________________ सिद्ध-सारस्वत आत्मसेवा और श्रुत-सेवा में लीन हैं। वे मेरे लिए वयोवृद्ध हैं, ज्ञानवृद्ध और धनवृद्ध हैं। वे इसी प्रकार प्रसन्नमुख और सौम्यमुख रहकर प्रगतिशील रहें, इसी भावना के साथ उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ। डॉ. रमेशचन्द्र जैन पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग, वर्धमान कालेज, बिजनौर, उ.प्र. पूर्वनिदेशक- राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं शोध संस्थान, श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) पण्डित प्रवर को जैसा मैंने अनुभव किया हमारे पिताश्री के मित्र डॉ. सुदर्शन जी जब बी.एच.यू में सेवारत थे, तब उस समय केवल यह ध्यान था कि किसी विभागाध्यक्ष के यहाँ जा रहे हैं। पति-पत्नि के आवभगत से अभिभूत, उन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों से अवगत कराया, तब ज्ञात हुआ कि हम सौम्य, सरल, मृदुभाषी विद्वान् से मिल रहे हैं। इसके पश्चात् तो अनेकों बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हर मुलाकात में उन्होंने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि हम बहुत बड़े विद्वान् से मिल रहे हैं। तनिक भी अहङ्कार का आभास नहीं हुआ। मेरी पुस्तक जैन तीर्थ वंदना एवं दर्शनीय स्थल एवं जैन दिगम्बराचार्य प्रेरक सन्त के सङ्कलन में मार्गदर्शन के साथ सदैव प्रोत्साहित करते रहे, जिसके कारण दोनों कृतियाँ स्तरीय बन गईं। आप विद्वान के अतिरिक्त अतिथिप्रिय, सर्वहिताय, कशल प्रवचनकर्ता भी हैं। यह अनुभव हमारे भोपाल प्रवास में हुआ, जब आचार्य श्री विद्यासागर जी का चातुर्मास चल रहा था। आपने स्वयं रात्रि में जाकर लालघाटी स्थित नंदीश्वरदीप मन्दिर में हमारे लिये आवास व्यवस्था की एवं प्रातः भोजन के लिये आमन्त्रित किया। ऐसे सरल, सौम्य विद्वान् का सान्निध्य पाकर हम अभिभूत थे। राष्ट्रपति एवं अनेक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरस्कृत, अनेक शोध ग्रन्थों के लेखक, पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक, कई कृतियों के अनुवादक, अ.भा. विद्वत् परिषद् के मन्त्री एवं अध्यक्ष, कई संस्थाओं के मन्त्री एवं निदेशक डॉ. सुदर्शन जी का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली है कि कई साधुसन्त अपनी कृतियों का हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन आपसे कराना चाहते हैं। ऐसे व्यक्तित्व का अभिनन्दन कर हम अल्पज्ञ स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। आप शतायु हों और समाज को साहित्य के साथ धर्म-प्रभावना का कार्य करते रहें, ऐसी भावना करते हैं। डॉ. आर. के. जैन स्टेशन रोड, कोटा आलोचकों को भी भक्त बनाने की अद्भत क्षमता यह बहुत प्रसन्नता का विषय है कि प्रो. सुदर्शन लाल जैन का अभिनन्दन ग्रन्थ उनके 75 वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर प्रकाशित किया जा रहा है। यह उनके द्वारा की गई जैन धर्म एवं संस्कृत-प्राकृत भाषा की सेवाओं को देखते हुए सर्वथा अनुकूल अवसर है। डॉ. सुदर्शनलाल जैन के निर्देशन में 40 से अधिक छात्रों ने पी-एच.डी. की उपाधि अर्जित की है। समयसमय पर जैनधर्म पर आयोजित सेमिनारों एवं कान्फ्रेंसों में अपने मौलिक लेखों से विद्वत् समाज में ख्याति प्राप्त की। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में 38 वर्षों तक लेक्चर, रीडर एवं प्रोफेसर के रूप में कार्य किया एवं कलासङ्काय के प्रमुख (डीन) पद का सफलता पूर्वक निर्वहन किया। प्रोफेसर सुदर्शनलाल जी जैन में एक अद्भुत क्षमता थी कि उनके आलोचक भी उनके भक्त बन जाया करते थे एवं आपका निर्बाध रूप से सहयोग करते थे। कला सङ्काय की मीटिंग में एक प्रखर आलोचक को दो मिनट में अनुकूल कर लेने पर सभी विभागाध्यक्ष आश्चर्य-चकित होकर पूछने लगे जैन साहब कौनसा मन्त्र फूंका है। प्रो. सुदर्शन लाल जी ने अपने तीन पुत्रों एवं एक पुत्री को उस समय के अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा दिलाई। 72