्रद्धा है आज साधु वर्ग में शिथिलाचार की घटनायें बढ़ती दिखाई दे रही हैं। एकल विहार जैसी समस्या दिनोंदिन बढ़ रही है इस सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहेंगे? उत्तर - एकल विहारी पर प्रतिबन्ध हो। भौतिक सुख-सुविधा भोगी श्रमणों का बहिष्कार हो। मूलाचार का पालन हो। स्त्रियों से पुरुषों की और पुरुषों से स्त्रियों की दूरी हो। यद्यपि ये चतुर्थकाल नहीं है, संहनन हीन है फिर भी मूल भावना रहना चाहिए। आज साधु नगरों में रह रहा है। प्रशासनिक और सामाजिक वातावरण भी दूषित हो रहा है। अतः केवल साधु दोषी नहीं है। हम श्रावक ही उन्हें सुविधायें देकर शिथिलाचारी बना रहे हैं। 10. देश के सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार मिलना एवं अन्य पुरस्कार आपके जीवन की अनमोल निधि हैं। इन यादगार पलों को आपने अपनी स्मृति में कैसे संजोया ? उत्तर - अप्रत्याशित व अज्ञात पुरस्कार था मेरे लिए। मुझे पता भी नहीं था कि मेरा नाम तदर्थ भेजा गया है, यह मेरी प्रिय छात्रा की गुरुदक्षिणा थी जिसने तदर्थ मेरा वायोडाटा भेजा था, उसके प्रति मेरा स्नेह बढ़ गया। बहुत प्रसन्नता हुई। नाम है प्रो. मनुलता शर्मा / इन पुरस्कारों से गौरव तो होता है परन्तु अब बात बदल गई है। 11. आपने अनेक पुस्तकों का लेखन-सम्पादन एवं अनुवाद किया, क्या आज भी कुछ करने का भाव बनता उत्तर - बहुत कुछ करना चाहता हूँ, कर भी रहा हूँ क्योंकि वह मेरा भोजन है, परन्तु स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है। 12. आप शिक्षण कार्य से सदैव जुड़े रहे। शिक्षक का समाज में एक विशिष्ट स्थान होता है। वर्तमान समाज के परिवर्तन पर आपके क्या विचार हैं ? उत्तर - आज भी शिक्षक का सम्मान है परन्तु कुछ शिक्षकों ने अपने नैतिक मूल्य गिरा दिये हैं, उनकी बजह से शिक्षक बदनाम होते हैं। आज भी अच्छे शिक्षक हैं जो अपने शिष्य को अपने से आगे देखना चाहते हैं। मेरा सम्मान छात्रों ने ही ज्यादा किया है। मैं भी छात्रों को पुत्रवत् स्नेह देता रहा हूँ। 13. आपके निर्देशन में अनेक शोधकार्य (पी-एच.डी.) हुए शोधकार्यों की दिशा और दशा पर आप क्या कहना चाहेंगे? उत्तर - कुछ तो अच्छे शोध हैं और कुछ स्तरीय। आज येन केन प्रकारेण पी-एच.डी. डिग्री प्राप्त करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है जिसमें शिक्षकों की भी कमजोरी है। 14. वैसे तो अब इस प्रसंग का महत्त्व नहीं है फिर भी बहुत सारे लोगों के मन में एक सवाल उठता है कि अखिल भारतवर्षीय विद्वत् परिषद् के विघटन में क्या कोई ऐसी स्थिति नहीं बन पा रही थी कि इसे बचाया जा सकता? उत्तर - विघटन आज भी बचाया जा सकता है। मन्त्री की हैसियत से मैंने पूरा प्रयत्न किया परन्तु 2-3 लोगों की महत्त्वाकांक्षा ने विघटन करा दिया। मैं चाहता तो अध्यक्ष बन सकता था परन्तु मैंने दुःखीभाव से अपना नाम अध्यक्ष पद की दौड़ से वापिस ले लिया। परन्तु एकता के लिए सतत प्रयत्नशील रहा। मेरे उदासीन होने के बाद पुनः एक और विघटन हो गया। श्री भारिल्ल जी की परिषद् ने मुझे न जाने पर भी उपाध्यक्ष और कार्याध्यक्ष बनाए रखा परन्तु एकता न बन पाने की सुनिश्चितता देख त्यागपत्र दे दिया और मूल परिषद् में आ गया परन्तु उदासीन ही रहा। यदि अहं छोड़ दें तो एकता हो सकती है। 15. वर्तमान पीढ़ी धर्म और धार्मिकता को एक अलग तरह से ले रही है तब जैन धर्म के सिद्धान्तों की परम्परा कैसे विकसित होगी? उत्तर - आपका कथन सही है। हमारे वीतरागी साधुगण ही इसे सुरक्षित कर सकते हैं परन्तु वहाँ भी मतभेद हैं। विघटन की ओर जैनधर्म निरन्तर बढ़ रहा है। जैनत्व का प्रचार-प्रसार और प्रदर्शन खूब हो रहा है परन्तु वहाँ पुण्यार्जन की इच्छा तथा अन्ध श्रद्धामात्र है, विवेक नहीं। आज जैनधर्म का वैज्ञानिक एवं तुलनात्मक परीक्षण करना चाहिए। मैंने इस योजना 81