________________ सिद्ध-सारस्वत विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शन लाल जैन- एक साक्षात्कार 1. डॉक्टर साहब आपके साहित्यिक, सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक जीवन यात्रा के समग्र व्यक्तित्व को दर्शाने वाला अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। आप कैसा अनुभव कर रहे हैं? उत्तर - मैं भाई प्रतिष्ठाप्रज्ञ विमल सोरया जी का प्रेम मानता हूँ जिन्होंने मुझे इस बावत बार-बार प्रेरित किया। इसके साथ आप सभी मित्रों का प्रेम पाकर हर्षित हूँ। यह मेरा नहीं एक विद्वान् का अभिनन्दन है। मैं तो उपलक्षण हूँ। 2. बुंदेलखंड की धरा जिसने देश/समाज को अनेकानेक विद्वान्, साहित्यकार, चिंतक और आत्मसाधना में रत अनेक साधकों को जन्म दिया। उस मातृभूमि के प्रति आपकी क्या अनुभूतियाँ हैं ? उत्तर - बुंदेलखंड की धरा बड़ी उर्वरा शक्ति सम्पन्न है जिसने अनेक विद्वानों, आत्मसाधकों को जन्म दिया। आचार्य विद्यासागर जी ने संभवत: इसीलिए इस धरा को अपनी साधना स्थली बनाया। मैं इसे प्रणाम करता हूँ। 3. जीवनक्रम में आपको अनेक पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कुछ संस्मरण बतायें जो आपके व्यक्तित्व को जीवंत बनाते चले गए ? / उत्तर - आपका कथन सही है। जीवन में कठिनाइयाँ न आये तो कोई कैसे उचाईयाँ प्राप्त कर सकता है। सोना तपकर ही शुद्ध होता है। मातृवियोग के बाद तो मानो मेरा जीवन निरर्थक सा हो गया था परन्तु भाग्य और पुरुषार्थ ने मुझे ऊपर उठाया। मेरे जीवन में अनायास किसी न किसी ने सहायता की है। जैसे बड़े सुपुत्र को पोलियो होने पर, वायपास आपरेशन होने पर, इसी प्रकार विभागाध्यक्ष द्वारा 'नो ड्यूज' न देने पर कुलपति प्रो. पंजाब सिंह जी द्वारा 'नो ड्यूज' करना आदि। विशेष मेरी जीवन यात्रा में देखें। 4. प्रोफेसर साहब विरले लोग होते हैं जो जीवन के विकास-क्रम के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचते हैं। आप उनमें से एक हैं। इस उपलब्धि पर आप किन-किन को स्मरण करेंगे। उत्तर - माता-पिता, गुरु और मित्र। 'सिद्ध-सारस्वत' में सब निहित है। सिद्ध- सिद्ध, अर्हन्त, पिता सिद्धेलाल, गुरु सिद्धेश्वर, सारस्वत-माँ सरस्वती, जिनवाणी आदि। पं. जगन्मोहन लाल जी, पं. कैलाश चन्द्र जी, डॉ. कमलेश चन्द्र, प्रो. वीरेन्द्र कुमार वर्मा, पं. दयाचंदजी, पं. मूलशंकर शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य पं. विमल कुमार सोरया जी, प्रो. पंजाबसिंह आदि। 5. भारतीय संस्कृति विशेषकर संस्कृत साहित्य और जैन साहित्य में आपका महनीय योगदान है। इस साहित्यिक यात्रा के कुछ प्रमुख बिन्दुओं को बताएँ ? उत्तर - मेरा साहित्यक अवदान ही इसका उत्तर है। विशेषकर तुलनात्मक और वैज्ञानिक चिन्तन करना सरल और तर्क पद्धति की शैली से करना। 6. आप लंबे समय तक देश के गौरवशाली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे और अपने उत्तरदायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। कुछ यादगार अनुभव ? उत्तर - विरोधियों का धैर्यपूर्वक सामना करना। अपने को सकारात्मक बनाये रखना। ईश्वर का ध्यान करना और मानवीय आचरण से च्युत न होना। प्रमुख घटनायें और योगदान' जीवन यात्रा में देखें। 7. इसी कड़ी में एक सवाल और उठ रहा है ? आपने विद्वानों की तीन पीढ़ियाँ देखी हैं। पं. कैलाशचंद जी, पं. फूलचंद जी आदि वाली परम्परा, फिर डॉ. श्रेयांस कुमार, डॉ. जयकुमार आदि वाली परम्परा और डॉ. पंकज कुमार, डॉ. सुनील कुमार सञ्चय आदि वाली परम्परा आपको क्या परिवर्तन दिखाई दे रहा है ? उत्तर - मैं अपने से पूर्ववर्ती, समवर्ती और उत्तरवर्ती तीनों परम्पराओं को देख रहा हूँ। पूर्ववर्ती परम्परा में जिनवाणी की सेवा प्रमुख थी। समवर्ती पीढ़ी में जिनवाणी की सेवा के साथ धनोपार्जन भी मुख्य हो गया। परवर्ती पीढ़ी में जिनवाणी पर ऊहापोह चालू हो गया जिससे अन्वेषण की प्रक्रिया आ गई। धनोपार्जन और यशोपार्जन की लालसा बढ़ गई, फिर भी जिनवाणी पर श्रद्धा है। 8. डॉक्टरसाहब श्रमण और श्रावक के बीच की कड़ी के रूप में विद्वान् जाना जाता था पर आज वह बात नहीं रही, क्या कारण है? 80