________________ सिद्ध-सारस्वत इनके घर ले गये। पूरे परिवार से स्नेहिल प्यार मिलने के कारण वाराणसी में अपनापन पाया। फिर इन्होंने मुझे बी.ए. में भी पढ़ाया तथा समय-समय पर मार्गदर्शन भी देते रहे। इनके द्वारा लिखी हुई 'उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षात्मक परिशीलन, 'प्राकृत-दीपिका', 'संस्कृत-प्रवेशिका' तथा जैनदर्शन की मुख्य पुस्तक 'देव-शास्त्र-गुरु' से मैं बहुत उपकृत हुआ। शांत-स्वभाव के साथ आप जहाँ छात्रों का कल्याण चाहते हैं वहीं अपने बच्चों को भी खूब योग्य बनाया। तीनों बच्चे कुशल इंजीनियर तथा एक बच्ची का चयन एम.बी.बी.एस. में महान उपलब्धि कहा जाता था। कला सङ्काय के डीन पद पर भी आप आसीन हुए तथा अखिल भारतवर्षीय दि.जैन विद्वत्परिषद् के महामन्त्री पद पर रहते हुए जैनसमाज का गौरव बढ़ाया। आपके आगे बढ़ने में आदरणीया भाभी जी डॉ. मनोरमा जैन का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। आप कुशल गृहिणी, धार्मिक वृत्ति एवं शिक्षा में भी प्रवीण हैं। मेरा एवं हमारे परिवार का आप विशेष ध्यान रखती हैं तथा अच्छी सलाह भी देती रहती हैं। मैं पुनः कामना करता हूँ कि प्रो. सुदर्शन लाल जी शतायु हों तथा संस्कृत एवं प्राकृत की सेवा करते हुए हम सबका मार्गदर्शन करते रहें। प्रो. विजय कुमार जैन सङ्काय प्रमुख एवं प्राचार्य, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, गोमती नगर, लखनऊ पात्रस्नेही परार्थकृत् गुरुवर विद्वद्वरेण्य प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन को अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण की आयोजना विलम्ब से ही सही, पर एक उत्तम प्रयास है। मैं लगभग चार दशक से प्रो. जैन से सुपरिचित हूँ। जब में अध्ययनार्थ वाराणसी पहुँचा तो आप काशीहिन्दूविश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में प्रवक्ता थे तथा आपकी छवि एक पात्रस्नेही परोपकारी शिक्षक के रूप में, एक अच्छे इंसान के रूप में शिष्य समुदाय में सर्वत्र व्याप्त थी। वर्ष 1971 में इंटर कर लेने के बाद जब मैंने बी.ए. में का.हि.वि.वि. में प्रवेश लिया तो गुरुवर में मैंने उन सब गुणों को प्रत्यक्ष देखा, साक्षात् पाया जिन्हें मैं सुना करता था। मुझे गौरव है और इसे मैं अपना अहोभाग्य मानता हूँ कि मुझे प्रो. जैन जैसे गुरु से स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ने का सौभाग्य मिला। संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं के सुवेत्ता आपकी भारतीय दर्शनों में अबाध गति है। राष्ट्रपति पुरस्कार आदि अनेक सम्मान आपको पाकर सार्थक हुये हैं। साहित्य-सपर्या के क्षेत्र में आपका महनीय योगदान है। श्री अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् द्वारा प्रकाशित आपकी कृति 'देव-शास्त्र और गुरु' ने श्रमणों और श्रावकों में अक्षुण्ण कीर्ति अर्जित की प्रोफेसर सुदर्शन लाल जी जैन का 'जीवन जितने कष्ट कंटकों में गुजरा है, जिसका जीवन सुमन खिला सौरभ गन्ध उसे उतना ही यत्र-तत्र सर्वत्र मिला' की जीती जागती कहानी है। उन्होंने अपने पुरुषार्थ के बल पर भाग्य को पटखनी दी। उनका सम्पूर्ण परिवार उच्च शिक्षित, संस्कारवान् एवं उच्च पदों पर प्रतिष्ठित है। उनकी अर्धांगिनी श्रीमती डॉ. मनोरमा जैन जैनदर्शन की विदुषी हैं, सन्तति संस्कारनिर्माण की हैं, सही अर्थ में माता हैं। आज जिस उच्चासन पर प्रो. जैन विराजमान हैं, उसमें आदरणीया डॉ. मनोरमा जी का महनीय अवदान है। मैं अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन के अवसर पर जिसके सम्पादक-मण्डल का मैं सहभागी हूँ, अपनी ओर से, अपने परिवार की ओर से प्रो. साहब के चरणों में अपनी विनम्र विनय प्रकट करता हुआ प्रार्थना करता हूँ कि वे स्वस्थ दीर्घायुष्य को पाकर साहित्य एवं समाज की सेवा में सैदव शिरोमणि बने रहें। डॉ. जयकुमार जैन अध्यक्ष, श्री अ.भारतवर्षीय दि.जैन. विद्वत्परिषद्, मुजफ्फरनगर 69